बेबाक विचार

सवाल विश्वास का है

ByNI Editorial,
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सवाल विश्वास का है
सवाल यह उठा है कि कि किसी राज्य सरकार को सूचित किए बिना बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में उसके इलाके में विस्तार कैसे किया जा सकता है? अगर इसकी कोई आपात जरूरत पड़ गई थी, तो क्या इस बारे में केंद्र को संबंधित राज्य सरकारों को पहले भरोसे में नहीं लेना चाहिए था? concern border areas bsf राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कोई कदम जरूरी हो, तो केंद्र सरकार को उसे अवश्य उठाना चाहिए। लेकिन भारत अगर एक संघीय लोकतंत्र है, तो ऐसे हर कदम के पहले विश्वास का माहौल बनाना भी उसकी ही जिम्मेदारी है। पिछले सात साल का अनुभव यह है कि वर्तमान केंद्र सरकार संघीय भावना तो दूर, संघीय व्यवस्था में निहित अनिवार्यताओं का पालन भी नहीं करती। चाहे मामला सुरक्षा का हो, या वित्तीय ऐसी अनेक मिसालें गिनाई जा सकती हैं, जब केंद्र सरकार ऐसी अनिवार्यताओं को ताक पर रखती नजर आई। इसी सिलसिले में ताजा मामला सीमा सुरक्षा बल के कार्य क्षेत्र में की गई बढ़ोतरी का है, जिस पर हफ्ते भर से विवाद उठा हुआ है। पंजाब और पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी  राजनीतिक दलों इस फैसले का मुखर विरोध किया है। पश्चिम बंगाल में तो गैर-सरकारी स्तर पर भी खूब विरोध हो रहा है। इसकी वजह यह है कि राज्य की करीब 2,216 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश से लगी है। फैसले से नाराज राज्य सरकार ने केंद्र पर संघीय ढांचे को क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगाया है। पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस  ने इस फैसले को राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण और देश के संघीय ढांचे पर हमला बताया है।

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सवाल यह उठा है कि कि किसी राज्य सरकार को सूचित किए बिना बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में उसके इलाके में विस्तार कैसे किया जा सकता है? अगर इसकी कोई आपात जरूरत पड़ गई, तो क्या इस बारे में केंद्र को संबंधित राज्य सरकारों को भरोसे में नहीं लेना चाहिए? गौरतलब है कि अगर बीएसएफ को कहीं तलाशी लेनी होती है, तो वह पहले की तरह राज्य पुलिस के साथ मिल कर ऐसा पहले भी करती रही है। पंजाब की कांग्रेस सरकार ने भी फैसले का विरोध करते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग उठाई है। गौरतलब ह कि केंद्र सरकार ने सीमा सुरक्षा बल कानून में संशोधन कर उसे पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर के दायरे में तलाशी लेने, जब्ती करने और गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया है। इससे पहले यह अधिकार 15 किलोमीटर के दायरे तक ही सीमित था। केंद्र का कहना है कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और इसलिए इस पर बहस बेमतलब है। लेकिन क्या राज्य सरकारें इतनी अविश्वसनीय हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर उन्हें विश्वास में नहीं लिया जा सकता? दरअसल, केंद्र की यही सोच समस्या की जड़ है।
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