संपादकीय

नियमों में एकरूपता की जरूरत

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नियमों में एकरूपता की जरूरत
दुनिया के संभवतः किसी देश में ऐसा नहीं हुआ होगा कि मेडिकल का संकट इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी में बदल जाए। भारत में कोरोना वायरस का संकट एक तरह से मानवाधिकार के संकट में तब्दील हो गया है और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि केंद्र से लेकर राज्यों तक में अनाप-शनाप तरीके से नियम और कानून बनाए गए। हैरानी की बात है कि कहीं भी कानून या दिशा-निर्देशों की व्यावहारिकता पर अध्ययन नहीं किया गया। यह नहीं सोचा गया कि सरकारें जो काम करने जा रही हैं उनसे लोगों को फायदा होगा या उनकी जान और मुश्किल में फंसेगी। दूसरा कारण यह है कि केंद्र से लेकर राज्यों तक में कानून और दिशा-निर्देशों में एकरूपता नहीं दिखाई दी। सोशल डिस्टेंसिंग से लेकर क्वरैंटाइन और इलाज से लेकर लॉकडाउन में छूट देने तक दस तरह के दिशा-निर्देश दिए गए, जिनसे सुविधा होने की बजाय आम लोगों की परेशानी बढ़ गई। जान बचाने के लिए किए गए उपायों पर बाद में चर्चा करेंगे, पहले जहान बचाने के नाम पर लॉकडाउन खोलने का जो फैसला हुआ और उसके लिए दिशा-निर्देश बनाए गए उनकी विभिन्नता पर चर्चा करते हैं। सरकार ने बिना व्यावहारिकता का अध्ययन कराए मनमाने तरीके से इस मामले में दिशा-निर्देश जारी किए। इस बात का कोई ठोस आधार नहीं है कि एक सामान की दुकान खोलने और दूसरे सामान की दुकान बंद रखने से कोरोना वायरस फैलना रूक जाएगा। पर सरकार ने कुछ दुकानें खुलवा दीं और कुछ बंद रखीं। जिनकी दुकानें नहीं खोलने का फैसला किया गया उनके नुकसान की भरपाई की कोई व्यवस्था नहीं की गई। जरूरी और गैर जरूरी सामान या सेवा के नाम पर एक विभाजन किया गया, जो कभी भी वास्तविक नहीं था। इसी तरह सरकार ने सार्वजनिक परिवहन से जुड़े जो नियम बनाए उनमें भी एकरूपता नहीं दिखती है। जैसे ट्रेन सेवाएं चालू कर दी गईं लेकिन मेट्रो की सेवा शुरू नहीं की गई। अगर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चल सकती हैं या दूसरी पूरी तरह से एसी कोच वाली ट्रेनें चल सकती हैं या हवाई सेवा शुरू की जा सकती है तो मेट्रो ट्रेन क्यों नहीं चलाई जा सकती है, इसका कोई जवाब नहीं है। फिर सार्वजनिक सेवाओं के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के जो नियम बनाए गए वे बिना सिर-पैर के हैं। सरकारों ने तय किया कि ट्रेनों में सभी सीटों पर यात्री बैठेंगे यानी एक कतार में तीन सीटें हैं तो तीनों पर यात्री बैठेंगे। यह नियम श्रमिक स्पेशल ट्रेन में भी है और दूसरी विशेष ट्रेनों में भी है। यहीं नियम हवाई उड़ानों के लिए भी लागू किया गया। वहां भी हर सीट पर यात्री बैठ रहे हैं। यानी वहां सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन नहीं करना है। पर हवाईअड्डों या स्टेशनों तक पहुंचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग रखनी है। यहां तक की हवाईअड्डे पर इंतजार करने के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग की पूरी व्यवस्था की गई है। वहां एक कतार की तीन में बीच की सीट को ब्लॉक किया गया है। उस पर कोई नहीं बैठ सकता है। सोचें, हवाईअड्डे पर बीच की सीट खाली रखनी है पर हवाई जहाज के अंदर बीच की सीट पर भी आदमी बैठेगा। ऐसे ही हवाईअड्डा या स्टेशन पहुंचने के लिए अगर आप ऑटो या टैक्सी करते हैं तो उसमें सोशल डिस्टेंसिंग पूरी रखनी है। एक ऑटो में सिर्फ एक सवारी बैठ सकती है या एक टैक्सी में ड्राइव के अलावा सिर्फ दो लोग बैठ सकते हैं। ऑटो-टैक्सी वाले एक-एक पैसेंजर और बैठाने कि अनुमति मांग रहे हैं पर सरकार तैयार नहीं है। सरकार को लग रहा है कि ऑटो में दो लोग साथ बैठ गए तो कोरोना फैल जाएगा लेकिन ट्रेन में तीन लोग साथ बैठेंगे तो कोरोना नहीं फैलेगा। इसी तरह क्वरेंटाइन के नियमों में भी कोई एकरूपता नहीं है। जिसे जैसे मन में आया वैसे नियम बना दिए हैं। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले मजदूरों को तो अनिवार्य रूप से क्वरैंटाइन में रहना है लेकिन दूसरी स्पेशल ट्रेनों से यात्रा करने वाले या हवाईजहाज से आने वालों के क्वरैंटाइन के नियम अलग हैं। कहीं उनको सात दिन रहना है तो कहीं 14 दिन और कहीं एक दिन भी नहीं रहना है। हवाई जहाज से उतर कर लोग सीधे घर जा सकते हैं और अपना अपना काम कर सकते हैं। अगर कोई आदमी किसी कामकाज के सिलसिले में किसी शहर गया है और उसे पांच दिन या एक हफ्ते में लौटना है तो उस पर भी क्वरैंटाइन के नियम नहीं लागू होते हैं। इस तरह के भिन्नता का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि मजदूरों ने सोशल डिस्टेंसिंग और क्वरैंटाइन के नियमों को मानने से अघोषित रूप से इनकार कर दिया है। वे क्वरैंटाइन सेंटर से भाग रहे हैं या स्टेशनों से पहले ही ट्रेन से उतर कर भाग जा रहे हैं। जब तक सरकार ट्रेनों में बीच की सीट खाली रखती थी तब तक मजदूरों के मन में कोरोना वायरस का डर था, लेकिन जैसे ही सरकार ने सभी सीटों पर यात्री बैठाना शुरू किया, उनका डर निकल गया। दूसरी स्पेशल ट्रेनों और विमान यात्रियों को घर जाने देने से भी मजदूरों का डर खत्म हुआ। उन्होंने मान लिया कि जैसे दूसरी स्पेशल ट्रेनों के यात्री या हवाई यात्री सुरक्षित हैं और घर जा सकते हैं वैसे ही वे भी घर जा सकते हैं। आखिर कोरोना वायरस के 80 फीसदी से ज्यादा संक्रमित तो बिना लक्षण वाले हैं। सो, सोशल डिस्टेंसिंग या क्वरैंटाइन सबके लिए समान रूप से होता तब तो सभी इसका पालन करते। पर कुछ लोगों पर इसे लागू करने और कुछ लोगों को इससे छूट देने के नियमों की वजह से सरब इसका उल्लंघन करने लगे।
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