बेबाक विचार

ये विनाश कौन रोकगा?

ByNI Editorial,
Share
ये विनाश कौन रोकगा?
पर्यावरण प्रेमी उचित ही उत्तराखंड में गणेशपुर-देहरादून सड़क को बनाए जाने की अनुमति दिए जाने से निराश हैं। ये अनुमति नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ ने दी है। राष्ट्रीय राज्य-मार्ग 72-ए के नाम से जानी जाने वाली इस सड़क को बनाने के लिए दो अभयारण्यों के एक बड़े इलाके को साफ किया जाएगा। ये सड़क मूल रूप से दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे का विस्तार होगी। एक्सप्रेस-वे का लगभग 20 किलोमीटर का हिस्सा राजाजी बाघ रिजर्व और शिवालिक हाथी रिजर्व के बीच से हो कर गुजरेगा। राजाजी लगभग 1,075 वर्ग किलोमीटर में फैला बाघों का रिजर्व है, जिसमें कम से कम 18 बाघ, एशियाई हाथी, तेंदुआ, स्लॉथ भालू जैसे कम से कम 50 पशुओं की प्रजातियां, 300 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां और कई तरह के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। अगर यह सड़क बनी, तो उत्तराखंड को राजाजी के अंदर के करीब 10 हेक्टेयर में फैले जंगलों और 2,500 पेड़ों को खत्म करना पड़ेगा। इस सड़क के लिए उत्तर प्रदेश को भी शिवालिक हाथी रिजर्व के अंदर 47 हेक्टेयर में फैले जंगलों को गंवाना पड़ेगा। शिवालिक एशियाई हाथियों के लिए 5,000 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा इलाके में फैला रिजर्व है। जानकारों का कहना है कि नई सड़क बनने से यात्रा में बस 10 मिनट की बचत होगी। तो सवाल है कि सिर्फ इतनी सी बचत के लिए 2,500 पेड़ों को काट देना कहां तक वाजिब है। मगर आज जबकि असहमति की कोई बात नहीं सुनी जाती, ये सवाल किससे किया जाएगा? आज का दौर वह है, जिसमें सरकार जो फैसला कर दे, उम्मीद की जाती है कि लोग उसे चुपचाप मान लें। इस तरह अगर सरकार को पर्यावरण की फिक्र नहीं है, तो नागरिकों की फिक्र एक तरह से बेमतलब हो जाती है। गौरतलब है कि पहले ही उत्तराखंड में महत्वाकांक्षी चार धाम सड़क परियोजना और जॉली ग्रांट हवाई अड्डा परियोजना के लिए कई हजार पेड़ काट जाने हैं। जबकि तमाम विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि उत्तराखंड पहले ही पेड़ों और पहाड़ों को काटे जाने का खामियाजा भुगत रहा है। पहाड़ी इलाकों में पेड़ों के कटने से मिट्टी कमजोर हो जाती है। भू-स्खलन का खतरा बढ़ जाता है। पेड़ काटने से इलाके का मौसम भी खुश्क हो जाता है और जलवायु परिवर्तन की गति तेज करता है। लेकिन ऐसा लगता है कि विकास की अंधी दौड़ में सरकार बिल्कुल अपनी दृष्टि खो चुकी है।
Tags :
Published

और पढ़ें