बेबाक विचार

नदी तैरती हुई लाशें!

ByNI Editorial,
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नदी तैरती हुई लाशें!
अब ये भयानक सच्चाई सामने है। लोग अनगिनत संख्या में मर रहे हैं और उनके परिजन लाशों को नदी में डाल दे रहे हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में लगभग 100 ऐसी तैरती लाशें देखी जा चुकी हैं। ये किनकी है और कब मौत हुई ये किसी को नहीं मालूम। चूंकि मृत्यु के पहले उनकी जांच भी नहीं हुई होगी, इसलिए पक्के तौर पर कोई ये नहीं कहेगा कि ये कोरोना से हुई मौतें हैँ। लेकिन ये तमाम बातें अप्रसांगिक हैं। प्रासंगिक यह है कि इस देश में पतझड़ में पेड़ से जैसे पत्ते टूट कर गिरते हैं, वैसे लोगों की मौत हो रही है। इस हाल के लिए जिनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए, वो विदेशी अखबार से मिलते-जुलते नाम के अखबार की वेबसाइट बना कर सुप्रीम नेता के जयगान में लेख लिख रहे हैं। गांव-गांव फैल रहे संक्रमण और मौतों को रोकना उनकी प्राथमिकता नहीं है। गांवों से खबरें मिल रही हैं कि हर मौत और अधिक संक्रमण की वजह बन रही है। इसलिए अनजान लोग अंत्येष्टि परंपरागत ढंग से भीड़ जुटा कर रहे हैं और उसी तरह श्राद्ध कर्म किए जा रहे हैँ। ये कहानी जैसी बिहार की है, वैसी ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों की भी। गांवों का हाल यह है कि लोग कोरोना संक्रमण को आज भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वे गांव में ही रहकर पारंपरिक तरीके से अपना उपचार कर रहे हैं। टेस्ट कराने को तैयार नहीं है। वैसे भी शहरी इलाकों में मरीजों की संख्या में अस्पतालों पर दबाव बढ़ रहा है। तो फिर गांव वालों का टेस्ट या इलाज कहां होगा। गांवों में मरीजों की बढ़ती संख्या और अस्पतालों तक बीमारों के न पहुंचने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश के कई ग्रामीण इलाकों में खेतों को अस्पताल बनाया गया है। लेकिन वहां भी लोग नहीं जाते। इसकी वजह से परिवार में जहां एक व्यक्ति बीमार होता है ,तो दूसरा भी उसकी चपेट में आ जाता है। तमाम रिपोर्टें बताती हैं कि ग्रामीण इलाकों में मरीजों की तादाद में वृद्धि से सरकार भी वाकिफ है। कई राज्य सरकारों ने ग्रामीण इलाकों में कोरोना चिकित्सा किट का वितरण भी किया है। लेकिन ये सब नाकाफी है। इसी का परिणाम है कि आज दुनिया नदी में तैरती हुई लाशों को देख रही है।
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