हर साल की तरह फिर से दिल्ली पर प्रदूषण की मार पड़नी शुरू हो गई है। प्रदूषण दिल्ली की बड़ी समस्या है, लेकिन यह ज्यादा गंभीर रूप तब धारण कर लेती है जब पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने से होने वाला धुआं दिल्ली के आसमान पर परत बन कर छा जाता है। हर साल अक्तूबर-नवंबर के महीने में पराली का धुआं दिल्ली का दम घोटता है। इससे सांस और फेंफड़े के मरीजों की संख्य़ा में तेजी से इजाफा होता है और दिल्ली की आबादी का बड़ा हिस्सा अस्पतालों की ओर भागने को मजबूर होता है। लेकिन इतना सब कुछ होने और झेलने के बाद भी अगर पराली जलाने पर रोक नहीं लग पा रही है तो केंद्र और राज्य सरकारों का इससे ज्यादा निकम्मापन कुछ नहीं हो सकता। पराली जलाने के मसले पर पिछले तीन साल में सुप्रीम कोर्ट तक ने कड़े निर्देश दिए, पर्यावरण मंत्रालय की निगरानी में टीमें बनाईं जो पराली जलाने के विकल्प खोजे और राज्य सरकारों को पराली जलाने वाले किसानों पर कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए, पर सब बेअसर ही रहा है।
चिंता की बात यह है कि इस बार पराली जलाने की घटनाएं कम होने के बजाय और बढ़ी हैं। पंजाब सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक इस बार बारह अक्तूबर तक पंजाब में पराली जलाने की छह सौ तीस घटनाएं दर्ज की गई हैं। जबकि पिछले साल इसी अवधि में चार सौ पैंतीस मामले दर्ज हुए थे। हरियाणा में कई जगह पराली जलाई जा रही है। दरअसल, किसानों के सामने मजबूरी यह है कि पराली जलाएं नहीं तो करें क्या। किसानों को पराली नष्ट करने का विकल्प सुझाने में सरकारें नाकाम रही हैं। हालांकि दावा तो यह किया जा रहा है कि कई जगहों पर पराली कटवा कर बिकवाई जा रही है, लेकिन अगर ऐसा है भी तो बहुत ही कम जगह पर। पिछले साल पंजाब सरकार ने किसानों को पराली नष्ट करने की मशीनें देने की योजना बनाई थी, लेकिन ज्यादातर किसान गरीब हैं और वह योजना इनके लिए निरर्थक साबित हुई। ऐसे में पराली का किया क्या जाए, किसी को समझ नहीं आ रहा। देश में कृषि विशेषज्ञों की कमी नहीं है, कृषि विश्वविद्यालयों से लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जैसे बड़े वैज्ञानिक संस्थान हैं, लेकिन पराली का धुआं न निकले, इसका इलाज कोई नहीं कर पा रहा। यह पराली जलाने से ज्यादा चिंताजनक है।