आरोग्य सेतु ऐप पर सवाल अभी गहराए ही हुए हैं कि कुछ खबरों ने दूसरे प्रश्न भी खड़े कर दिए हैं। मुद्दा यह है कि क्या प्रशासन ने कोरोना महामारी को लोगों पर नजर रखने का मौका बना लिया है? मसलन, दिल्ली, मुंबई और अन्य बड़े शहरों में पिछले दिनों लॉकडाउन तोड़ने वालों पर नजर रखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। तेलंगाना पुलिस तो एक कदम और आगे बढ़ गई है। वह सीसीटीवी की मदद से आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हुए फेस मास्क के नियमों का उल्लंघन करने वालों की पहचान कर कर रही है। एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून प्रशासन दूसरे जिलों और राज्यों से लाए गए लोगों पर होम क्वारंटीन के दौरान जीपीएस से निगरानी कर रहा है। जिला प्रशासन की टीम के सदस्य ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि जो भी देहरादून में दाखिल हो वो अपने मोबाइल पर आईजीआईएस जिओ-लोकेटर नामक एप्लिकेशन इंस्टॉल करे। जब किसी शख्स को घर पर क्वारंटीन के लिए रखा जाता है और वह घर से 50 मीटर की दूरी पर चला जाता है, तो एक अलर्ट जारी होता है। उस शख्स की हलचल इंटिग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल रूम को मिलती है। बाद में यह सूचना पुलिस को दे दी जाती है ताकि पुलिस कर्मचारी तत्काल कार्रवाई कर सके। जबकि भारत सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप को लेकर सख्त रवैया अपनाया हुआ है।
आरोग्य सेतु कॉन्टैक्ट ट्रैसिंग ऐप है, जिसे कोरोना से लड़ने के लिए कारगर बताया गया है। लेकिन डर इस बात का है कि कहीं भारत सरकार भी चीन के रास्ते पर चलते हुए हाईटेक सोशल कंट्रोल कायम ना करने लगे। आरोग्य सेतु ऐप की मदद से जीपीएस लोकेशन डाटा को ब्लटूथ के जरिए केंद्रीय डाटाबेस में इकट्ठा किया जाता है। सरकार ने निजी और सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए इस ऐप को अनिवार्य कर दिया है। डिजीटल स्वतंत्रता के जानकार इस कदम का विरोध कर रहे हैं। निजी डेटा सुरक्षा विधेयक का पहला मसौदा तैयार करने वाली वाली समिति के अध्यक्ष रह चुके जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा कह चुके हैं कि सरकार आपकी सहमति के बिना दबाव डाल रही और डेटा ले रही है। उन्होंने चेतावनी दी थी कि एक बार मौलिक अधिकारों का हनन हो जाता है और कोई सवाल नहीं करता, अगर कोर्ट भी मदद को आगे नहीं आता है तो फिर हालत चीन से भी खराब माना जाएगा। क्या सचमुच हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं?
महामारी बनी निगरानी का मौका?
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