बेबाक विचार

खुदकुशी के लिए मजूबर गृहणियां

ByNI Editorial,
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खुदकुशी के लिए मजूबर गृहणियां
सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी। यानी हर दिन औसतन 61 गृहणियां आत्महत्या कर लेती हैँ। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि भारत अब दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया है, जहां ऐसी आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही हैं। हाल में शादीशुदा महिलाओं की आत्म-हत्या की कम से कम दो ऐसी खबरें आईं, जो मीडिया में खासी चर्चित रहीं। उन दोनों महिलाओं के बारे में बताया गया कि पारिवारिक परेशानियों की वजह से उन्होंने अपनी जान दे दी। चूंकि इस घटनाओं का संदर्भ बड़ा है, इसलिए स्वाभाविक है कि उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा। सच यह है कि भारत में आत्महत्या करने वाली शादीशुदा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों से पता चला है कि पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी। यानी हर दिन औसतन 61 गृहणियां आत्महत्या कर लेती हैँ। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि भारत अब दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया है, जहां ऐसी आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही हैं। समाजशास्त्रियों के मुताबिक महिलाओं में बढ़ती इस प्रवृत्ति के लिए घरेलू हिंसा, कम उम्र में विवाह और मातृत्व, आर्थिक स्वतंत्रता की कमी आदि जैसे कई कारण प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैँ।  इस स्थिति को कोरोना वायरस महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया है। इस परिस्थिति की वजह से महिलाओं के पास सार्वजनिक समारोहों में आने-जाने और अन्य महिलाओं से अपनी बातें साझा करने के मौके कम हो गए हैं। Read also ‘सत्ता’ संग ही 47 में ‘भय’ भी ट्रांसफर! कोविड के दौरान हमने घरेलू हिंसा में भी वृद्धि देखी गई है। उधर नौकरी जाने के कारण गृहणियों की स्वायत्तता और कम हो गई। इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है। भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं। ज्यादातर महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी बीमारियों में शर्म और कलंक के डर से पेशेवर चिकित्सकों के पास नहीं जातीं। सार्वजनिक जागरूकता की कमी और अवसाद की खराब समझ ने समस्या को और योगदान बढ़ा दिया है। आत्महत्या के विचार या अत्यधिक निराशा लाचारी ऐसे संकेतक हैं, जो पिछले वर्ष आत्महत्या के वास्तविक मामलों में स्पष्ट रूप से देखे गए। जो शादीशुदा महिलाएं ऐसे समूह से आती हैं जो कम जागरूक हैं और जहां महिलाएं परिवार के अन्य सदस्यों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, वहां अवसाद अधिक गंभीर रूप ले लेता है। दरअसल, अपनी चिंता के साथ महिलाओँ को अकेले संघर्ष करने के लिए छोड़ दिया जाता है। यही वजह है कि भारत में शादी शुदा महिलाओं में आत्महत्या की दर अधिक देखी जा रही है।
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