बेबाक विचार

इस पर रोयें या हंसे?

ByNI Editorial,
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इस पर रोयें या हंसे?
अगर महामारी के दौर में गैर बराबरी इसलिए बढ़ जाए कि धनी तबकों ने उस दौरान दी गई राहत का लाभ उठा लिया, तो उससे समझा जा सकता है कि दुनिया भर में सरकारों ने इस कैसी नीतियां अपनाईं? ये कहानी लगभग पूरी दुनिया की है। सरकारों ने महामारी से उबरने की कोशिश में बाजार में नकदी की मात्रा बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन कॉरपोरेट सेक्टर ने आसान शर्तों पर मिले कर्ज या सहायता का निवेश समाज में नही किया। बल्कि उस रकम को शेयर बाजार में लगाया। इस तरह उन्होंने शेयर सूचकांक उछलते चले गए। इससे वहां निवेश करने वाले लोगों की संपत्ति अकूत ढंग से बढ़ती चली गई। ये कहानी भारत की भी है, जहां जिस समय करोड़ों लोग रोजगार जाने के कारण मुसीबत में हैं, वहीं बीएसई सेंसेक्स 50 हजार के आंकड़े को पार कर गया। इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि बड़ी कंपनियों का धन और भी ज्यादा बढ़ गया है। कोविड-19 महामारी के दौरान असमानता में सबसे अधिक वृद्धि हुई है, ये बात पहले से भी जाहिर थी, लेकिन पिछले हफ्ते ब्रिटिश गैर-सरकारी संस्था ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट ने इस बात को आंकड़ों के साथ पेश कर दिया। विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ) के ऑनलाइन दावोस एजेंडा शिखर बैठक में एक सत्र में संबोधित करते हुए ऑक्सफेम के एक अधिकारी ने कहा- ‘समानता एक सैद्धांतिक और गंभीर रूपरेखा है और यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है। हम सरकारों की असमानता को दूर करने में विफलता की कीमत चुका रहे हैं। हमने असमानता में सबसे अधिक वृद्धि हाल मं देखी है।’ ऑक्सफेम का निष्कर्ष है कि महामारी की आर्थिक मार से उबरने में अरबों लोगों को एक दशक से अधिक का समय लग सकता है। इस संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी पिछले सौ वर्षों का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट है और इसके चलते 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट पैदा हुआ। लेकिन लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 फीसदी बढ़ी और 2009 से इन अरबपतियों की संपत्ति 90 फीसदी बढ़कर 422.9 अरब डॉलर हो गई है। इसके बाद भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में विश्व में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया है। अब यह हम पर है कि इसे एक उपलब्धि मानकर इस पर गर्व करें या फिर इस पर रोयें।
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