मुद्दा यह नहीं है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंसा किसने शुरू की। मुद्दा यह है कि चाहे इसकी शुरुआत जिसने भी की, क्या उसे तुरंत रोकना प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं थी? और क्या ना रोक पाने की जिम्मेदारी उसे नहीं लेनी चाहिए? तीन घंटों तक विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों पर हमला होता रहे, यह सिरे से अस्वीकार्य है। इस संदर्भ में जेएनयू छात्र संघ की यह मांग प्रासंगिक हो जाती है कि विश्वविद्यालय के कुलपति को इस्तीफा देना चाहिए। जेएनयू परिसर में कुछ नकाबपोश हमलावरों के उपद्रव के बाद व्यापक नाराजगी फैली है, जो लाजिमी है। हमलावरों ने बड़ी संख्या में ना सिर्फ छात्रों बल्कि अध्यापकों को भी निशाना बनाया और परिसर में तोड़-फोड़ की। लगभग तीन घंटों तक चले इस हमले में कम-से-कम 25 छात्र और अध्यापक घायल हो गए। इनमें से कई को एम्स और सफदरजंग अस्पतालों में भर्ती करना पड़ा। दिल्ली पुलिस का कहना है कि सीसीटीवी फुटेज और सोशल मीडिया पर चल रही तस्वीरों के आधार पर कुछ हमलावरों की पहचान की गई है। इस हमले के बाद जेएनयू के छात्रों ने यूनिवर्सिटी परिसर में और दिल्ली पुलिस के मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया। इस घटना की खबर आने के बाद पूरे देश में अलग अलग जगहों पर छात्रों और आम लोगों ने प्रदर्शन किया। \
बेंगलुरू, अलीगढ़, मुंबई और दिल्ली समेत कई शहरों में छात्र इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए। देर शाम जेएनयू परिसर से कई छात्रों के सुरक्षा कारणों से हॉस्टल छोड़ कर जाने की खबरें सामने आईं। गौरतलब है कि हमलावरों ने लड़कियों के हॉस्टल में भी घुसने की कोशिश की। वहां तोड़फोड़ की और छात्रों को मारा पीटा। घायलों में जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष ओइशी घोष और प्रोफेसर सुचारिता सेन भी शामिल हैं। इनके लहूलुहान चेहरों वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं। रविवार शाम चार बजे से कुछ पहले ही शुरू हो गया था, जब हाथों में डंडे, लाठी और लंबे हथौड़े लिए नकाबपोशों को परिसर में पहली बार एकत्रित होते देखे जाने की खबरें आईं। अंदाजा है कि साढ़े छह बजे के आस-पास इन नकाबपोशों ने हमला शुरू किया और फिर कम से कम रात नौ बजे तक सात हॉस्टलों में मार-पीट और तोड़-फोड़ की। ये घटना असामान्य और भयानक है। इससे आज की सियासत भी जुड़ी हुई है। इसीलिए इसकी सच्चाई सामने आऩी चाहिए। मगर ऐसा होगा, इसकी उम्मीद कम है।