मांस का उत्पादन एक बड़ा बिजनेस है। दुनिया के करोड़ों लोग बिना इसे खाये रह नहीं पाते। लेकिन ये कारोबार पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक होता जा रहा है। दरअसल, मांस का कारोबार खाद्य सुरक्षा के लिए भी मुश्किलें पैदा कर रहा है। इसलिए मांस उत्पादन के लिए मवेशी पाले जाते हैं, जिन्हें उतना अनाज खिलाया जाता है, जिससे करोड़ों लोगों का पेट भर सकता है। अब इन बातों पर वैज्ञानिक भी जोर दे रहे हैं। उन्होंने मांस और मवेशी कारोबार पर अधिक टैक्स लगाने का सुझाव दिया है। इस बारे में एक ताजा अनुसंधान रिपोर्ट आई है। रिसर्च का नेतृत्व करने वाले पीटर डासचाक जीव विज्ञानी हैं। रिपोर्ट जारी करते वक्त उन्होंने कहा कि जरूरत से ज्यादा मीट खाना हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह है। यह पर्यावरण पर होने वाले असर के लिहाज से भी लंबे समय तक नहीं चल सकता। यह महामारियों का जोखिम भी बढ़ा रहा है। इनफ्लुएंजा वायरस के फैलाव के पीछे मुख्य वजह भारी मात्रा में पोल्ट्री और पोर्क के दुनिया के कुछ हिस्सों में उत्पादन को बताया गया है। इसके अलावा गोमांस के लिए मवेशियों को पालना भी लैटिन अमेरिका में जंगलों की कटाई और इको-सिस्टम के नुकसान की एक वजह है। रिसर्च रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 की तुलना में महामारियां और ज्यादा आएंगी, तेजी से फैलेंगी, भारी नुकसान होगा और ज्यादा लोगों की जान जाएगी। इसे रोकने का यही तरीका है कि उन आवासों को खत्म होने से बचाया जाए, जो वायरसों को जंगली जीवों से इंसानों तक पहुंचने से रोकते हैं।
शोधकर्ताओं सरकारों से यह भी अनुरोध किया है कि वे महामारी को रोकने के लिए कदम उठाएं ना कि उनके उभरने के बाद उनसे बचने के लिए। रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर के 22 वैज्ञानिकों ने मिल कर तैयार की है। इसमें मोटे तौर पर आम सहमति है कि लोगों को मीट खाना घटाना होगा। लोगों की खुराक को इस तरह बदलना होगा ताकि वो सीमित मात्रा में ही मीट खाएं। ऐसा करना महामारियों का खतरा घटाने के साथ ही जैव विविधता और प्रकृति को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। इन वैज्ञानिकों ने कहा है कि मवेशियों या मीट पर अधिक टैक्स लगाने होगा। न भविष्य की महामारियों को रोकने के लिए यह कीमत लोगों को अभी से चुकानी होगी। सवाल है कि क्या सरकारें और आम लोग इस पर ध्यान देंगे? क्या वे अपनी जीभ की पसंद पर विवेक को तरजीह देंगे?
मांसाहार के बड़े खतरे
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