बेबाक विचार

अब दलाल स्ट्रीट पर मार

ByNI Editorial,
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अब दलाल स्ट्रीट पर मार
जिस समय जमीनी अर्थव्यवस्था तबाह हो, उस समय भी अगर शेयर सूचकांक चढ़ रहे हों, तो ऐसी समझ बनाना लाजिमी ही है। ये विरोधाभास कोरोना काल में और अधिक साफ हो गया। जिस समय लॉकडाउन के कारण तमाम आर्थिक गतिविधियां ठप थीं, तब शेयर सूचकांकों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली।  भारत के शेयर बाजारों में सोमवार को आई भारी गिरावट के बाद मंगलवार को स्थिति कुछ संभली। लेकिन तमाम संकेत यही हैं कि ये राहत फ़ौरी है। इसलिए कि जिन वजहों से शेयर बाजारों में गिरावट आ रही है, वे ठोस हैँ। मंगलवार को मिली फौरी राहत उतनी नहीं थी कि जिससे हाल में कई हजार अंकों की आई गिरावट की भरपाई हो जाए। तो यह कहा जा सकता है कि भारत का मेनस्ट्रीट तबाह होने के बाद अब बारी दलाल स्ट्रीट पर मार पड़ने की है। अमेरिका में शेयर बाजारों और असली अर्थव्यवस्था के बीच संबंध टूटने से बनी स्थिति को मेनस्ट्रीट बनाम वॉलस्ट्रीट का विरोधाभास कहा जाता है। जिस समय जमीनी अर्थव्यवस्था तबाह हो, उस समय भी अगर शेयर सूचकांक चढ़ रहे हों, तो ऐसी समझ बनाना लाजिमी ही है। ये विरोधाभास कोरोना काल में और अधिक साफ हो गया। जिस समय लॉकडाउन के कारण तमाम आर्थिक गतिविधियां ठप थीं, तब शेयर सूचकांकों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली। ऐसा सिर्फ अमेरिका में ही नहीं हुआ। Read also संघवाद की धारणा पर बड़ा खतरा यूरोप और पूर्वी एशिया में भी ऐसा नजारा रहा। और वैसा ही नजारा मुंबई के दलाल पथ पर रहा, जहां भारत का मुख्य शेयर बाजार स्थित है। लेकिन अब अब संकेत हैं कि दलाल स्ट्रीट पर जो चमक पिछले दो साल से जारी रही है, उसके मद्धम पड़ने का वक्त आ गया है। इसकी वजह अमेरिका में बदली जा रही मौद्रिक नीति है। वहां के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने एलान कर दिया है कि इस वर्ष वह कम से कम चार बार ब्याज दरें बढ़ाएगा। तो जब डॉलर में निवेश करने पर अधिक ब्याज की उम्मीद बन रही हो, तो संस्थागत निवेशक अपना पैसा भारत में क्यों लगाए रखेंगे? फेडरल रिजर्व ने ये एलान जब से किया, तब से भारत से निवेश के पलायन का दौर है। तो अब मार उस मध्य वर्ग पर भी पड़ेगी, जिसे मुचुअल फंड या शेयरों में सीधे निवेश के कारण महामारी काल भी ज्यादा नहीं चुभा था। अब शेयर बाजार में गिरावट के साथ ये चुभन उसे झेलनी होगी। एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में अगर वित्त मंत्री ने कुछ चमत्कार नहीं किया, तो उसके बाद ये चुभन और तीखी हो जा सकती है। तो जैसाकि कहा जाता है, जब आग लगती है, तो लपटें देर-सबेर सब तक पहुंचती हैं। अब इसका वक्त आ गया है।
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