बेबाक विचार

कृषि सुधारों पर उभरे मतभेद

ByNI Editorial,
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कृषि सुधारों पर उभरे मतभेद
लॉकडाउन लागू होने के बाद आत्म निर्भर भारत पैकेज के तहत भारत सरकार ने किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने का दावा करते हुए मार्केटिंग व्यवस्था में परिवर्तन के तीन अध्यादेश पारित किए थे। सरकार ने इसे ‘एक राष्ट्र, एक कृषि बाजार’ बनाने की ओर बढ़ते कदम के रूप में पेश किया। नरेंद्र मोदी सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन किया, जिसके जरिये खाद्य पदार्थों की जमाखोरी पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया। इसका मतलब है कि अब व्यापारी असीमित मात्रा में अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल प्याज और आलू को इकट्ठा करके रख सकते हैं। दूसरे सरकार ने एक नया कानून बनाने के मकसद से कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश- 2020 पेश किया। इसका उद्देश्य कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। तीसरे कदम के तौर पर केंद्र ने मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश- 2020 पारित किया है। यह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी वैधता प्रदान करता है, ताकि बड़े बिजनेस और कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेकर खेती कर सकें। अनेक कृषि विशेषज्ञों ने इसका स्वागत किया। मगर किसान नेता और यहां तक कि बड़ी संख्या में किसान भी इससे खुश नहीं हैं। कुछ रोज पहले कई राज्यों मे किसानों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किए। समर्थकों का कहना है कि कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन एक सही कदम है। ये कानून 1950 के दशक में लाया गया था, जब देश खाद्य संकट से जूझ रहा था। कानून तात्कालिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाया गया था। अब खाद्य पदार्थों को जमा करने पर रोक लगाने की जरूरत नहीं है। इस कदम से ट्रेडर्स और स्टॉकिस्ट को फायदा होगा और हो सकता है कि इसकी वजह से कृषि उत्पादों के बाजार मूल्य में गिरावट न आए। दूसरे अध्यादेश को लेकर कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह एपीएमसी की व्यवस्था खत्म करने की कोशिश है, जहां करीब-करीब एमएसपी के बराबर किसानों को मूल्य मिल जाता था। मगर दूसरी जगह फसल की कीमत ज्यादा होने बावजूद वहां जाकर किसान उसे नहीं बेच पाते थे। अब वे ऐसा कर सकेंगे। मगर आलोचकों का कहना है कि ये सारे सुधार कॉरपोरेट सेक्टर के हित में जाते हैं। अंततः किसान इनकी वजह नुकसान में रहेंगे। ऐसा लगता है कि राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के किसान संगठन इसी राय के हैं। इसीलिए इन राज्यों में उनके विरोध का काफी असर देखा गया।
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