Parliament Monsoon Session Opposition संसदीय तालमेल में एकता दिखाना सिर्फ एक पहलू है। जहां तक जमीनी लड़ाई की बात है, तो वहां एकता का मतलब ताकत यानी वोट आधार का जोड़ होता है। सवाल है कि जो पार्टियां एकजुट दिख रही हैं, चुनावी मुकाबले में वे एक दूसरे की ताकत कितनी बढ़ाने की स्थिति में हैं।
संसद के मौजूदा सत्र के दौरान विपक्षी दलों में दुर्लभ एकता दिखी है। पेगासस के मामले पर कई कांग्रेस विरोधी पार्टियां भी कांग्रेस के साथ तालमेल बनाने के लिए आगे आई हैं। यहां तक जब राहुल गांधी ने बैठकों की जानकारी प्रेस को दी, तो उन नेताओं को उनके पीछे खड़ा होने में कोई गुरेज नहीं हुआ। इससे भाजपा विरोधी खेमों में एक नई आशा पैदा होती दिख रही है। बहरहाल, ये उम्मीद बहुत ठोस जमीन पर टिकी है, यह शायद ही कहा जा सकता है। इसलिए संसदीय तालमेल में एकता दिखाना सिर्फ एक पहलू है। जहां तक जमीनी लड़ाई की बात है, तो वहां एकता का मतलब ताकत यानी वोट आधार का जोड़ होता है। सवाल है कि जो पार्टियां एकजुट दिख रही हैं, चुनावी मुकाबले में वे एक दूसरे की ताकत कितनी बढ़ाने की स्थिति में हैं।
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दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे एक-दो राज्यों को छोड़ दें, तो ये सूरत बहुत उज्ज्वल नहीं दिखती। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में तो हाल का ट्रेंड यह रहा है कि समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों का आधार जिन जातियों में रहा है, उनके वोटर भी उन सीटों पर इन पार्टियों को वोट नहीं देते, जहां उनकी अपनी जाति का उम्मीदवार ना हो। फिर इन पार्टियों ने कोई साझा कार्यक्रम या वैचारिक आम सहमति बनाने की कोशिश की हो, इसके कोई संकेत नहीं हैं। ऐसे में ये एकता फिलहाल भले जितनी प्रभावी दिख रही हो, उससे पूरी सियासी सूरत बदलेगी, ये उम्मीद जोड़ लेना उचित नहीं होगा। फिलहाल, यह जरूर संतोष की बात है कि संसद के मौजूदा सत्र में विपक्ष किसान आंदोलन और पेगासस मामलों को लेकर काफी आक्रामक है।
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विशेष रूप से पेगासस मामले पर चर्चा कराने से सरकार के इंकार कर देने के बाद विपक्ष के सांसद दोनों सदनों में और संसद के बाहर भी पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इस बीच ममता बनर्जी के दिल्ली आने से भी एकता की चर्चा ने जोर पकड़ा है। मगर ठोस हाल यह है कि विपक्ष की प्रमुख पार्टी कांग्रेस अभी तक अपनी समस्या का हल नहीं ढूंढ पाई है। कांग्रेस खुद अपने संगठन के अंदर नेतृत्व के संकट से अभी भी गुजर रही है। इसका असर पार्टी की राज्य इकाइयों में दिख रहा है। ऐसे में व्यापक विपक्षी एकता बनना और उससे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के लिए चुनौती पैदा होना फिलहाल दूर की बात है।
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एकता सिर्फ एक पहलू है
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