बेबाक विचार

मंत्रिपरिषद में फेरबदल : भाजपा ने जो बताया

ByNI Editorial,
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मंत्रिपरिषद में फेरबदल : भाजपा ने जो बताया

भाजपा ने बता दिया है कि अब मंत्रिपरिषद में 13 दलित, 27 ओबीसी और आठ जनजातियों के मंत्री हैं। आम भारतीय जन मानस की जैसी सरंचना है, उसमें यह महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही मंडलवादी और कांशीरामवादी प्रतिनिधित्व की राजनीति पूरी तरह हिंदुत्व परियोजना में समाहित कर ली गई है।

PM Modi new Cabinet : नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद में फेरबदल की खबर के लाइव प्रसारण के समय एक टीवी चैनल पर अचानक ये बताया गया कि मोदी सरकार ने नए मंत्रियों की जो प्रोफाइल भेजी है, उसमें कुछ नई बातें हैँ। अनुभवी पत्रकारों ने कहा कि ऐसा उन्होंने इसके पहले कभी नहीं देखा था। नए मंत्रियों के परिचय में यह उल्लेख है कि वे किस जाति और उस जाति समूह की किस उप जाति से आते हैँ। जिस क्षेत्र से आते हैं उसका भी ब्योरा दिया साफ शब्दों में दिया गया था। यानी भाजपा यह मेसेज समाज में देना चाहती थी कि मंत्रिपरिषद की नई संचरना तय करते समय उसने किस तरह की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की है। ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की धारणा 1990 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भीतर स्वीकृत हुई थी। उसके मुताबिक हिंदू समाज की जातीय रचना को स्वीकार करते हुए हिंदुत्व की परियोजना को व्यापकता देने की बात कही गई थी। कहा जा सकता है कि मंत्रिपरिषद के ताजा विस्तार के साथ ये समझ अपने चरम पर पहुंच गई है।

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Modi Cabinet Expansion भाजपा ने बता दिया है कि अब PM Modi new Cabinet में 13 दलित, 27 ओबीसी और आठ जनजातियों के मंत्री हैं। शहरी समाज भले इसकी अहमियत ना समझ पाए, लेकिन आम भारतीय जन मानस की जैसी सरंचना है, उसमें यह महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही मंडलवादी और कांशीरामवादी प्रतिनिधित्व की राजनीति पूरी तरह हिंदुत्व परियोजना में समाहित कर ली गई है। शासन की सफलताओं और विफलताओं पर बौद्धिक समाज चर्चा करता रहेगा। लेकिन इस मेसेजिंग के जरिए भाजपा ने उसकी काट का उपाय फिलहाल कर लिया है। बाकी उसका जो शहरी समर्थक वर्ग है, उसके लिए भी स्पष्ट मेसेजिंग की गई। what is cooperative उनके मेरिटोक्रेसी वाली सोच को तुष्ट करने के लिए बताया गया है कि अब सरकार में 13 वकील, छह डॉक्टर, पांच इंजीनियर, सात सिविल सर्वेंट, सात पीएचडी और तीन एमबीए डिग्रीधारी मंत्री हैँ। 77 में से 68 मंत्री ग्रैजुएट हैं। इस तरह मेरिट में भी यह एक “काबिल” मंत्रिपरिषद है। बाकी जहां तक कामकाज का सवाल है, तो पहले भी मंत्रियों के जिम्मे कुछ खास नहीं था। अब भी नहीं रहेगा। अहम फैसले प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की जोड़ी लेती रहेगी। मंत्रियों को लाल बत्ती वाली गाड़ियां मिल जाएंगी, जिसकी रोशनी उन जाति समूहों तक पहुंचेगी, जिनसे वे आते हैँ। भाजपा और आरएसएस के रणनीतिकारों की नजर में वर्तमान राजनीति में सफलता के लिए इतना काफी है।
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