बेबाक विचार

मुद्दा है राजनीतिक इच्छाशक्ति

ByNI Editorial,
Share
मुद्दा है राजनीतिक इच्छाशक्ति
क्या सीसीटीवी कैमरा लगाने से पुलिस की यातनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट की राय से ऐसा लगता है कि यह संभव है। लेकिन जब यातनाएं सरकार की नीति के तहत दी जाती हों, तो आखिर ऐसा कैसे मुमकिन हो सकता है? पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा, उससे ऐसे अहम सवालों का उत्तर नहीं मिला। कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा कि वे सुनिश्चित करें कि हर पुलिस स्टेशन के सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं, मुख्य द्वार, लॉकअप, गलियारों, लॉबी और रिसेप्शन पर सीसीटीवी कैमरे लगे हों। साथ ही बाहर के क्षेत्र के लॉकअप कमरों को कवर किया जाए, जिससे कोई भी हिस्सा कैमरे की जद से बाहर न होने पाए। इसी के साथ कोर्ट ने केंद्र सरकार से सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), डायरेक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) और सीरियस फ्रॉड इनवेस्टीगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) के कार्यालयों समेत ऐसी जांच एजेंसियों के दफ्तर में सीसीटीवी कैमरे लगाने और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने को कहा, जिनके पास पूछताछ और गिरफ्तारी की शक्ति है। कोर्ट की एक बेंच ने थानों में सीसीटीवी लगाने का ये आदेश एक याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिका में गवाहों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि थानों के बाहरी हिस्से में लगने वाले सीसीटीवी कैमरे नाइट विजन वाले होने चाहिए। साथ ही जिन थानों में बिजली और इंटरनेट नहीं हैं, वहां सरकार को सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सौर/पवन ऊर्जा समेत बिजली मुहैया कराने के किसी भी तरीके का उपयोग करके बिजली की सुविधा दी जा सकती है। कहा जा सकता है कि ये सारी बातें कोर्ट की सदिच्छा को जाहिर करती हैं। यह स्वागतयोग्य है। मगर मुद्दा है कि अगर सरकारों ने ऐसा नहीं किया, तो कोर्ट क्या करेगा? अतीत के उसके पुलिस सुधार संबंधी आदेशों का जो हाल हुआ है, उसे देखते हुए ये सवाल अहम है। अतीत के अनुभवों के कारण ही ये भरोसा नहीं बंधता कि इस आदेश से असल में सूरत बदलेगी। कोर्ट ने ताजा आदेश में यह भी कहा है कि हिरासत में पूछताछ के दौरान आरोपी के घायल होने या मौत होने पर पीड़ित पक्ष को शिकायत करने का अधिकार है। सीसीटीवी फुटेज से ऐसी शिकायतों की जांच में आसानी होगी। इस बात कोई असहमत नहीं हो सकता। लेकिन असल सवाल अमल का है।
Published

और पढ़ें