बेबाक विचार

कोरोना की अबूझ पहेली

ByNI Editorial,
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कोरोना की अबूझ पहेली
ये बात फिलहाल बेशक कही जा सकती है कि कोविड- 19 वायरस के बारे में दुनिया के पास अभी जितनी जानकारियां हैं, वे अपूर्ण हैं। इसकी हर नई लहर के साथ नए लक्षण और शरीर पर इसके अलग प्रभावों की जानकारी सामने आ जाती है। मसलन, रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में दर्द भी इसका लक्षण है, ये अब चर्चा में आया है। इसी तरह इसके संक्रमण से व्यक्ति कब और कितने दिन में ठीक होता है, ये कहना भी अब मुश्किल हो गया है। हाल में हुए अध्ययनों के आधार पर अब विशेषज्ञों ने कहा है कि कोविड- 19 ऐसी समस्या नहीं है, जिससे एक बार ठीक होने के बाद मुक्ति मिल जाती है। बल्कि इसकी वजह से हेल्थ सिस्टम पर एक लंबी अवधि का बोझ आ पड़ा है। ये बोझ कितना है, इसका अभी दुनिया को अंदाजा नहीं है। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया है कि इनसान की मानसिक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर भी ये वायरस अपना बहुत खराब असर डालता है। अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के छह महीनों के अंदर 34 प्रतिशत ठीक हुए मरीजों में न्यूरोलॉजी संबंधी या मानसिक समस्याएं उभरीं। ये अध्ययन रिपोर्ट ब्रिटिश जर्नल लासेंट साइकियाट्री में छपी है। इस रिपोर्ट के बारे में कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि इसकी कमी यह है कि इसे रूटीन हेल्थ केयर डेटा के आधार पर तैयार किया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि जो लोग अतिरिक्त समस्या से ग्रस्त हुए, उनके बारे में पूरी पड़ताल नहीं की गई है। यानी यह अंदाजा नहीं लगाया गया है कि उनके इलाज की आगे क्या चुनौतियां हैं। लेकिन ये साफ है कि ये चुनौतियां गंभीर हैं। गौतलब है कि इस संक्रमण के कारण फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने और कई पुरानी बीमारियों की स्थिति और गंभीर हो जाने की बातें अब जग-जाहिर हैं। इसका मतलब हुआ कि जो लोग वायरस के संक्रमण से उबर गए बताए जाते हैं, उन्हें भी मेडिकल सहायता कुछ समय देते रहने की जरूरत पड़ सकती है। हालिया अध्ययन रिपोर्ट को हमें गंभीरता से लेना चाहिए। इसलिए कि इस अध्ययन को अपनी तरह की सबसे बड़ी स्टडी बताया गया है। इसमें 2,36,000 कोविड- 19 मरीजों के स्वास्थ्य संबंधी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का अध्ययन किया गया। यानी सैंपल साइज बड़ा है। इसके निष्कर्ष आगाह करने वाले हैं। अगर सरकार को लोगों की स्वास्थ्य की चिंता हो, तो उसे इनके मुताबिक इंतजाम करने पर ध्यान देना चाहिए।
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