बीते 12 साल से जर्मनी में ऐसी सरकार रही है, जिसमें जिसमें दोनों प्रमुख पार्टियां- सीडीयू और एसपीडी शामिल रही हैँ। रविवार को हुए आम चुनाव के बाद क्या उससे अलग कोई सूरत देश में कैसी उभरेगी, इस बारे में कयास लगाए जा रहे हैँ। लेकिन वैसा हो पाना आसान नहीं दिखता है। Social democrat party Germany
जर्मनी की चुनाव प्रणाली ऐसी है कि वहां आसानी से सरकार बनने की सूरत नहीं उभरती। ऐसा पिछले चार चुनावों से हो रहा है। नतीजा यह है कि बीते 12 साल से वहां ऐसी सरकार रही है, जिसमें जिसमें दोनों प्रमुख पार्टियां- क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) शामिल रही हैँ। रविवार को हुए आम चुनाव के बाद क्या उससे अलग कोई सूरत देश में कैसी उभरेगी, इस बारे में कयास लगाए जा रहे हैँ। लेकिन ऐसा हो पाना आसान नहीं होगा। आम चुनाव से कोई साफ जनादेश नहीं उभरा। एसपीडी जरूर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन उसे या उसके संभावित गठबंधन सहयोगियों को इतनी सीटें नहीं मिलीं, जिससे वह जल्द देश में नई सरकार बना पाए। इसलिए फिलहाल यही लगता है कि अगली सरकार बनने में लंबा समय लगेगा। और मुमकिन है कि फिर एसपीडी और सीडीयू को ही मिल कर सरकार बनानी पड़े। चुनाव नतीजों से जो एक बात साफ हुई है, वह सिर्फ यह है कि जर्मनी की सत्ता मध्यमार्गी ताकतों के हाथ में ही रहेगी।
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इसकी वजह यह है कि चुनाव में धुर दक्षिणपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर ड्यूशलैंड (एएफडी) और धुर वामपंथी पार्टी डाय लिंके को नुकसान हुआ। जबकि एसपीडी, ग्रीन पार्टी और मुक्त बाजार की समर्थक फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफपीडी) को लाभ हुआ है। डाय लिंके की सीटें घट जाने के कारण पहले जताई गई ये संभावना कमजोर पड़ गई है कि एसपीडी, ग्रीन पार्टी, और डाय लिंके मिल कर वामपंथी रूझान वाली सरकार बना लेंगी। एक विकल्प यह जरूर है कि एसपीडी ग्रीन पार्टी और एफडीपी के साथ मिल कर सरकार बनाए। लेकिन ग्रीन पार्टी और एफडीपी की नीतियां एक दूसरे के खिलाफ हैँ। ऐसे में उस तरह के गठबंधन को संभालना टेढ़ी खीर साबित होगा। वैसे सीडीयू को भले इस बार 1949 के बाद का सबसे खराब चुनावी नतीजे का मुंह देखना पड़ा हो, लेकिन उसके नेता अरमिन लैशेट ने चांसलर पद पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। संभवतः उनकी उम्मीद की वजह ऐसी कई पुरानी मिसालें हैं, जब जर्मनी में सरकार चुनाव में दूसरे नंबर पर रही पार्टी के नेतृत्व में बनी है। लेकिन फिलहाल मोटी समझ यही है कि अगर दोनों बड़ी पार्टियों ने ही फिर हाथ मिलाया, तो इस बार नेतृत्व एसपीडी के हाथ में होगा। उसके साथ ही अंगेला मैर्केल के दौर का अंत होगा, जिनकी विदाई एक तरह का युगांतर है।
अस्पष्ट जनादेश, अधर में देश
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