अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो रोज पहले अपनी विदेश नीति के बारे में पहला भाषण दिया। इससे साफ संकेत मिला कि बाइडेन के कार्यकाल में पिछले प्रशासन की तुलना में कई चीजें बदलेंगी। लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें कोई बदलाव नहीं होगा। बाइडेन ने विदेश नीति संबंधी नजरिए में बड़े परिवर्तन की घोषणा की, उसके बावजूद उन क्षेत्रों में बदलाव नहीं होगा, तो माना जा सकता है कि उन मसलों पर देश में पूरी सहमति है। बाइडेन ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए बाइडेन ने एलान किया कि अमेरिका वापस आ गया है (अमेरिका इज बैक)। साथ ही उन्होंने कहा कि अब कूटनीति अमेरिकी विदेश नीति के केंद्र में वापस आ गई है। मतलब साफ है कि बाइडेन प्रशासन अपने सामने मौजूद चुनौतियों को हल करने में कूटनीतिक प्रयासों को प्राथमिकता देगा। जबकि ट्रंप प्रशासन एकतरफा ढंग से कदम उठाने में यकीन करता था।
ट्रंप प्रशासन की नीतियों के विपरीत जो घोषणाएं उन्होंने दो टूक कीं, उनमें जर्मनी से अमेरिकी सेना की वापसी पर रोक लगाना, अमेरिका में आने वाले शरणार्थियों की संख्या पर लगी सीमा में छूट देना, और दुनिया भर में समलैंगिकों के अधिकारों को समर्थन देना शामिल है। उनका यह भी कहना था कि दुनिया में “बढ़ रही तानाशाही” का मुकाबला सभी देशों को मिल-जुल कर करना होगा। अब अमेरिकी कूटनीति में लोकतंत्र को केंद्रीय महत्त्व दिया जाएगा। बाइडेन ने कहा कि अमेरिका में लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष से ऐसी कूटनीति को प्रेरणा मिलेगी। विश्लेषकों का कहना है कि इस बयान को छह जनवरी को कैपिटॉल हिल पर हुए हमले की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। साथ ही इससे यह संकेत मिलता है कि लोकतंत्र को लेकर बाइडेन और डेमोक्रेटिक पार्टी की चिंताएं अब अमेरिका की विदेश नीति में भी झलकेंगी। बहरहाल, बाइडेन ने साफ संकेत दे दिया है कि ट्रंप प्रशासन ने चीन, रूस, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला पर जो प्रतिबंध लगाए थे, उनमें ज्यादा ढील दिए जाने की गुंजाइश नए प्रशासन के समय भी नहीं है। ये सभी देश लोकतंत्र की अमेरिकी समझ के खाके में फिट नहीं बैठते। बहरहाल, अमेरिका की पश्चिम एशिया नीति में बड़ा बदलाव आएगा। गुरुवार को बाइडेन के भाषण के पहले ही विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने एलान किया कि अब अमेरिका यमन में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन की आक्रामक कार्रवाइयों का समर्थन नहीं करेगा।