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किसान करें भी तो क्या?

महाराष्ट्र के किसान संघर्ष पर उतरे हैँ। कई जिलों के किसानों ने नासिक में इकठ्ठा हो कर वहां से करीब 170 किलोमीटर दूर राजधानी मुंबई के लिए पदयात्रा शुरू की। किसानों के 20 मार्च को मुंबई पहुंचने की संभावना है। पदयात्रा में कम से कम 10,000 किसान शामिल हैं। इस बीच खबर है कि महाराष्ट्र सरकार ने किसानों से संवाद की शुरुआत की है। यह स्वागतयोग्य है। लेकिन असल बात उन सवालों पर ध्यान देना है, जिनकी वजह से किसानों ने आंदोलन का रास्ता पकड़ा।

महाराष्ट्र के प्याज किसानों की मुसीबत की खबरें काफी समय से सुर्खियों में हैं। प्याज के दाम के धराशायी होने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। बहरहाल, पदयात्रा पर निकले किसानों की समस्या सिर्फ यही नहीं है। प्याज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के अलावा बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई फसल के लिए हर्जाना, कर्ज माफी, बिजली बिल माफी, कम से कम 12 घंटों की निरंतर बिजली सप्लाई, वन अधिकार कानून का पालन आदि मांगें शामिल हैं।

कहा जा सकता है कि ये तमाम मांगें चिरंतन किस्म की हैं। लेकिन ये मांगें इसलिए ऐसा महसूस होती हैं, क्योंकि किसानों की समस्याएं भी चिरंतन ही हैं। अब प्याज पर ही गौर करें। महाराष्ट्र में प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इस वर्ष अति उत्पादन की वजह से राज्य की मंडियों में प्याज के दाम इतने ज्यादा गिर गए हैं कि किसानों की लागत के बराबर भी आमदनी नहीं हो पा रही है। तो परेशान किसान विरोध प्रदर्शन पर उतरे। कुछ किसानों ने होली के समय अपने प्याज के ढेरों की ही होलिका जला दी थी, ताकि प्रशासन का उनकी तरफ ध्यान जाए। फिर जब ध्यान नहीं दिया गया, तो उन्होंने मुंबई पहुंचने का फैसला किया।

ताजा रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि बाजार में आई आलू की फसल के साथ भी प्याज जैसा ही हश्र होता नजर आ रहा है। आलू की बंपर फसल बाजार में आ चुकी है, लेकिन फसल को खरीदार नहीं मिल रहे हैं, जिसकी वजह से दाम कम से कम 20 प्रतिशत तक गिर गए हैं। ऐसे में किसानों के पास आंदोलन के अलावा क्या रास्ता बचता है?

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