चीन की तरह दुनिया का कारखाना बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को एक और झटका लगा है। अगर दुनिया में यह छवि बनी कि विदेशी कंपनियां भारत में सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर यहां कौन निवेश करेगा। लेकिन असल मुद्दा है कि कर्नाटक में आईफोन बनाने वाली फैक्टरी में पिछले दिनों हिंसा क्यों हुई। क्या इसके लिए श्रमिकों के प्रति बढ़ती लापरवाही जिम्मेदार नहीं है। निवेशक के हितों की बेशक रक्षा होनी चाहिए, लेकिन क्या श्रमिकों के समय पर वेतन पाने के बुनियादी अधिकार की कीमत पर होनी चाहिए, असल सवाल यही है। भारत में सरकारें अगर इन दोनों के हितों में तालमेल बनाते हुए उन्हें सुरक्षित नहीं कर सकतीं, तो कहा जा सकता है कि कर्नाटक में हुई इस घटना के लिए दोषी वही हैं। गौरतलब है कि फैक्टरी में हिंसा वेतन को लेकर श्रमिकों के बीच असंतोष की वजह से हुई। एप्पल ने कहा है कि वो विस्ट्रोन के खिलाफ सप्लायरों के दिशा निर्देशों के उल्लंघन की जांच कर रही है।
लेकिन इसी बीच सरकारी अधिकारियों ने हिंसा में शामिल श्रमिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी शुरु कर दी और डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया। सोशल मीडिया पर देखी गई हिंसा की वीडियो फुटेज में लोहे के डंडों से फोड़े हुए शीशे के पैनल और पलटी हुआ गाड़ियों को देखा गया। सीसीटीवी कैमरों, पंखों और लाइटों को खींच कर निकाल लिया गया। एक गाड़ी को आग भी लगा दी गई। श्रमिकों का कहना है कि उन्हें चार महीनों से वेतन नहीं मिला है। उसके ऊपर से अतिरिक्त शिफ्टों में काम करने के लिए भी उनसे कहा जा रहा था। ऐसा ना हो ये सुनिश्चित करना आखिर किसकी जिम्मेदारी है? कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री सीएन अश्वथनारायण ने घटना के तुरंत बाद कहा कि उनकी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि स्थिति जल्द से जल्द शांत हो जाए। उन्होंने यह सुनिश्चित करने का वादा भी किया कि सभी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा हो और उनका बकाया वेतन उन्हें मिल जाए। लेकिन अगर यह पहले ही किया गया होता, तो क्या बेहतर नहीं होता। ताइवान में विस्ट्रोन कंपनी ने कहा कि वह स्थानीय श्रम कानूनों और दूसरे नियमों का पालन करने का प्रण लेती है। घटना के बाद यह अहसास होना वैसे स्वागत योग्य है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। बेशक हिंसा में शामिल मजदूरों पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन उन अधिकारियों को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए, जिनकी बुनियादी गलती की वजह से ये घटना हुई।
बुनियादी दोष किसका है?
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