आज का लेख

अर्थव्यवस्था कितना पीछे जाएगी?

Byअजीत कुमार,
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अर्थव्यवस्था कितना पीछे जाएगी?
बहस हो रही है कि देश की अर्थव्यवस्था कितनी गिरेगी? पहली तिमाही में 24 फीसदी गिरावट रही। दूसरी तिमाही में भी 14 फीसदी तक गिरावट का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि चालू वित्त वर्ष यानी 2020-21 में देश की अर्थव्यवस्था में साढ़े नौ फीसदी की गिरावट रहेगी। यह बहुत उदार आकलन है और इस बात पर आधारित है कि दूसरी तिमाही के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार शुरू हो गया है और आखिरी तिमाही आते आते स्थिति अच्छी हो जाएगी। इस अनुमान में इस बात को भी ज्यादा तवज्जो दी गई है कि केंद्र सरकार  ने लाखों करोड़ रुपए के पैकेज घोषित किए हैं और उनका असर दिखेगा। केंद्रीय वित्त मंत्री ने केंद्रीय कर्मचारियों को एलटीसी के पैसे कैश वाउचर के रूप में देने की जो घोषणा की है उससे भी एक लाख करोड़ रुपए की मांग पैदा होने की उम्मीद की जा रही है। बहरहाल, रिजर्व बैंक का आकलन उदार है और कई सकारात्मक संभावनाओं पर आधारित है। इससे कम उदार आकलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का है। आईएमएफ ने अपने ताजा आकलन में बताया है कि देश की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में 10.3 फिसदी गिरेगी। इसका आकलन और उम्मीद बढ़ाने वाला है। इसका यह भी कहना है कि अगले वित्त वर्ष यानी 2021-22 में भारत की अर्थव्यवस्था 8.8 फीसदी की दर से बढ़ सकती है। हालांकि ऐसा कहने का कोई ठोस आधार नहीं है। सारी दुनिया मान रही है कि कोरोना वायरस का संकट अगले वित्त वर्ष में चलता रहेगा। खुद केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री ने कहा है कि जुलाई तक 20-25 करोड लोगों को टीका लग सकता है। यह भी बहुत उदार आकलन है और ठोस तथ्यों पर आधारित नहीं है। फिर भी इसे सही मान लगें तब भी एक सौ करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन नहीं लगी होगी। खुद भारत सरकार के मंत्री कई बार कह चुके कि सर्दियों में और त्योहारी सीजन में कोराना के मामले बढ़ेंगे। इसका मतलब है कि नवंबर से जनवरी तक कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है। सोचें, ऐसे समय में या इसके तुरंत बाद किस तरह से अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की उम्मीद की जा सकती है? तभी गोल्डमैन सैश जैसी कई निजी एजेंसियों ने भारत की अर्थव्यवस्था में 12 से 14 फीसदी तक की कमी रहने का अनुमान जताया है। यह कमी अगले वित्त वर्ष में भी जारी रहेगी। यह हो सकता है कि अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर सकारात्मक हो जाए पर उसका चार-पांच फीसदी से ऊपर पहुंचना बहुत मुश्किल होगा। सोचें, जिस चीन ने कोरोना वायरस पर पूरी तरह से काबू पा लिया है वहां तो इस साल विकास दर 1.3 रहने वाली है। सो, अगर वायरस पर काबू पा भी लिया गया तो बहुत ज्यादा तेजी नहीं लौट सकती है। और अगर काबू नहीं पाया गया, त्योहारों के बाद गांवों तक में वायरस फैला रहा खास कर देश के पूर्वी हिस्से में तो अगले वित्त वर्ष में भी भट्ठा बैठा रहेगा। ऐसा सोचने का कारण सिर्फ कोरोना वायरस का संक्रमण और उसे रोकने के लिए लागू लॉकडाउन की वजह से आई गिरावट नहीं है। असल में अर्थव्यवस्था में गिरावट पिछले चार-पांच साल से चल रही थी। केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद पहले दो साल को यानी 2014-15 और 2015-16 को छोड़ दें तो उसके अगले ही साल से अर्थव्यवस्था में सुस्ती शुरू हो गई। 2016 के नवंबर में नोटबंदी का फैसला करने और उसके अगले साल जुलाई 2017 में जीएसटी लागू करने के बाद बाजार पूरी तरह से ठहर गया। उसके बाद अर्थव्यवस्था की गाड़ी जैसे तैसे ही चली है। अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिली हुई है और वह सिर्फ कोरोना वायरस के खत्म हो जाने भर से ठीक नहीं होने वाली है। कोरोना का संकट शुरू होने से पहले कैसे अर्थव्यवस्था जहां की तहां ठहरी हुई थी, इसे कुछ आंकड़ों के सहारे देख सकते हैं। बाजार के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 में देश में भर में 27 लाख कारें बिकी थीं। हैरानी की बात है कि वित्त वर्ष 2019-20 में भी 27 लाख ही कारें बिकीं। इसका मतलब हुआ कि कारों की बिक्री में चार साल में साल दर साल के आधार पर कोई सुधार नहीं हुआ। इसका यह भी मतलब है कि नोटबंदी के साथ ही देश का मध्य वर्ग आशंकित हो गया था और उसके खर्च रोक लिए थे। ध्यान रहे कारों का खरीदार देश का मध्य वर्ग है। इसी तरह मोटरसाइकिल की खरीद करने वाला देश का मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग दोनों हैं। पर इसकी बिक्री का आंकड़ा भी हैरान करता है। वित्त वर्ष 2016-17 में 1.7 करोड़ मोटरसाइकल बिकी थी और 2019-20 में भी इतनी ही बिकी। यानी तीन साल से मोटरसाइकल की बिक्री ठहरी रही। यह मध्य वर्ग का संकट और रोजगार, काम धंधे का संकट भी दिखाता है। इसी तरह 2016-17 में व्यावसायिक वाहन सात लाख बिके। इसमें ट्रक, लॉरी, बड़े टेम्पो आदि शामिल होते हैं। हैरानी की बात है कि 2019-20 में भी सात लाख के करीब ही व्यावसायिक वाहन बिके। इसका सीधा मतलब है कि कारोबार, उद्योग, निर्माण, खनन, रियल इस्टेट आदि सब जगह कामकाज ठप्प रहा। केंद्र में भाजपा की सरकार आने के समय रियल इस्टेट में तेजी थी। उस साल कोई दो लाख करोड़ रुपए के घर खरीदे-बेचे गए। तीन साल के बाद 2019-20 में भी आंकड़ा इतने पर ही अटका रहा। इसी तरह पांच साल पहले भारत में तीन सौ अरब डॉलर का निर्यात होता था और 2019-20 में भी भारत का निर्यात इतने पर ही अटका रहा। ये सारे आंकड़े 2020 मार्च तक के हैं। उसके बाद का हाल सबको पता है। मार्च के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन लागू किया गया था। अब सरकार ने सब कुछ अनलॉक कर दिया है पर देश की अर्थव्यवस्था ऐसे जाल में फंस गई है, जहां से उसका निकलना बहुत मुश्किल दिख रहा है। जब कोरोना संकट शुरू होने और लॉकडाउन से पहले तीन-चार साल से अर्थव्यवस्था जहां की तहां खड़ी थी तो अब उसके आगे बढ़ने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
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