कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में लागू 21 दिन के लॉकडाउन के पहले दो हफ्ते का सबक यह है कि लॉकडाउन को आगे बढ़ाने की जरूरत है। इन दो हफ्ते में क्या हुआ, भारत और राज्यों की सरकारों ने क्या सबक लिया, मेडिकल सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए क्या करना है या संक्रमण रोकने के लिए और क्या कदम उठाने हैं, इन सबको लेकर कई तरह की तकनीकी व्याख्या हो सकती है पर सबसे सरल और जरूरी सबक यह है कि लॉकडाउन बढ़ाना चाहिए और जहां जरूरी हो वहां इसे और सख्त करना चाहिए। और इसका फायदा उठा कर जरूरी मेडिकल सुविधाएं जुटाने में लग जाना चाहिए क्योंकि सिर्फ लॉकडाउन से संक्रमण की रफ्तार धीमी हो सकती है, यह खत्म नहीं होगा।
असल में लॉकडाउन में सरकार जिस तरह की उम्मीद कर रही थी वह पूरी नहीं हुई है। सरकार को उम्मीद थी कि लॉकडाउन लागू होने के बाद दो हफ्ते में संक्रमण का आंकड़ा घटने लगेगा। तभी पहले ही हफ्ते में अधिकारियों ने ‘फ्लैटनिंग द कर्व’ का दावा करने लगे थे। पर दो हफ्ते बीतती-बीतते सचाई सामने आ गई। बीच में एक या दो दिन को छोड़ दें तो घटने का ट्रेंड स्थापित नहीं होता है, बल्कि हर दिन संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है और साथ ही मरने वालों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है।
पर हैरानी इस बात की है कि इस सचाई को समझने की बजाय कई विशेषज्ञ ऐसे निकल आए हैं, जो प्रवासियों और तबलीगी जमात के ऊपर इसका ठीकरा फोड़ने लगे हैं। एक विशेषज्ञ ने कहा कि भारत में लॉकडाउन असल में 25 मार्च से लागू नहीं हुआ, बल्कि 28 या 29 मार्च से लागू हुआ। क्योंकि लॉकडाउन की घोषणा के बाद चार दिन तक तो प्रवासी मजदूरों का रेला लगा रहा और दिल्ली व आसपास के राज्यों से बाहर निकलने वाले सारे हाईवे मजदूरों से भरे थे। सुदूर केरल से लेकर महाराष्ट्र तक प्रवासी मजदूर पलायन करने लगे।
इस आधार पर कुछ जानकार बताने लगे कि वास्तविक अर्थों में लॉकडाउन के दो हफ्ते नहीं हुए हैं। हालांकि वे इस तथ्य पर विचार नहीं कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री की ओर से घोषित लॉकडाउन भले 25 मार्च से शुरू हुआ पर उससे पहले एक दिन 22 मार्च को पूरे देश में जनता कर्फ्यू लागू थी और अगले दिन यानी 23 मार्च से कई राज्यों ने अपने यहां सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया। इस लिहाज से लॉकडाउन 22 मार्च से ही शुरू हो गया था और प्रवासियों के पलायन वाले मामलों को छोड़ दें तब भी दो हफ्ते का लॉकडाउन हो गया।
इसके बाद आती है तबलीगी जमात की बात। लॉकडाउन से पहले दो हफ्ते में वांछित सफलता नहीं हासिल हुई है इस सचाई को छिपाने के लिए कई जानकार और भारत सरकार के अधिकारी भी तबलीगी जमात के ऊपर ठीकरा फोड़ रहे हैं। यह बात कुछ हद तक सही है कि पिछले दस दिन में वायरस संक्रमितों की संख्या में जो इजाफा हुआ है वह तबलीगी जमात की वजह से है। बुधवार को भी दिल्ली में कुल 93 मामले सामने आए, वे सारे तबलीगी जमात से जुड़े लोगों के थे। दिल्ली के संभ्रांत डिफेंस कॉलोनी में एक परिवार संक्रमित हुआ तो उसके पीछे भी तबलीगी जमात की मरकज में शामिल हुए सोसायटी के गार्ड का हाथ बताया जा रहा है। उस गार्ड ने सचाई बताने की बजाय लापता हो जाना बेहतर समझा था।
बहरहाल, चाहे प्रवासियों की वजह से लॉकडाउन का वांछित लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया हो या तबलीगी जमात की वजह से ऐसा हुआ हो पर हकीकत यह है कि देश में कोरोना वायरस के संक्रमण की दर घटनी नहीं शुरू हुई है। ग्राफ नीचे गिरने की बजाय ऊपर जा रहा है। वह भी तब है, जब टेस्टिंग कम हो रहे हैं। भारत में विशेषज्ञ और अधिकारी दावा कर रहे हैं कि देश के चार सौ जिलों में अब भी कोरोना वायरस नहीं पहुंचा है पर वे यह नहीं बता रहे हैं कि इन चार सौ जिलों में कितनी टेस्टिंग हुई है? हकीकत यह है कि हम दावे के साथ नहीं कह सकते हैंकि जो जिले वायरस फ्री बताए जा रहे हैं वे सचमुच वायरस फ्री हैं। जब तक उन जिलों में पर्याप्त टेस्टिंग नहीं होत है तब तक कुछ भी दावा करना या उन जिलों को लॉकडाउन से बाहर करना खतरे को दावत देना है।
ध्यान रहे खुद सरकार हर जिले को निर्देश दे रही है वह अपने यहां कम से कम पांच सौ बेड कोरोना के मरीजों के लिए तैयार रखे। फिर किस आधार पर इन जिलों में लॉकडाउन खोलने की बात हो सकती है? दूसरी अहम बात यह है कि पलायन करने वाले प्रवासियों और पहचान छिपा तबलीगी जमात के लोगों ने कितने लोगों को संक्रमित किया है इसका आकलन भी कहां हुआ है। यह भी हकीकत है कि कम से कम पांच राज्यों में हालात बहुत खराब हैं। आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने संक्रमण फैलने की दर यानी आर-नॉट, जिसे आरओ भी कहते हैं उसकी दर 1.4 तय की है। यानी अगर आरओ दर इतनी है तो हालात काबू में माना जाता है और इससे ज्यादा होने पर महामारी का अंदेशा पैदा होता है। इसी मानक के आधार पर पांच राज्यों- महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में आरओ की दर इससे काफी ऊपर है। सो, इन दो हफ्तों का सबसे बड़ा सबक यह है कि सिर्फ लॉकडाउन से काम नहीं चलेगा। सरकार को लॉकडाउन जारी रखते हुए जरूरी मेडिकल सुविधाएं जुटाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करना चाहिए।
दो हफ्ते के लॉकडाउन का एक बड़ा सबक यह भी है कि लॉकडाउन के समय में प्रशासन को संभालना बहुत आसान है, लोगों को घरों में रोकना आसान है और संक्रमण को फैलने से रोकना संभव है। अगर सरकारें आंशिक रूप से भी लॉकडाउन को हटाने के बारे में सोच रही है तो सबसे पहले उसे यह विचार करना चाहिए कि क्या उसके पास इसकी तैयारी है? लॉकडाउन हटाने के बाद के हालात के लिए ज्यादा तैयारियों की जरूरत होती है।
लॉकडाउन के दो हफ्ते का सबक
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