आज का लेख

आखिरी आदमी की सोचे सरकार

ByShashank rai,
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आखिरी आदमी की सोचे सरकार
कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ाई कई स्तरों पर लड़ी जा रही है। एक तरफ अस्पतालों में यह जंग चल रही है तो दूसरी ओर करोड़ों लोगों की एक अलग ही जंग है। वह है रोजमर्रा की अपनी जरूरतों को पूरा करने की जंग। बिहार से दो ऐसी खबरें आईं, जिनसे इसकी भयावहता का अंदाजा होता है। पहली खबर यह थी कि एक घर में तीन बहनें कई दिन से भूखी थीं और खाना नहीं मिलने पर उन्होंने सीधे पीएमओ के किसी नंबर पर फोन किया और तब उनके लिए खाने का बंदोबस्त हुआ। दूसरी खबर यह थी कि एक मां और अपने भूखे बच्चे को खाना खिलाने के लिए कुत्ते से रोटी छीन कर ले आई। हो सकता है कि यह भूख, गरीबी की प्रतिनिधि घटना न हो यानी हर तरफ ऐसी स्थिति न हो। फिर भी यह किसी भी सभ्य समाज या देश के लिए बेहद शर्मनाक घटना है। कोरोना वायरस का संक्रमण फैलना शुरू होने के बाद सरकार ने इसे रोकने और खत्म करने की योजना के तहत रामबाण नुस्खे की तरह लॉकडाउन का फैसला किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सारे लोग 21 दिन भूल जाएं कि घर से निकलना क्या होता है। सवाल है कि घर से निकलना भूल कर अगर लोग घरों में बैठे रहे तो उनके खाने का बंदोबस्त कौन करेगा? देश में गरीब, दिहाड़ी मजदूर और निम्न मध्यवर्ग के करोड़ों लोग हैं, जो रोज काम करते हैं और तभी घर का खर्च चलता है। अगर रोज के काम बंद हो जाएंगे, दिहाड़ी बंद हो जाएगी तो वे कितने दिन तक जिंदा रह पाएंगे? इसके अलावा एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो भीख पर निर्भर है। माफ करें भारत में कई जगह भीख मांगने पर पाबंदी है पर देश में लाखों की संख्या में भिखारी हैं और थर्ड जेंडर के लोग हैं, जिनका काम मांग कर ही चलता है। यह समाज का सबसे वंचित तबका है। संभव है कि इनके पास कोई पहचान पत्र न हो, राशन कार्ड न हो और ये किसी तरह की सरकारी मदद के पात्र न हों। क्या सरकार ने ऐसे लोगों के बारे में सोचा है? केंद्र सरकार और कई राज्यों की सरकारों ने राशन उपलब्ध कराने की बात कही है। सरकार ने एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का जो पैकेज घोषित किया उसमें पांच किलो अतिरिक्त अनाज और एक किलो दाल देने की घोषणा की गई। कई सरकारों ने तीन महीने का राशन देने का वादा किया है। पर क्या वह वादा पूरा किया जा रहा है? सरकार के पास बुनियादी ढांचा ही नहीं है कि वह करोड़ों लोगों को उनके घर बैठे राशन उपलब्ध करा दे। दिक्कत अनाज की नहीं है, बल्कि उसे आम लोगों तक पहुंचाने की है। भारत में इस समय सामान्य से ज्यादा अनाज की उपलब्धता है। आमतौर पर अनाज का बफर स्टॉक रखने की सीमा 25 मिलियन टन की है पर भारत में इस समय 77 मिलियन टन से कुछ ज्यादा अनाज है। ज्यादातर जिलों में भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई के गोदाम हैं, जिनमें अनाज भरा है। इस समय सरकार के पास 50मिलियन टन से ज्यादा चावल और 27 मिलियन टन के करीब गेहूं हैं। इस साल गेहूं की बंपर फसल हुई है, जो बाजार में आने ही वाली है। ऐसे में सरकार को अनाज की चिंता नहीं करनी है। उसे इसे लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्था बनानी होगी। वह नहीं हुआ तो सरकार की सारी घोषणा सिर्फ कागजों पर ही रह जाएगी। अब सवाल है कि सरकार कैसे समाज के सबसे गरीब व वंचित तबके तक अनाज की उपलब्धता कराए ताकि वे भूखों न मर सकें? सरकार को इसके लिए अपनी मशीनरी के साथ साथ गैर सरकारी संगठनों और धार्मिक संस्थाओं को भी जोड़ना चाहिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे कोरोना से लड़ाई में धर्मगुरुओं को जोड़ें। धर्मगुरू सिर्फ अपील करने के लिए न हों, बल्कि धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल राशन पहुंचाने या भोजन बनवा कर लोगों को खिलाने के लिए किया जाना चाहिए। कुछ गैर सरकारी संस्थाओं को, कुछ धार्मिक स्थलों को, कुछ चैरिटी संस्थाओं को लॉकडाउन से बाहर करके उन्हें अनाज उपलब्ध कराना चाहिए ताकि वे बड़ी संख्या में लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था कर सकें। इस्कॉन मंदिर जैसे संस्थान पहले से इस काम में लगे हैं। सरकारी संस्थाओं में आंगनवाड़ी केंद्रों का इस्तेमाल इस काम के लिए किया जा सकता है और स्कूलों में मिड डे मिल तैयार करने वाले सिस्टम को इस काम में लगाया जा सकता है। ध्यान रहे भारत में सबसे ज्यादा लोग दिहाड़ी मजदूर हैं या स्वरोजगार वाले हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक ने पिछले दिनों कहा था कि उनकी सरकार ने आठ करोड़ लोगों को स्वरोजगार दिया है। पर ये स्वरोजगार वाले सारे लोग घरों में बंद हैं। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है। देश के बड़े शहरों में चार करोड़ से ज्यादा ऐसे लोग हैं और कोई दो करोड़ कैजुअल काम करने वाले हैं। लॉकडाउन और कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से इनकी स्थिति सबसे खराब है। तभी इस समय सरकार के सामने जितनी बड़ी चुनौती मेडिकल सुविधाएं जुटाने और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की है उतनी ही बड़ी चुनौती देश के लोगों का पेट भरने की भी है। दोनों पर समान रूप से ध्यान देने की जरूरत है और साथ ही तमाम संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल की नीति पर अमल करने की जरूरत है।
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