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देश का मूड क्या बदल रहा?

ByNI Editorial,
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देश का मूड क्या बदल रहा?
शशांक राय:  मनमोहन सिंह के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के दो साल के बाद देश का मूड बदलना शुरू हुआ था। 2011-12 में अलग अलग कारणों से सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ, जो 2014  के चुनाव तक चला। उसके बाद कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के खिलाफ जनता का मूड बनाए रखने का काम सरकार ने अपने प्रचार से किया। ऐसे ही नरेंद्र मोदी के दूसरी बार सरकार में आने छह महीने के बाद ही ऐसा लग रहा है कि देश का मूड बदलने लगा है। देश के बदलते मूड का संकेत देने वाली कई बातें हैं। पर शुरुआत हाल में हुए दो सर्वेक्षण से कर सकते हैं, जिनसे पता चलता है कि मोदी की अपनी लोकप्रियता में भी कमी आई है और उनके नेतृत्व वाले एनडीए की लोकप्रियता में भी खासी कमी आई है। अंग्रेजी की प्रतिष्ठित पत्रिका इंडिया टुडे के कराए सर्वेक्षण ‘मूड ऑफ द नेशन’ का नतीजा यह है कि आज अगर लोकसभा का चुनाव हो जाए तो एनडीए की सीटों की संख्या में 50 की कमी आ जाएगी। भाजपा की अपनी सीटों में 32 की कमी आएगी। वह 303 से घट कर 271 पर आ जाएगी यानी बहुमत से एक सीट कम। इसी के अनुपात में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूपीए की 15 सीटें बढ़ जाएंगी। इस सर्वेक्षण का भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  सबसे लोकप्रिय नेता हैं और सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वालों में से 68 फीसदी ने कहा कि उनकी सरकार का काम अच्छा या शानदार है। पर पिछले साल अगस्त में हुए ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वेक्षण के मुकाबले यह आंकड़ा तीन फीसदी कम है। सोचें, सरकार ने सारे बड़े फैसले अगस्त से बाद ही किए हैं। बहरहाल, दूसरा सर्वेक्षण ग्लोबल मार्केट रिसर्च फर्म इप्सोस का है। उसने 23 राज्यों में 320 लोकसभा सीटों पर 35 हजार लोगों के बीच सर्वेक्षण किया। इसमें देश का उत्तर और दक्षिण का विभाजन बहुत साफ अंदाज में दिखता है। इस सर्वेक्षण के मुताबिक उत्तर भारत के लोगों को अब भी नरेंद्र मोद पर सबसे ज्यादा भरोसा है पर दक्षिण भारत के राज्य राहुल गांधी को प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों में राहुल को लोगों ने पहली पसंद बताया। यह सर्वेक्षण ‘नेशनल ट्रस्ट सर्वे’ के रूप में हुआ है। इसका एक दिलचस्प नतीजा यह है कि सौ में से 74 आदमी प्रधानमंत्री कार्यालय पर भरोसा कर रहा है और जहां तक संस्थाओं का सवाल है तो सौ में से 72 ने सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताया। यह अलग चर्चा का विषय हो सकता है। बहरहाल, दूसरी बार सत्ता में आने के पहले ही साल में अगर सरकार और विपक्ष दोनों को लेकर देश के लोगों का मूड बदलना शुरू हो गया है तो गंभीर बात है। सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ? अपने इस कार्यकाल की शुरुआत में सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को बदल दिया और राज्य का विभाजन कर दिया। पहले आठ महीने में ही तीन तलाक को अपराध बनाने का कानून पास हो गया। अयोध्या में राम मंदिर बनाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया और सरकार ने पड़ोसी देशों से प्रताड़ित होकर आने वाले गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने का कानून भी पास कर दिया। फिर भी अगर उसकी लोकप्रियता में कमी आ रही है तो यह निश्चित रूप से भाजपा के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। ऐसा लग रहा है कि सरकार और भाजपा दोनों ने 2019 के जनादेश की गलत व्याख्या कर डाली है। उनको लग रहा है कि यह हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का वोट है। विपक्षी पार्टियां जो प्रचार कर रही हैं कि पुलवामा और बालाकोट एयर स्ट्राइक की वजह से भाजपा को फायदा हुआ उन्हीं की तरह सत्तापक्ष भी मानने लगा है। पर असल में यह वोट उम्मीदों का वोट था। मोदी ने पहले कार्यकाल में सैकड़ों योजनाएं शुरू कीं। स्वच्छता से लेकर शौचालय, जन धन, सबको आवास, डिजिटल, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप, मुद्रा लोन आदि की शुरुआत की। भले ये योजनाएं सफल नहीं रहीं पर लोगों तक यह बात पहुंची कि सरकार आम आदमी के लिए काम कर रही है। मोदी ने देवालय से पहले शौचालय की बात कही तो भले हिंदुवादी समूह नाराज हुआ हो पर आम आदमी को सरकार की गंभीरता दिखी। पर दूसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद सरकार ने ऐसी कोई योजना घोषित नहीं की है और न पुरानी योजनाओं के बारे में बात हो रही है। अब सारी बातें अनुच्छेद 370, राम मंदिर, नागरिकता, तीन तलाक आदि पर हो रही हैं। इससे आम आदमी का मोहभंग होगा। तमाम भावनात्मक होने के बावजूद चूंकि ये मुद्दे आम आदमी के रोजमर्रा के जीवन से नहीं जुड़े हैं इसलिए ये उन्हें एक सीमा से ज्यादा अपील नहीं कर सकते हैं। एक तरफ सरकार का समूचा फोकस पहचान की राजनीति पर हो गया और दूसरी ओर आर्थिक मंदी आ गई। लोग आर्थिक स्थिति में सुधार की उम्मीद कर रहे हैं तो सरकार उनको पहचान के मुद्दे पकड़ा रही है। ध्यान रहे ऐसे ही यूपीए-दो की सरकार बनने के बाद कांग्रेस नेताओं ने 2009 के जनादेश की गलत व्याख्या की थी। 2009 का जनादेश यूपीए की पहली सरकार की सकारात्मक नीतियों के समर्थन के तौर पर मिला था। लोगों ने खास तौर से मध्य वर्ग ने इस उम्मीद में वोट किया था सरकार अमेरिका से परमाणु संधि कर रही है, ऊर्जा सुरक्षा, रोजगार आदि की बातें हो रही हैं, सरकार ने देश को मंदी से बचाया है और सरकार ने सूचना का अधिकार दिया है। पर जीतने के बाद कांग्रेस के नेता समझने लगे कि जनादेश मनरेगा और किसान कर्ज माफी और अल्पसंख्यकों को संसाधन पर अधिकार देने से मिला है। इस चक्कर में देश के लोगों का मोहभंग हुआ। तभी नरेंद्र मोदी सरकार को भी देश का मूड समझना चाहिए और उन उम्मीदों को पूरा करने में लगना चाहिए, जो इस देश के 130 करोड़ लोगों ने उनसे बांधी है।
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