राजनैतिक लेख

दिल्ली तो संभली नहीं, अब कलकत्ता में ‘युद्ध घोष’ करवा रहे हैं...

ByNI Political,
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दिल्ली तो संभली नहीं, अब कलकत्ता में ‘युद्ध घोष’ करवा रहे हैं...
विजय तिवारी संसद शुरू होने के दो दिन पूर्व देश के गृह मंत्री अमित शाह ने दो बयान जारी किए। पहला तो यह कि अब दिल्ली में अशांति सिर्फ 13 थानों तक ही सीमित है, दूसरा उन्होंने सर्टिफिकेट दिया 23 फरवरी से माह के अंत चले दंगे स्वस्फूर्त थे यानि इनकी पृष्ठभूमि में विधानसभा चुनावों में हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों के प्रति नफरत को लगातार भड़काने वाले भाषणों का कोई हाथ नहीं है। गज़ब है। दूसरी ओर उन्हीं के राज्यमंत्री किशन रेड्डी बयान देते हैं कि सरकार विरोधी ताकतों ने इस अशांति को जन्म दिया। हमेशा की तरह संघ के दीक्षित इन बीजेपी नेताओं में वही बात है जिसे हमारे ऋषियों ने कहा है, एकदा सत्य विप्र बहुधा वदन्ती! यानि एक ही सत्य को लोग अनेक रूप में देखते हैं परंतु वे भूल जाते हैं कि वह सिर्फ दर्शन शास्त्र के लिए है, सरकार के लोगो के लिए नहीं। यहां वैसा करने पर या तो वक्ता असत्य भाषण का दोषी होता है और पाखंडी कहलाता है। दिल्ली के कुछ थानों तक शांति व्यवस्था का दावा उत्तर-पूर्व राज्य मेघालय की राजधानी तक नहीं पहुंच रहा हैं, क्योंकि वहां यह संघर्ष जनजातीय खासी और गैर आदिवासियों के मध्य हिंसक झड़पों का तीसरा दिन है जिसमें अबतक चार गैर आदिवासी मारे जा चुके हैं। कर्फ्यू लगा है और इंटरनेट बंद होने से काश्मीर जैसी हालत बनी हुई है। यह झगड़ा भी नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन और विरोध का ही है जबकि आदिवासियों के अधिकारों के लिए इनर परमिट सिस्टम लागू किया गया है। अब इसके लिए अमित शाह किसे जिम्मेदार बताएंगे क्योंकि वहां उनकी सरकार में साझेदारी भी है। चुनाव सभाओं में मंत्री अनुराग ठाकुर के लगवाए नारे और उसका जवाब अब देशभक्तों में इतना प्रचलित हो गया है कि हो सकता है सरकार के वकील अदालत में इसे जनभावना बताते हुए इसकी नोटिस नहीं लिए जाने की दलील भी दे क्योंकि दिल्ली पुलिस ने, जिसने चार दिन तक दंगों में झुलस रहे नागरिकों की 13 हजार से अधिक मदद की गुहार को अनसुना कर दिया। उन्होंने आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के यहां से पाउच में तेज़ाब की बरामदगी बताई जबकि आम लोगों को मालूम है कि तेज़ाब पाउच में नहीं वरन पानी पाउच में मिलता है। बंगाल विधानसभा के चुनावों में प्रचार की शुरुआत करते हुए अमित शाह ने कहा कि हम तो नागरिकता देकर रहेंगे। पहले ममता दीदी खुद ही शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग करती थीं, अब वे उसका विरोध करती हैं। क्या तरकीब है शरणार्थियों और मुस्लिम छोड़ कर अन्य धर्म के विदेशी नागरिकों को नागरिकता कानून के दायरे में लाना, वैसा ही है जैसा कि महाभारत में युधिष्ठिर ने कहा था, ‘अश्वत्थामा हतो’ (फिर इतने धीरे से कहा कि खुद ही सुन सके) ‘नरो वा कुंजरो वा।’ झूठ भी नहीं बोला और सच के नजदीक नहीं गए। जैसे कालिया नाग के अनेक मुंह थे उसी प्रकार से सरकार में भी एक ही मुद्दे पर लोग परस्पर विरोधी बयान देते हैं। अब जनता भ्रमित होती रहे, यही तो सरकारी पार्टी का एजेंडा है। सोशल मीडिया में भक्त भी यही कह रहे हैं, जैसे कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सोनिया गांधी का बयान कि अब सभी को कुर्बानी देने का समय है, इस अन्यायी कानून के विरोध के लिए। एक भक्त लिखता है कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने इतना ही तो कहा कि ट्रम्प के जाने तक हम चुप हैं (और बगल में खड़े पुलिस उपायुक्त को सुनाते हुए कहा) उसके बाद हम आप की भी नहीं सुनेंगे। दूसरे लिखते हैं कि शाहीन बाग के मुक़ाबले अगर बीस हज़ार हिन्दू देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग करेंगे तब क्या होगा? अरे भाई आप मांग करो पर शांतिपूर्ण तरीके से जैसे शाहीन बाग की महिलाओं ने 70 रात और दिन धरना दिया, ना तो वे नफरत भरे नारे लगा रही थीं ना ही कोई उपद्रव कर रही थीं। ऐसे ही नफरत फैलाने के आरोपी कपिल मिश्रा का बयान भी चल रहा है कि जिसने मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश की वह खुद ही बर्खास्त हो गया। अब यह हक़ीक़त भी हो गया, केंद्र के कार्मिकविभाग के आईएएस अफसर जोशी ने कपिल मिश्रा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, फलस्वरूप वे निलंबित कर दिए गए। अब ऐसे में मोदी सरकार से न्याय की उम्मीद करना तो मूर्खता ही होगी। सोश्ल मीडिया पर कालनेमी के शिष्यों के तर्क कभी कभी ऐसे होते हैं जो जमीनी हक़ीक़त से बहुत दूर होते हैं। आजकल एक नई अपील की जा रही है कि मुसलमानों की दुकानों से कोई भी हिन्दू ख़रीदारी नहीं करे। जैसे मांस की, झटके की या हलाल की या कोशर की दुकानें होती हैं, जिनसे मुस्लिम, सनातनी और यहूदी ख़रीदारी करते हैं अपनी धार्मिक आस्था के कारण। अब सरकार लाख चाहे शाहीन बाग दुनिया में सरकार के अन्य के विरोध का प्रतीक बन चुका है जैसे पैकिंग में छात्रों के विरोध का तियेनमान चौक और काहिरा का अल बाज़ार नागरिकों के विरोध का अथवा हांगकांग में छात्रों का उसे मिटाया नहीं जा सकता।
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