राजनैतिक लेख

कल क्या हो जाए किसको पता...

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कल क्या हो जाए किसको पता...
राज्यसभा की 3 सीटों के लिए चुनाव की बिसात मध्यप्रदेश में बिछने लगी है। कांग्रेस हो या फिर भाजपा अपना कुनबा एकजुट रखने के साथ दोनों की पैनी नजर एक दूसरे के विधायकों पर लग चुकी है। सियासत में पसरे सन्नाटे को को दिग्विजय सिंह ने तोड़ा। पहला बड़ा हमला कांग्रेस ने फ्रंटफुट पर आते हुए किया। दिल्ली में दिग्विजय सिंह का विधायक खरीद-फरोख्त का आरोप तो शहडोल से भाजपा विधायक शरद कौल का वीडियो बयान भी सामने आ गया। यह सब उस वक्त सामने आया, जब मुख्यमंत्री कमलनाथ आगर विधानसभा उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए तीसरे चरण के किसान कर्ज माफी का आगाज कर रहे थे। तो दूसरी ओर राजधानी भोपाल में भाजपा संभागीय बैठक शुरू कर अपने विधायकों के साथ संवाद-समन्वय बनाकर एकजुटता का संदेश देने में जुट चुकी थी। अचानक सियासत में सनसनी फैला देने वाली सामने आई दो बड़ी खबरों ने कहीं ना कहीं भाजपा को न सिर्फ बैकफुट पर जाने को मजबूर किया। जो नवागत अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के नेतृत्व में आगर से उपचुनाव के प्रचार के शंखनाद की तैयारी में जुटी थी,ऐसे में बढ़ा सवाल क्या दिग्विजय सिंह का विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़ा आरोप मध्य प्रदेश की राजनीति में आने वाले सियासी तूफान की सुगबुगाहट है। क्योंकि यह बयान उस वक्त सामने आया है जब कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह ,लक्ष्मण सिंह, ऐंदल सिंह कंसाना, के पी सिंह और समर्थन दे रहे निर्दलीय बसपा विधायक अपेक्षाएं पूरी नहीं होने पर सरकार पर किसी न किसी बहाने निशाना साधते रहे हैं। वह भी तब जब कमलनाथ ने कांग्रेस सरकार को अस्थिरता के दौर से बाहर निकालकर 1 साल पूरा किया। कांग्रेस के नाथ का एक ओर तीसरे चरण की किसान कर्ज माफी का आगाज तो दूसरी ओर मध्य प्रदेश को देश के नक्शे पर लाने के लिए आईफा जैसे कार्यक्रम की जमीन तैयार करना। ऐसे में कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ राज्यसभा की 3 में से 2 सीट की दावेदारी पर यदि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। तो विरोधियों पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह कांग्रेस विधायक को प्रलोभन देकर तोड़ रहे हैं ।ऐसे में खरीद-फरोख्त की बहस आगे बढ़ती इस बीच कुछ घंटों के अंदर भाजपा के ही एक विधायक का पार्टी से मोहभंग यह बताता है कि वह कांग्रेस के नजदीक जा रहे। सवाल भाजपा पर तोड़फोड़ का आरोप क्या दिग्विजय और कांग्रेस की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। या फिर इन आरोपों में दम है। सवाल यदि यह स्थिति निर्मित होती है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन, क्या कांग्रेस के अंदर विधायकों मंत्रियों के बीच संवाद हीनता बढ़ती जा रही है। कॉन्ग्रेस की भाजपा के आदिवासी विधायक से सहानुभूति तो उसके मान सम्मान को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। जो कहीं ना कहीं कांग्रेस के आदिवासी प्रेम तक जा पहुंची। तो सवाल यह भी सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन रहा ..क्या कमलनाथ राज्यसभा की 2 सीटों पर आदिवासी और दलित को संसद में भेजेंगे। क्या कांग्रेस का अगला प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी या दलित होगा यह वह सवाल है जो सोमवार को चर्चा का विषय बने। संसद सत्र के आगाज के साथ दिल्ली से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का जो आरोप लगाया। उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि विधायकों की खरीद-फरोख्त की संभावित कीमत भी बताई तो अपनी ओर से राजा ने नेतृत्व के संकट से जूझती रही भाजपा की एकजुटता के साथ उसके एजेंडे को भी सामने ला दिया। यह भी बताया आखिर इस तोड़फोड़ का मकसद क्या है। लगे हाथ वह फार्मूला भी बता दिया कि आखिर किस लिए और कौन क्यों विधायकों को खरीद रहा। भाजपा में भले ही नेतृत्व का संकट अभी खत्म नहीं हुआ हो लेकिन दिग्विजय सिंह की मानें तो भाजपा शिवराज को मुख्यमंत्री और नरोत्तम मिश्रा को उपमुख्यमंत्री बनाने जा रही है। ऐसे में भाजपा सबूत सामने लाने की मांग कर रही। दिग्विजय सिंह जो हमेशा कहते हैं कि वह तथ्य और सबूत होने पर ही कोई आरोप लगाते। जो भी हो दिग्विजय सिंह को जो संदेश जिसे देना था वह उन्होंने दे दिया। इसके लिए उन्होंने भोपाल नहीं दिल्ली को चुना तो निश्चित तौर पर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने संज्ञान लिया होगा। उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक तीर से कई निशाने लगाते हैं। तो भाजपा ने ट्विस्ट देते हुए इस बात को आगे बढ़ाया जिसका कहना है राज्यसभा में सिंधिया और दूसरे नेताओं के मुकाबले राजा ने अपनी दावेदारी का हवाला देकर कांग्रेस के क्राइसिस को सामने रख दिया। जहां सरकार के लिए संकट उनके अपनी पार्टी के विधायक और मंत्री भी गाहे-बगाहे अपने विवादित बयानों से बढ़ाते रहे। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। जिन्होंने प्रेशर पॉलिटिक्स कहें या फिर मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण पार्टी से मोहभंग होने के संकेत दिए.. वह बात और है कि लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघ पाए और ना ही बगावत की हिम्मत जुटा पाए। जिन्होंने पार्टी लाइन से हटकर एक नहीं कई बार बयान दिए।भाजपा के नेता चाहे फिर शिवराज, गोपाल भार्गव, विष्णु दत्त शर्मा, नरोत्तम मिश्रा सभी सफाई देने के लिए मीडिया के सामने आए और हॉर्स ट्रेडिंग से इंकार कर दिया। जिनका कहना था, दिग्विजय सिंह के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता। यह उनका अपना राज्यसभा की दावेदारी का प्लान है, तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच भाजपा के शहडोल से आदिवासी विधायक शरद कौल का वीडियो भी सामने आ गया। जिसमें शरद भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व और संघ पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की अनदेखी का आरोप लगाते हुए सुने गए तो शरद ने कांग्रेस से ज्यादा मुख्यमंत्री कमलनाथ की तारीफ कर भाजपा से मोहभंग होने के संकेत भी दे दिए। शरद इससे पहले तब चर्चा में आए थे। जब विधानसभा के फ्लोर पर उन्होंने भाजपा से बगावत कर कांग्रेस का समर्थन किया था। यही नहीं, भाजपा के एक और विधायक नारायण त्रिपाठी के साथ वह मुख्यमंत्री कमलनाथ के अगल-बगल बैठे नजर आए थे। भाजपा ने शरद के इस वीडियो की जांच की आवश्यकता जताई। फिर भी भाजपा से शरद का मोह भंग होने को लेकर सवाल खड़ा होना लाजमी है। जिस तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के मीडिया कोऑर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के नेतृत्व की भाजपा द्वारा उपेक्षा का आरोप लगाने वाले शरद का समर्थन किया। यही नहीं भाजपा द्वारा विधायक शरद के वीडियो की जांच की मांग को आदिवासियों की अस्मिता से जोड़ दिया । भाजपा की ओर से आदिवासी नेता रामलाल रौतेल ने कांग्रेस से राज्यसभा में अनुसूचित जाति जनजाति के नेता को भेजे जाने के साथ मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष में से एक को दिए इस वर्ग का प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग कर कांग्रेस के आदिवासी प्रेम पर सवाल खड़ा कर दिया।
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