शशांक राय- दुनिया के एक सौ से ज्यादा देशों के राजनयिकों के बीच रायसीना डायलॉग में पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चीन के साथ भारत के संबंधों में सबसे अहम पहलू संतुलन बनाना है। पर सवाल है कि यह संतुलन कैसे बनेगा? चीन के साथ तो भारत का किसी मामले में संतुलन नहीं बन पा रहा है। चीन के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो बार अनौपचारिक वार्ता कर चुकने और हर वार्ता में कारोबार संतुलन बनाने की प्रतिबद्धता दिखाने के बावजूद दोनों देशों के संबंधों में कारोबार के मामले में कोई संतुलन बनता नहीं दिख रहा है। बुनियादी रूप से भारत चीन के सामानों के आयात पर और निर्भर होता जा रहा है।
पर मामला सिर्फ कारोबार का नहीं है। यह एक पहलू है। चीन के साथ कूटनीति और सामरिक मोर्चे पर भी किसी किस्म का संतुलन नहीं बन पा रहा है। चीन अपने ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ यानी पाकिस्तान के प्रति ऐसा सद्भाव दिखा रहा है, जिससे हर मंच पर भारत के लिए मुश्किल खड़ी हो रही है। पाकिस्तान की जिद पर चीन लगातार संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर का मुद्दा उठा रहा है या उठाने का प्रयास कर रहा है। उसे चीन को हर हाल में खुश रखना है क्योंकि उसकी मदद से उसका आर्थिक गलियारा बन रहा है।
वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान जरूरी है तो साथ ही चीन अपने यहां उइगर मुसलमानों के जैसा बरताव कर रहा है उसमें भी उसे पाकिस्तान जैसे देश के साथ की जरूरत है ताकि मुस्लिम उत्पीड़न का मामला इस्लामी देशों में बड़ा मुद्दा नहीं बने। तीसरे भारत को उलझाए रखने के लिए भी वह पाकिस्तान की तरफदारी और उसकी मदद करता रहेगा।
तभी भारत के तमाम विरोध के बावजूद चीन ने पांच महीने में दूसरी बार कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया। चीन की जबरदस्ती पर बुधवार को बंद कमरे में सुरक्षा परिषद की बैठक हुई, जिसमें कश्मीर पर चर्चा हुई। यह अलग बात है कि सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी देशों में से एक चीन को छोड़ कर बाकी चारों ने इस मुद्दे को तवज्जो नहीं दी। अस्थायी दस सदस्यों में से भी ज्यादातर ने भारत का साथ दिया। तब भी चीन अपने मकसद में तो कामयाब रहा। उसने पाकिस्तान को खुश कर दिया। अब पाकिस्तान खुद संयुक्त राष्ट्र के अलग अलग मंचों पर यह मामला उठाएगा और दुनिया के दूसरे देशों में भी इसका प्रचार करेगा।
सो, कूटनीति के मोर्चे पर चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनना बहुत मुश्किल है। जिस तरह कारोबार के मोर्चे पर नहीं बनेगा वैसे ही कूटनीति के मोर्चे पर भी नहीं बनेगा। चीन किसी हाल में भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी का सदस्य नहीं बनने देगा। वह हर बार इसमें अड़ंगा लगाता है। असल में विश्व कूटनीति में भारत की ऐसी पोजिशनिंग हो गई है कि चीन के लिए भी संतुलन बनाना मुश्किल है। भारत ने एशिया प्रशांत में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिल कर चार देशों का एक समूह बना लिया है। यह भी चीन के हितों के खिलाफ बैठता है। ऐसे ही दक्षिण चीन सागर में भी चीन के साथ जिन दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का विवाद चलता है उनकी भी भारत तरफदारी करता है। इसलिए भी चीन वित्तीय हितों के तमाम जुड़ाव के बावजूद कूटनीतिक मोर्चे पर भारत के साथ सद्भाव नहीं दिखाता है।
जहां तक सामरिक मोर्चे के सवाल है तो भारत और चीन के हित सीधे टकराते हैं और चीन कभी भी इस टकराव को छिपाने का प्रयास नहीं करता है। अभी ताजा खबर है कि चीन हिंद महासागर के इलाके में अपनी ताकत बढ़ा रहा है। वह अपने पोत बढ़ा रहा है और सैन्य क्षमता में भी बढ़ोतरी कर रहा है। भारतीय नौसेना ने इसे लक्ष्य किया है और नौसेना की ओर से कहा गया है कि वह भी इस हिसाब से अपनी तैयारी कर रही है। हालांकि इससे किसी टकराव की स्थिति नहीं बन रही है पर चीन की मंशा जाहिर हो रही है। वह चारों तरफ से भारत को घेरना चाहता है। तभी दक्षिण एशिया के देशों में उसने निवेश भी बढ़ाया है और अपनी उपस्थिति भी पहले से ज्यादा बढ़ाई है।
एक खबर यह भी है कि अरुणाचल प्रदेश में चीन एक बार फिर भारतीय सीमा में घुस कर बैठा है। अरुणाचल प्रदेश से भाजपा के सांसद तापिर गावो ने यह बात संसद में कही है। उन्होंने संसद को बताया कि चीन के सैनिक भारतीय सीमा में 60 किलोमीटर तक अंदर घुसे हुए हैं। पहले उन्होंने एक वीडियो जारी करके इस बारे में जानकार दी थी और पिछले सत्र में उन्होंने यहीं बात संसद में कही। भारत की ओर से हर बार यहीं निर्धारित प्रतिक्रिया दी जाती है कि दोनों देशों के बीच कई जगह जंगल, पहाड़ की वजह से सीमा का अंतर नहीं दिखाई देता है तभी सेनाएं सीमा पार कर जाती हैं। पर यह अंतर 50-60 किलोमीटर का कैसा हो सकता है? ऊपर से तापिर गाओ ने यह भी कहा है कि चीनी सैनिकों ने अपने शिविर बनाए हैं और पुल आदि भी बना लिए हैं।
यह सबको पता है कि वह सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के बारे में क्या राय रखता है। वह इनके ऊपर अपना दावा करता है। उसके सैनिक गाहे बगाहे लद्दाख में भी भारतीय सीमा में घुसते रहते हैं, जहां सैनिकों से उनका टकराव भी होता है। ऐसे में सामरिक मोर्चे पर भी चीन के साथ संतुलन बनाना भारत के लिए बहुत मुश्किल है। तभी चाहे वित्तीय मामला हो या कूटनीतिक और सामरिक मामला हो, हर जगह भारत को संतुलन की बजाय अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिए।
चीन के साथ संतुलन बनाने की चुनौती
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