Naya India

वैदिक अंकल

Ved Pratap Vaidik

समय कई बार अपनी निर्मम और नितांत अनापेक्षित मार से हमें भौचक्का कर देता है। समझ ही नहीं आता कि यह क्या, क्यों और कैसे हुआ। काल का अप्रत्याशित आक्रमण, अगली पीढ़ी के कंधों पर अचानक एक ऐसा बोझ डाल देता है जिसे संभालने के लिए उनके कंधे तैयार नहीं होते।

मैं वैदिक अंकल के बारे में लिखने – भूतकाल में लिखने – के लिए कतई तैयार नहीं थी।

पर मुझे तो लिखना होगा। वे मेरे लेखन पर मुझे बधाई देने वाले पहले व्यक्ति थे, वे पहले व्यक्ति थे जिनसे मैंने ‘नया इंडिया’ के यूटयूब चैनल के लिए बातचीत की था। वे ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्हे अलविदा कहने के लिए मैं लेख लिख रही हूं।

मुझे यह मानने में गुरेज नहीं कि यह एक कठिन काम। कतई आसान नहीं।…छह दिन पहले की तो बात है जब वे मेरे परिवार के साथ गुजिया और चाय का मज़ा लेते हुए हंस-बोल रहे थे, मजाक कर रहे थे। वे पूरी तरह स्वस्थ और प्रसन्नचित्त थे। इसलिए उनकी मृत्यु की खबर मुझे झूठी लगी। सब कुछ एकदम अनापेक्षित और अविश्वसनीय था। सब कुछ एकदम अचानक हुआ।

जब से मैंने होश संभाला मैं तभी से वैदिक अंकल को जानती हूं। परंतु मैंने उन्हें बेहतर ढंग से पिछले कुछ सालों में जाना जब मैंने लिखना शुरू किया। वे एक खुशमिजाज व्यक्ति थे। उनकी उम्र चाहे जो रही हो, उनके अंदर एक छोटा सा बच्चा था, जो जिंदगी के प्रति उत्साह और उमंग से भरा हुआ था और जो खिलखिलाने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देता था।

वे पूरी शिद्दत से जिंदगी का आनंद लेते थे। वैदिक अंकल की मुस्कुराहट एक साथ दिव्य और गर्मजोशी से भरी होती थी। उनकी आंखों में उनके ज्ञान की चमक  थी – ऐसी चमक जिससे सामने वाला अप्रभावित रह ही नहीं सकता था। उनके ज्ञान और उनके अनुभवों का संसार अनंत और अपार था। वे पूरे चाव से उसे साझा करते थे और सुनने वाला उतने ही चाव से उन्हें सुनता था। उनके पास उनके समय के किस्सों का भंडार था – एक ऐसे समय का जो अब कहानी जैसा लगता है, , एक ऐसे समय का जब असंभव को संभव बनाया जा सकता था, एक ऐसे समय का जब सम्मान अर्जित किया जाता था और वह हमेशा आपके साथ रहता था। यही कारण है कि उनके अवसान ने न जाने कितनी आंखों को नम बनाया और न जाने कितनों ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलियां दीं।

मैं उनके महान होने जैसी बात नहीं लिखूंगी और ना ही मैं यह बताऊंगी कि वे कितने विद्वान और कितने क्रांतिकारी थे। मैं तो आपको सिर्फ यह बताना चाहती हूं कि वे मुझे कभी 78 साल के लगे ही नहीं। उन्होंने कभी ऐसा लगने ही नहीं दिया कि वे 78 साल के हैं। उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे जिंदगी के डिपार्चर लाउंज में हैं। वे लंदन से लेकर दुबई तक और न जाने कहां-कहां घूमते रहते थे। उनकी दोपहर और शाम लोगों के साथ मिलने-बैठने और हंसने-बोलने में गुज़रती थीं। उनके दिन की शुरूआत 14 अखबारों को पढ़ने से होती थी। वे लगभग न्यूज वेबसाईटें देखते थे, किताबें पढ़ते थे, किताबें लिखते थे और अब भी उनमें जबरदस्त जोश और ऊर्जा थी।

मैं आपको उनके लड़ाका दिनों के बारे में नहीं बताऊंगी और ना ही हिन्दी पत्रकारिता की उनकी अप्रितम यात्रा के बारे में। इसकी बजाए मैं आपको यह बताना चाहूंगी कि प्रधानमंत्रियों और शेखों के साथ एक टेबिल पर बैठकर भोजन करने के बाद भी वे कितने विनम्र थे और किस हद तक जमीन से जुड़े हुए थे। मैं आपको बताना चाहूंगी कि वे थाई ग्रीन करी के जबरदस्त प्रेमी थे और यह भी कि वे अपने घर के अहाते में रोजाना सुबह एक घंटे पैदल चलते थे। मेरी मां को फोन कर वे उनसे भीलवाड़ा के नमकीन लाने की फरमाईश किया करते थे। सबसे बड़ी बात यह कि हमारे समय के सबसे कठिन और बुरे दौर – कोविड महामारी – के दौरान भी उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा।

वैदिक अंकल जिंदगी का पूरा मजा लेते थे। बढ़िया भोजन और बढ़िया मित्रमंडली उनकी कमजोरियां थीं। वे अपनी वेशभूषा के बारे में बहुत सजग थे। हमेशा झकाझक कुर्ता-पजामा और जैकिट पहनते थे। जैकिट तो उन्हें विशेष प्रिय था। ‘नया इंडिया’ में एक दिन जब उनसे अचानक इंटरव्यू देने का अनुरोध किया गया तो उनकी समस्या अनूठी थी। वे बड़ी मासूमियत से बोले, ‘‘व्यास जी, बोलने के लिए तो मेरे पास बहुत है पर आज जैकिट नहीं है। कल करते हैं”।

वैदिक अंकल में जीने और हंसने की अद्भुत उमंग थी। उनकी हमेशा यह कोशिश रहती थी कि वे युवा, फिट और सुदर्शन रहें और दिखें। हमारे घर पर एक दिन उन्होंने आशीष और विधान को जोर देकर कहा कि बाल झड़ने की समस्या से निपटने के लिए वे प्याज के तेल का इस्तेमाल करें। वे बोले, ‘‘अगर मुझ बूढ़े के बाल आ सकते हैं तो तुम तो अभी जवान हो।” मेरे पिता की तरफ मुड़कर उन्होंने कहा, ‘‘व्यासजी, आप भी अभी जवान हैं। यूज करिए।” और फिर वे बच्चों की तरह खिलखिलाए।

वैदिक अंकल की बातें बहुत मजेदार हुआ करती थीं। उनको सुनते हुए, उनके साथ हंसते हुए, कोई थकता नहीं था। उनके लिए सब बराबर थे – समान सम्मान के पात्र। चाहे कोई बड़ा आदमी हो या छोटा, धनी हो या विपन्न, संपादक हो या ट्रेनी पत्रकार, प्रधानमंत्री हो या श्रुति व्यास, वे सबको उनके महत्व का अहसास कराते थे। आप में जो अच्छा है उसकी तारीफ करने में वे कभी संकोच नहीं करते थे। उनकी उपस्थिति में आपको ऐसा लगता था मानो आप अचानक बहुत ताकतवर बन गए हों। उन्हें अपने पर, अपने ज्ञान और अपने अनुभवों पर गर्व था। परंतु इसके साथ ही वे आपको ऐसा महसूस करवाते थे मानो आप अपने समय के सबसे महत्वपूर्ण

व्यक्ति हैं।

हां, यह सब लिखना आसान नहीं है। मेरी आंखें यह सोचकर भर आती हैं कि मैंने एक ऐसे व्यक्ति को खो दिया है जो हमेशा मुझे और लिखने, और अच्छा लिखने के लिए प्रोत्साहित करता था। यह सोचकर मेरा दिल बैठा जा रहा है कि इस साल जब ‘नया इंडिया’ अपने 14वें साल में प्रवेश करेगा तब हमारा सबसे बड़ा संरक्षक, हमारा सबसे बड़ा प्रशंसक और हमें उत्साह से सरबोर कर देने वाला व्यक्ति हमारे बीच नहीं होगा। करीब एक हफ्ते पहले हमारी पिछली मुलाकात में उन्होंने अत्यंत गंभीरता से मुझसे पूछा, ‘‘अब तुम कौन-से महान काम करने वाली हो?” मैं समझ नहीं सकी कि वे यह क्यों पूछ रहे हैं। मैंने उत्तर दिया, ‘‘मैं पढ़ना-लिखना जारी रखूंगी। अपना कर्म यही है तो यही करेंगे।” मेरे उत्तर से वे खुश हुए। उनकी आंखों की चमक इसकी गवाह थी। अब वह चमक मैं कभी नहीं देख पाऊंगी।

अब उनका परिवार, उनके परिजन और उनके मित्र इकट्ठा होंगे और उनके बारे में भूतकाल में बातें करेंगे। अब उनके लेखन को अब अंत से आदि की ओर पढ़ा जाएगा। अब वे और कुछ नहीं लिखेंगे। अब हम उनके संपूर्ण वांग्मय की बात कर सकते हैं।

अपनी आखिरी फोटो, जिसको लेते समय उन्होंने आशीष से कहा था कि उसमें उन्हें युवा दिखना चाहिए, से वे हमेशा मुस्कुराते हुए हमें देखते रहेंगे।… मैं कृतज्ञ हूं, मेरा पूरा परिवार कृतज्ञ है कि पिछले कुछ सालों में हमें वैदिक अंकल के साथ आनंद से भरे और तृप्त कर देने वाले कई-कई घंटे गुजारने का मौका मिला।

अलविदा, वैदिक अंकल। आप बहुत याद आओगे। (अंग्रेजी से अनुवाद: अमरीश हरदेनिया)

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