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ट्रंप से सीधी बात का समय

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ट्रंप से सीधी बात का समय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब बातचीत की टेबल पर बैठेंगे तब तक अहमदाबाद की सड़कों पर हुए 22 किलोमीटर के रोड शो की धूल जम चुकी होगी और मोटेरा स्टेडियम में लगे नारों का शोर भी थम चुका हो गया। हालांकि उनकी गूंज दोनों नेताओं के कानों में जरूर गूंज रही होगी पर उम्मीद करनी चाहिए कि कारोबार, सामरिक नीति, कूटनीति और द्विपक्षीय संबंधों को लेकर होने वाली बातचीत पर इन नारों का असर नहीं होगा। जब दोनों आमने-सामने बैठे होंगे तब वह सीधी बात का समय होगा और जिस तरह से ट्रंप अपने देश से यह कह कर चले हैं कि वे ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति को ध्यान में रख कर बात करेंगे, वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिमाग में भी ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति होनी चाहिए। सबसे पहले तो भारतीय प्रतिनिधिमंडल की ओर से अमेरिका के सामने एक बड़ी तस्वीर और अनेक छोटे छोटे आंकड़े रखने की जरूरत है, जिनसे यह पता चले कि दोनों देशों के संबंधों की हकीकत क्या है, यह पता चले कि दोनों देशों के संबंधों से और कारोबार की मौजूदा नीति से किसे क्या फायदा और क्या नुकसान है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि ट्रंप खुद और उनका प्रशासन भी भारत से शिकायत करना बंद करे। याद करें ट्रंप ने पिछले गुरुवार को कोलेराडो में एक कार्यक्रम में क्या कहा- उन्होंने कहा कि कारोबार के मामले में भारत ने हमेशा अमेरिका के साथ बुरा बरताव किया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेरे अच्छे दोस्त हैं। ट्रंप से यह पूछना जरूरी है कि भारत ने क्या खराब बरताव किया है? वे बार बार भारत के ऊपर आरोप लगाते रहे हैं कि भारत शुल्क लगाने का चैंपियन है। इसके लिए वे हारले डेविडसन मोटरसाइकिल पर लगने वाले शुल्क के बहाने प्रधानमंत्री मोदी का भी मजाक उड़ा चुके हैं। उनके सामने यह आंकड़ा रखा जाना चाहिए कि भारत और अमेरिका का कुल कारोबार 68 अरब डॉलर का है, जिसमें भारत का ट्रेड सरप्लस करीब 24 अरब डॉलर का है। इसका मतलब है कि भारत अमेरिका से आयात करने के मुकाबले 24 अरब डॉलर का ज्यादा निर्यात करता है। इस आंकड़े से भारत शीर्ष के दस देशों में नहीं है, जिनके साथ कारोबार में अमेरिका का व्यापार संतुलन बिगड़ा है। अनेक छोटे छोटे देशों का इससे ज्यादा ट्रेड सरप्लस है। अब चीन का आंकड़ा देखें। ट्रंप की तमाम नौटंकियों के बावजूद चीन के साथ उसका व्यापार घाटा चार सौ अरब डॉलर के करीब है। यानी भारत के 20 गुना के करीब। फिर भी ट्रंप भारत का रोना रोते रहते हैं। इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रपति ट्रंप के साथ दो टूक बात करनी चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए कि वे बेवजह भारत पर दबाव डालना और शिकायत करना बंद करें। भारत को इस बात के लिए दबाव डालना चाहिए कि व्यापार से जुड़ी रियायत हासिल करने वाले विकासशील देशों की सूची में से भारत को बाहर करने का फैसला बदला जाए और भारत को इस सूची में शामिल किया जाए। ध्यान रहे ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने के लिए भारत को इस सूची से बाहर कर दिया है। अमेरिका को 21 हजार करोड़ रुपए की खरीद का ऑर्डर देने से पहले इस बारे में बात जरूर होनी चाहिए। ट्रंप को यह भी समझाने की जरूरत है भारत और अमेरिका का संबंध सिर्फ 68 अरब डॉलर के कारोबार का नहीं है। यह अमेरिका में रह रहे 30 लाख से ज्यादा भारतीयों के जुड़ाव का भी है। ट्रंप ने जो अमेरिका को फिर से महान बनाने का कथित अभियान छेड़ा है उसमें प्रवासी भारतीयों की भूमिका को क्या वे नकार सकते हैं? अमेरिका आज भी जिस स्थिति में हैं उसे वहां तक लाने में प्रवासी भारतीयों की मेहनत का भी हाथ है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से लेकर उसके सिलिकॉन वैली तक भारतीयों ने उसकी तरक्की में जितना बड़ा योगदान दिया है उतना संभवतः दूसरे किसी देश का नहीं है। आज अगर अमेरिकी कंपनियां फेसबुक और गूगल का कारोबार बढ़  रहा है तो उसमें भारत के 130 करोड़ लोगों का क्या हाथ नहीं है? भारत के डाटा से ही इन कंपनियों का कारोबार इतना बड़ा हो रहा है। इन सबके बदले में भारत को क्या मिल रहा है? कुछ देने के बदले ट्रंप प्रशासन लगातार वीजा की शर्तें सख्त करता जा रहा है। उन्होंने एच-1बी वीजा की संख्या कम कर दी है और भारत के लिए रवाना होने से पहले उनके प्रशासन ने फैसला किया कि एक निश्चित समय में ही एच-1बी वीजा का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होगा और रजिस्ट्रेशन के लिए दस डॉलर की फीस भरनी होगी। सोचें, लाखों लोग हर साल भारत से इस वीजा के लिए आवेदन करते हैं। यह भी अमेरिका के लिए कमाई का साधन हो गया। प्रधानमंत्री को अमेरिका के वीजा नियमों के बारे में भी जरूर बात करनी चाहिए। जहां तक सामरिक मसलों की बात है तो दो बातें प्रमुखता से उठाई जानी चाहिए। पहली बात को अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी और तालिबान के साथ प्रस्तावित समझौते की है। दूसरी, बात पाकिस्तान को अमेरिका की ओर से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मिलने वाली शह और आर्थिक मदद की है। ध्यान रहे अमेरिका तालिबान के साथ 29 फरवरी को एक समझौते पर दस्तखत करने जा रहा है। यह एक तरह से अफगानिस्तान में फिर से तालिबान का शासन बहाल करने की शुरुआत है। इससे सबसे ज्यादा मुसीबत भारत को झेलनी पड़ेगी। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो राष्ट्रपति ट्रंप को यह तथ्य याद दिलाना होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से जिन संस्थाओं को आतंकवादी घोषित किया गया है उनमें से करीब 20 संस्थाएं पाकिस्तान से काम करती हैं। पर उनके खिलाफ कार्रवाई की बजाय ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान को प्रश्रय दे रहा है और जबरदस्ती ईरान से लड़ाई कर रहा है।
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