आज का लेख

सरकार के पास कोई रणनीति नहीं!

ByShashank rai,
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सरकार के पास कोई रणनीति नहीं!
ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार कोरोना वायरस के संक्रमण के दुष्चक्र में फंस गई है। उसके पास इससे निकलने की कोई रणनीति नहीं है। सरकार ने बिना सोचे-समझे कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन का कदम तो उठा लिया पर ऐसा लग रहा है कि सरकार के पास अब कोई एक्जिट स्ट्रेटेजी नहीं है। इससे कैसे निकलेंगे उसका कोई रास्ता नहीं है। और इसलिए लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा के लिए प्रधानमंत्री खुद राष्ट्र के सामने नहीं आए। पहले दो चरण की घोषणा उन्होंने खुद की थी और तब वे मान रहे थे या उनको बताया गया था कि 40 दिन के लॉकडाउन से वायरस के संक्रमण की शृंखला टूट जाएगी और इसका संक्रमण महामारी का रूप नहीं लेगा। पर 40 दिन पूरे होने से पहले ही यह समझ में आ गया कि लॉकडाउन से ऐसा नहीं हुआ है। खुद प्रधानमंत्री के गृह राज्य में कोरोना संक्रमण न महामारी का रूप ले लिया है। बहुत मामूली टेस्टिंग के बावजूद हर दिन भारत में संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं। हर दिन नए मामलों और मरने वालों की संख्या नया रिकार्ड बना रही है। भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के अधिकारी इस बात का दावा कर रहे हैं कि भारत में मामलों को दोगुना होने की दर 11 दिन की हो गई है। अगर यह सही है और यहीं रफ्तार आगे भी बनी रहती है तब भी लॉकडाउन का तीसरा चरण खत्म होने से पहले देश में एक लाख से ज्यादा मामले होंगे। ज्यादा संभावना यह है कि मामले इससे भी ज्यादा हो सकते हैं। क्योंकि सरकार ने अब लॉकडाउन की शर्तों में ढील दे दी है। ढेर सारे दुकानों और सेवाएं खोल दी गई हैं। उत्पादन की पूरी शृंखला चालू कर दी गई है। सरकार के पास कोई एक्जिट स्ट्रेटेजी नहीं है, इसका पता इस बात से भी चल रहा है कि सरकार वह सारे फैसले कर रही है, जिनसे कुछ समय पहले उसने इनकार किया था। जिस समय देश में कम मामले थे और तीन-चौथाई जिलों में कोरोना वायरस का एक भी केस नहीं था तब तो सरकार ने सख्ती से लॉकडाउन लागू किया। तमाम समझदार और दूरदर्शी लोगों की सलाह के बावजूद मजदूर और दूसरे प्रवासी, जहां अटके थे वहां से निकालने का प्रयास नहीं किया। गैर जरूरी सामानों की न तो डिलीवरी की इजाजत दी और न उनके उत्पादन की शृंखला चालू की। और अब अचानक ये सारे काम होने लगे हैं। सोचें, जिस समय संक्रमण की संख्या कम थी उस समय पैनिक बनाने और सब कुछ बंद कर देने की बजाय सरकार ने औद्योगिक व कारोबारी गतिविधियों को चालू रखा होता तो रोजी-रोटी की चिंता में इतने बड़े पैमाने पर प्रवासियों का पलायन नहीं होता। कंपनियों का चक्का चल रहा होता तो वे मजदूरों को वेतन आदि देने की स्थिति में होते। या अगर सरकार ने सब कुछ बंद कर ही दिया था तो उसी समय मजदूरों को निकाल कर उनके घर पहुंचा दिया गया होता तो आज मुंबई, सूरत से लेकर दिल्ली तक में इतनी बड़ी संख्या में मामले नहीं आ रहे होते। लेकिन सरकार ने ये दोनों काम तब नहीं किए जब मामले कम थे। तब तो उद्योग-धंधे भी बंद करा दिए और प्रवासी जहां थे, वहीं उनको उनकी झोपड़ियों में बंद करके बाहर पुलिस का पहरा बैठा दिया। और अब जब कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो उद्योग धंधे भी खोल दिए और मजदूरों को उनके घर भेजना भी शुरू कर दिया। सोचें, मजदूर घर चले जाएंगे तो उद्योग धंधे कैसे चलेंगे, उत्पादन शृंखला से लेकर आपूर्ति शृंखला के बीच असली तो मजदूर और कामगार हैं। इसी तरह सरकार के पास आर्थिक और मानवीय मोर्चे पर भी कोई रणनीति नहीं है। सरकार की सबसे बड़ी और पहली गलती यह हुई कि उसने कोरोना वायरस के संक्रमण की गलत प्रोजेक्शन की और इसके खत्म होने की जो टाइमलाइन बनाई में दूरदृष्टि नहीं दिखाई। सरकार को लगा कि यह एकाध महीने की मुश्किल है और उसके बाद खत्म हो जाएगी। तभी कोई अतिरिक्त मेडिकल सुविधा नहीं जुटाई गई, समय रहते टेस्टिंग किट, पीपीई किट, वेंटिलेटर या मास्क आदि के ऑर्डर नहीं दिए गए और पहले से चल रही कुछ योजनाओं की रिपैकेजिंग करके एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का एक पैकेज घोषित कर दिया गया। उसके साथ ही रिजर्व बैंक ने कर्ज की किश्तों की अदायगी पर तीन महीने तक की छूट का ऐलान कर दिया। हालांकि ब्याज और ब्याज के ऊपर लगने वाले दोहरे ब्याज का भुगतान भी आम लोगों को खुद ही करना है। बहरहाल, जल्दी ही इसकी सीमाएं जाहिर हो गईं और चौथे चरण का लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही रिजर्व बैंक इस मोराटोरियम को तीन महीने और बढ़ाने पर विचार करने लगा। क्या इस बारे में समग्रता से और आम लोगों को ज्यादा राहत देने वाली योजना नहीं बनाने की जरूरत थी? अब सरकार ने अर्थव्यवस्था को बचाने की चिंता में देश में रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट दिया और इनके स्थानीय प्रशासन को लॉकडाउन के निर्देशों को लागू कराने की जिम्मेदारी सौंप कर अपने को अलग कर लिया। इस बात के दूर-दूर तक संकेत नहीं दिख रहे हैं कि सरकार लॉकडाउन में ढील देने के बाद संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी का प्रोजेक्शन बनवाए हुए है या नहीं है और अगर बनवाया है तो उससे निपटने के क्या उपाय हुए हैं। अब तो इस बात की भी खबर नहीं आ रही है कि सरकार ने कितने वेंटिलेटर मंगा लिए या कितने आईसीयू बेड तैयार कर लिए। ऐसा लग रहा है कि पुरानी तैयारियों पर ही ज्यादा से ज्यादा मामलों से निपटने की सोच है तभी कहा जा रहा है कि कम लक्षण वाले मरीजों को घर ही में रहने को कहा जाएगा। सोचें, कितने लोगों का घर ऐसा है, जहां अगर कोई संक्रमित मरीज रह रहा हो तो दूसरे को संक्रमित नहीं कर पाए?
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