भारत में कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्या 51 लाख का आंकड़ा पार कर गई है। पांच मिलियन का आंकड़ा एक बड़ा माइलस्टोन है। दुनिया में सिर्फ दो ही देशों ने इस आंकड़े को पार किया है। अमेरिका को 50 लाख संक्रमितों का आंकड़ा पार करने में 199 दिन लगे थे, जबकि भारत ने यह आंकड़ा 230 दिन में पार किया। पर यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि अमेरिका में अब संक्रमितों का आंकड़ा धीमा हो गया है और भारत में तेज हो गया है।
अगर पिछले तीन महीने का औसत देखेंगे तो संक्रमितों की संख्या के लिहाज से भारत और अमेरिका का मामला लगभग बराबरी का है। दुनिया में पिछले तीन महीने में जितने केसेज आए हैं उनमें से भारत और अमेरिका का हिस्सा लगभग बराबर है। दोनों देशों में 22-22 फीसदी के करीब केसेज आए थे। पर अगर पिछले एक हफ्ते का आंकड़ा देखें तो वह हैरान करने वाला है। दुनिया में कोरोना वायरस के जितने संक्रमित मिले उनमें से 37 फीसदी संक्रमित अकेले भारत के थे। यानी एक-तिहाई से ज्यादा मरीज भारत में मिले, जबकि अमेरिकी में सिर्फ 14 फीसदी मामले मिले। हालांकि विश्व के पैमाने पर अमेरिका का 14 फीसदी का आंकड़ा भी बहुत बड़ा है और नए मरीजों की संख्या के लिहाज से वह भारत के बाद दूसरे स्थान पर है। लेकिन भारत का आंकड़ा उसके मुकाबले लगभग तीन गुना है।
भारत में आखिरी एक मिलियन केस आने में यानी 40 से 50 लाख केस पहुंचने में सिर्फ 11 दिन लगे। हर दिन औसतन 90 हजार से ज्यादा मामले आए हैं। अगर भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने की रफ्तार यहीं रही, जिसकी ज्यादा संभावना है तो अगले महीने में भारत दुनिया का नंबर एक संक्रमित देश होगा। एक आकलन यह भी है कि दिसंबर में भारत में डेढ़ करोड़ केसेज हो सकते हैं और मरने वालों की संख्या एक लाख 90 हजार तक पहुंच सकती है। ध्यान रहे यह आकलन अभी हो रहे टेस्ट और उसमें से निकल रहे संक्रमितों की संख्या पर आधारित है। अगर टेस्ट बढ़ता है तो यह आकलन गलत साबित होगा, जैसा कि पहले हो चुका है। भारत में अभी एक दर्जन से ज्यादा राज्य ऐसे हैं, जहां हर दिन पांच हजार या उससे कम टेस्टिंग हो रही है। अगर टेस्ट बढ़ा दिया जाए तो सारे आकलन बदल जाएंगे।
इतना विस्तार से कोरोना संक्रमण का आंकड़ा पेश करने और आगे की भयावह तस्वीर बताने का मकसद सिर्फ इतना जानना है कि अब इसके आगे क्या होगा? क्या भारत में 51 लाख केसेज आने और अगले महीने में दुनिया में नंबर एक संक्रमित देश बनने का पक्का अनुमान मिलने के बाद भी भारत सरकार का रवैया वैसा ही रहना है, जैसा अभी है? अभी तक केंद्र और लगभग सभी राज्यों की सरकारों का नजरिया कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या कम बताने और इस स्वास्थ्य महामारी को कमतर करके दिखाने का रहा है। सरकारों ने पहले तो पैनिक फैला दिया और अब चाहती हैं कि लोगों के दिल-दिमाग से कोरोना का पैनिक पूरी तरह से निकल जाए। हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर सरकारें पैनिक दूर करने के लिए कोई पहल करती भी नहीं दिख रही हैं।
भारत में टेस्टिंग बढ़ रही है पर उसमें ज्यादा हिस्सा रैपिड एंटीजन टेस्ट और ट्रूनेट टेस्ट का है। आरटी-पीसीआर टेस्टिंग बढ़ने की दर अब भी बहुत कम है। पूरे देश में कोराना का फुटप्रिंट पहुंच चुका है और आईसीएमआर के कराए सीरो सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि मई-जून में जिन जिलों में कोरोना का एक भी मामला नहीं था और पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था उन जिलों में भी आठ लाख से ज्यादा लोगों में एंटीबॉडी मिली है। अगर एंटीबॉडी की यह बात ठीक है तो इसका मतलब है कि मई-जून में ही सारे जिलों में कोरोना पहुंच चुका था। सो, अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन जगहों पर जहां स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है और न ज्यादा जांच हो रही है वहां यह संकट अंदर-अंदर कैसे पल रहा है।
प्रधानमंत्री ने दो नारे जरूर दिए। उन्होंने कहा- जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं और दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी। पर इन दो नारे के अलावा केंद्र सरकार कुछ भी ऐसा करती नहीं दिख रही है, जिससे लगे कि वह कोरोना वायरस को लेकर गंभीर है और इसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि सब कुछ भगवान भरोसा छोड़ा गया है और यह माना जा रहा है कि धीरे धीरे सभी लोगों को इसका संक्रमण हो जाएगा, फिर सब अपने आप ठीक हो जाएंगे और इसी में जिसको मरना है वह मर जाएगा। कई महीनों से केंद्र और राज्यों के बीच कोरोना को लेकर संवाद नहीं हुआ है। केंद्र और राज्यों के बीच जीएसटी की जंग छिड़ी है। वह भी जरूरी है पर कोरोना का संक्रमण रोकना उससे ज्यादा जरूरी है। अगर कोरोना संक्रमण को रोकने का जल्दी प्रयास नहीं हुआ है तो सारे प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी पर नहीं आने वाली है।
दुनिया भर के देश अपने नागरिकों को भरोसा दिलाने के लिए वैक्सीन खरीद के सौदे कर रहे हैं। पर भारत में उसकी भी पहल नहीं हो रही है। उलटे स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि अगले साल मार्च तक भारत की वैक्सीन आ जाएगी। उन्होंने साथ ही लोगों को डराते हुए यह भी कहा कि अगर कोई तैयार नहीं होगा तो पहली वैक्सीन वे लगवा लेंगे। सवाल है कि ऐसे बिना सिर पैर के बयान का क्या मतलब है। जब इंसानों पर परीक्षण सफल होने के बाद वैक्सीन बनेगी तो फिर उससे डर दिखाने का क्या मतलब है? बहरहाल, सरकार के इस रुख से जाहिर हो गया है कि वह दूसरी विदेशी कंपनियों से वैक्सीन नहीं खरीदने जा रही है। अपनी वैक्सीन मार्च में आएगी, जिसका मतलब होगा कि उसके दो साल या उससे भी ज्यादा समय लगेगा सभी नागरिकों तक वैक्सीन पहुंचने में। अगले साल मार्च तक ही भारत में तीन करोड़ तक मामले पहुंच जाएंगे।