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महामारी की अनिश्चितता से बढ़ी चिंता

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महामारी की अनिश्चितता से बढ़ी चिंता
कोरोना वायरस के संक्रमण शुरू हुए छह महीने हो गए हैं। इन छह महीनों में इस वायरस की महामारी की लड़ाई में क्या हासिल हुआ और अभी क्या खतरा बचा हुआ है इस पर विचार करें तो बहुत हैरान करने वाली बातें सामने आएंगी। जैसे पहली हैरान करने वाली बात यह है कि जिस समय देश में कोरोना वायरस के कम मामले थे और लॉकडाउन लागू किया गया था उस समय लोगों के मन में इस वायरस को लेकर खौफ था। वे डरे हुए थे और सारे दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे थे। पर जब हर दिन 25 हजार से ज्यादा मामले आ रहे हैं और पांच सौ से ज्यादा लोग इस वायरस के संक्रमण से मर रहे हैं तो लोगों का डर खत्म हो गया है। वे सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन इसलिए कर रहे हैं क्योंकि फाइन हो जाने का खतरा है। अब सवाल है कि कोरोना वायरस के मामले बढ़ने के बावजूद भय क्यों खत्म हुआ? इसके दो स्पष्ट कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि सरकार ने लगातार प्रेस कांफ्रेंस करके और संचार के दूसरे माध्यमों से या व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के जरिए यह बात लोगों के दिमाग में फैला दी है कि यह मामूली सर्दी, जुकाम वाला वायरस है। लोग आसानी से ठीक हो रहे हैं और अस्पतालों में भरती होने की भी जरूरत नहीं है। यानी घर पर ही लोग रह कर ठीक हो जाएंगे। दूसरा कारण यह है कि कोरोना वायरस की वजह से आर्थिक संकट सबके सामने खड़ा हो गया है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि जान और जहान दोनों बचाना है पर अब लोग जहान की ज्यादा चिंता कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि काम धंधे बचेंगे या कमाई होगी तो जान भी बच जाएगी। यानी उन्हें लग रहा है कि कोरोना से लड़ा जा सकता है और बचा भी जा सकता है पर आर्थिक बदहाली से नहीं बचा जा सकता है। सो, लोग आर्थिक बदहाली से निकलने के लिए कोरोना वायरस से संक्रमित होने की जोखिम ले रहे हैं। पर मुश्किल यह है कि इस जोखिम के बावजूद उनकी आर्थिक बदहाली के हालात नहीं बदलने वाले हैं। वे जान जोखिम में डाल कर काम धंधे के लिए निकल रहे हैं पर कहीं भी काम धंधा नहीं है। छोटे छोटे स्वरोजगार करने वालों की भारत में सबसे ज्यादा तादाद है पर सबका एक ही रोना है कि बाजार में ग्राहक नहीं हैं। असल में वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था पटरी पर उतरी और उसके बाद कोई प्रयास उसे पटरी पर लाने का नहीं किया गया। लाखों करोड़ रुपए का जो पैकेज घोषित किया गया है वह सप्लाई साइड को मजबूत करने के लिए था। उसमें बाजार में मांग बढ़ाने वाली एक भी घोषणा नहीं थी। चूंकि बाजार में मांग नहीं है और मांग बढ़ने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही है इसलिए उत्पादन भी ठप पड़ा है या फैक्टरियां कम क्षमता के साथ काम कर रही हैं। यह स्थिति उद्यमियों और कारोबारियों के लिए ज्यादा नुकसानदे है। इससे अच्छी स्थिति यह थी कि सब कुछ बंद था। इस बीच छह महीने के बाद यह स्थिति हो गई है कि कोरोना को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। सब कुछ इतना अनिश्चित सा है कि उसने लोगों की चिंताएं ज्यादा बढ़ा दी है। शुरू में ऐसा लग रहा था कि कोरोना की लड़ाई जल्दी ही खत्म हो जाएगी। प्रधानमंत्री ने यह लडाई 21 दिन में खत्म होने की बात कही थी। फिर भी लोगों को लग रहा था कि दो-तीन महीने में यह खत्म हो जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ। उलटे अब इसके अगले पूरे साल रहने का अंदेशा जताया जाने लगा है। पिछले दिनों अमेरिकी इंस्टीच्यूट एमआईटी का एक प्रोजेक्शन आया, जिसके मुताबिक भारत में अगले साल फरवरी में हर दिन 2.87 लाख केसेज आ सकते हैं और अगले साल के आखिर तक भारत दुनिया का सबसे ज्यादा संक्रमित देश बन सकता है। इस प्रोजेक्शन ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी। लोगों को इस किस्म के प्रोजेक्शन अब इसलिए भी सच लगने लगे हैं क्योंकि भारत में संक्रमितों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। हर दिन 25 हजार से ज्यादा मामले आ रहे हैं और कोरोना वायरस के एक्टिव केसेज की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह तीन लाख से ऊपर पहुंच गई है। बढ़ते हुए केसेज की वजह से राज्यों की सरकारों को पाबंदी लगाने का फैसला करना पड़ रहा है। ध्यान रहे इस समय एक दर्जन राज्यों में किसी न किसी रूप में प्रतिबंध लगा हुआ है। कहीं कंपलीट लॉकडाउन है तो कहीं दो दिन का लॉकडाउन है। कहीं रात का कर्फ्यू है तो कहीं रविवार का कर्फ्यू है। इससे भी अनिश्चितता बढ़ी है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है यह स्थिति कब तक रहेगी। इसका मनोवैज्ञानिक असर लोगों पर यह हुआ है कि वे अपना खर्च नहीं बढ़ाना चाहते हैं। वे बचत पर ध्यान रहे हैं आगे के संभावित संकट के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। इसकी वजह से भी मांग नहीं बढ़ पा रही है। ध्यान रहे सरकार ने जून में जब सब कुछ खोलने का फैसला किया था उसके बाद बड़े जोर शोर से इसका प्रचार हुआ था कि कारोबार लॉकडाउन से पहले वाली स्थिति में लौट रहा है। पर डेढ़ महीने बाद चक्र उलटा चलने लगा है। सारी आर्थिक गतिविधियां फिर सुस्त होने लगी हैं। लोगों ने आर्थिक कारणों से और कोरोना की चिंता में भी आवाजाही कम कर दी है। आर्थिक गतिविधियों के एक आकलन का पैमाना बिजली की खपत होती है, यह फिर कम होने लगी है। अभी जो लोग अगले वित्त वर्ष में आर्थिकी में सुधार की भविष्यवाणी कर रहे हैं वे असल में सिर्फ आंकड़े सुधरने की बात कर रहे हैं। आंकड़े इसलिए सुधर जाएंगे क्योंकि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी इतनी नीचे चली जाएगी कि अगले साल कुछ भी सुधार होगा तो वह बहुत ज्यादा दिखाई देगा। पर हकीकत यह है कि कोरोना वायरस के पिछले छह महीने के काल में विक्रेता और उपभोक्ता दोनों बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं और इसलिए अगले काफी समय तक उनकी स्थिति में सुधार की गुंजाइश नहीं है।
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