जैसा असम, त्रिपुरा और बंगाल की घटनाओं ने फिर दिखाया - भारत में हिन्दू समाज बहुसंख्यक की तरह न रहता है, न सोचता है। नागरिकता कानून पर सब से पहला विरोध उन्होंने ही किया। यह कोई अपवाद घटना नहीं है। महाराष्ट्र में शिव सेना ने भी इस का विरोध किया, जो भाजपा से भी प्रखर हिन्दूवादी मानी जाती रही है। यह भी नोट करना चाहिए कि कांग्रेस, सपा, बसपा, कम्युनिस्ट पार्टियाँ भी मूलतः हिन्दुओं से भरी पार्टियाँ हैं। उन में कहने को इक्का-दुक्का मुसलमान हैं।
मजे की बात कि इस विडंबना को एक बार स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने भी नोट किया। बाल पाटिल तथा अन्य बनाम भारत सरकार (2005) मामले में निर्णय देते हुए न्यायाधीशों ने स्पष्ट लिखा, “ ‘हिन्दू’ शब्द से भारत में रहने वाले विभिन्न प्रकार के समुदायों का बोध होता है। यदि आप हिन्दू कहलाने वाला कोई व्यक्ति ढूँढना चाहें तो वह नहीं मिलेगा। ... भारतीय समाज में लोगों का कोई हिस्सा या समूह बहुसंख्यक होने का दावा नहीं कर सकता। हिन्दुओं में सभी अल्पसंख्यक हैं।” मगर दुर्भाग्य! सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अल्पसंख्यक के लिए कुछ न किया।
यह कोई बढ़ा-चढ़ा कर कही बात नहीं। बल्कि गंभीर सचाई है हिन्दू न केवल दुनिया में, बल्कि भारत में भी सब से बेचारे अल्पसंख्यक हैं। अर्थात्, दुनिया में ‘माइनॉरिटी’ अवधारणा से जो समझा जाता है, कि जिसे उपेक्षित, वंचित किया, सताया गया हो। जिसे किसी दबंग समुदाय से अपमान, प्रताड़ना आदि झेलनी पड़ती रही हो। अतः जिसे विशेष उपायों से सुरक्षा देने की जरूरत हो। जैसे, यूरोपीय देशों में यहूदी अथवा जिप्सी समुदाय; संयुक्त राज्य अमेरिका में नीग्रो; मिस्त्र में कॉप्टिक क्रिश्चियन्स; या पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दू।
ये सब ऐसे समुदाय हैं जिन्हें संबंधित देशों में दूसरों के हाथों उत्पीड़ित, अपमानित होना पड़ा है। भारत में उलटा ही रहा था। यहाँ अल्पसंख्यक होते हुए मुसलमानों ने राज किया। आज भी मुस्लिम ठसक से कहते हैं कि उन्होंने भारत पर 600 वर्षों तक शासन किया है, और फिर करेंगे। इस के विपरीत हिन्दू अपना दमन, उत्पीड़न बताने से भी डरते हैं। बच्चों को झूठा इतिहास पढ़ाते हैं। कश्मीर से लेकर केरल तक हिन्दुओं के वर्तमान उत्पीड़न पर भी मुँह बंद रखते हैं। ठीक दिल्ली में हिन्दू मंदिर को एक गैर-हिन्दू भीड़ तोड़ डालती है, और हिन्दुओं से भरे बड़े अखबार बताने में भी संकोच करते हैं कि किस ने, और क्या कहते हुए यह किया?
जबकि अकबरुद्दीन ओवैसी खुले भाषण (24 जुलाई 2019) में कहते हैं कि ‘आरएसएस वाले उन से डरते हैं’, कि ‘मुसलमानों को शेर बनना होगा ताकि कोई चायवाला सामने खड़ा न हो सके’। उन्होंने अपनी पंद्रह मिनट वाली धमकी भी दुहराई। उन्होंरने पहले भी एक बड़ी सभा में कहा था, ‘हम (मुसलमान) 25 करोड़ हैं और तुम (हिन्दू) 100 करोड़ हो, मगर 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो, देख लेंगे किस में कितना दम है।’
यह सब उसी तथ्य का संकेत है कि असली प्रताड़ित, अल्पसंख्यक हिन्दू हैं। मुस्लिम नेताओं के सार्वजनिक वक्तव्य केवल इस की पुष्टि करते हैं। यह पिछले सौ साल से लगातार चल रहा है। डॉ. अंबेदकर ने ऐसे कई उदाहरण अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान या भारत का विपाकिस्तान या भारत का विभाजन’ (1940) में दिए हैं। जैसे, सन् 1928 में निजामुद्दीन दरगाह के प्रमुख और बड़े सूफी ख्वाजा हसन निजामी ने एक घोषणापत्र में कहा, ‘‘मुसलमान कौम ही भारत के अकेले बादशाह हैं। उन्होंने हिन्दुओं पर सैकड़ों वर्षों तक शासन किया और इसलिए उन का इस देश पर अक्षुण्ण अधिकार है। हिन्दू संसार में एक अल्पसंख्यक समुदाय हैं। … लोगों पर शासन करने की उन की योग्यता ही क्या है? मुसलमानों ने शासन किया है और मुसलमान ही शासन करेंगे।’’
अर्थात्, मुसलमान नेता हिन्दुओं की वास्तविक अल्पसंख्यक स्थिति से अवगत ही नहीं, बल्कि हिकारत से उल्लेख भी करते हैं। सैयद शहाबुद्दीन ने सन् 1983 के लगभग कहा था कि भारतीय शासक सेक्यूलरिज्म का पालन इसलिए करते हैं क्योंकि मुस्लिम देशों से डरते हैं। उन्होंने यह धमकी भी दी थी कि अरब देशों से कहकर भारत को तेल की आपूर्ति बंद करा देंगे! सन् 1990 में कश्मीर में खुला नारा दिया गया था, ‘असि छु बनावुन पाकिस्तान, बटव रोस तु बटन्यव सान’ (हम पाकिस्तान बनाएंगे, कश्मीरी पंडितों को खत्म कर, मगर उन की स्त्रियों को रख कर)। वहीं यह नारा भी था, ‘या रलिव, या गलिव, या चलिव’ (या तो इस्लाम में मिल जाओ, या खत्म हो जाओ, या भाग जाओ)। आज पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में हिन्दुओं को यह धमकी त्रस्त रखती है: ‘गोरू राखबि कैंपे, टाका राखबि बैंके, बोउ राखबि कोथाय?’ (गायों को सी.आर.पी.एफ. कैंपों में रख कर बचाओगे, रूपए को बैंक में रखकर बचाओगे, अपनी स्त्रियों को कहाँ रखोगे?)। जरा इस की क्रूरता को महसूस तो करें!
क्या ऐसा दमन, अपमान, जबरन धर्मांतरण, बलात्कार तथा नंदीमर्ग, गोधरा, मराड, जैसे अनगिनत संहार तथा पलायन भारत में किसी और समुदाय के हुए? फिर भी, वास्तविक उपेक्षित,, उत्पीड़ित के दुःख की किसी को परवाह नहीं रही। उन की दुरअवस्था की पहचान यह भी है कि किसी भारतीय शासक ने आज तक भयग्रस्त हिन्दुओं (वे जहाँ भी हैं) से नहीं पूछाः कि ‘क्या हमारे राज में तुम सुरक्षित महसूस करते हो?’ यह भारत का सब से बड़ा उपेक्षित सवाल है।
यह सब साफ दिखाता है कि इस देश में हिन्दू लोग ही उत्पीड़न, हिंसा, हिकारत और संवैधानिक भेदभाव के भी शिकार है। जी हाँ, संविधान की धाराओं 25-31 को व्यवहार में विकृत करके हिन्दुओं को शैक्षिक, सांस्कृतिक अधिकारों में समानता से वंचित कर दिया गया। भारत के सिवा किसी देश में ऐसा नहीं कि 'मायनोरिटी' को वैसे अधिकार हों, जो गैर-माइनोरिटी को न हों। पर भारत में गत 40 साल से यही हो गया।
अतः न केवल हिन्दुओं की स्थिति उत्पीड़ित अल्पसंख्यक जैसी है, बल्कि उत्पीड़न करने वाले स्वयं यह कहने में संकोच नहीं करते। समय-समय पर ईमाम बुखारी, सैयद शहाबुद्दीन, फारुख, महबूबा, आदि कितने ही नेता उग्र बयानबाजियाँ और सरकार एवं न्यायालय तक को धमकियाँ तक देते रहे हैं। यदि भारत में यह हाल है, तो पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं की स्थिति की सहज कल्पना की जा सकती है। पर कल्पना की जरूरत नहीं, क्योंकि नियमित समाचार आते रहते हैं।
इस पृष्ठभूमि में, नागरिकता कानून पर ध्यान देना चाहिए। आज दुनिया में जनसांख्यिकी एक जिहादी हथियार के रूप में भी प्रयोग हो रही है। उस से अमेरिका और यूरोप में भी चिंता है। अभी ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की जीत में यह प्रमुख कारण रहा, जहाँ लोगों अरब से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को रोकना चाहते हैं। क्योंकि कई इस्लामी संगठनों की रणनीति मुस्लिम आबादी बढ़ाकर प्रभुत्व कायम करना भी है। कुछ भारतीय मुस्लिम नेता भी ऐसी बातें कहते रहते हैं। वे कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न पर मुँह सिले रखते थे, पर बोस्निया, अफगानिस्तान, ईराक, फिलीस्तीन आदि दूर देशों के मुसलमानों के लिए बयान औक जुलूस निकालते रहे हैं। यह पूरा परिदृश्य मामले की गंभीरता दिखाता है। पूर्वी यूरोप ने तो मुस्लिम आव्रजन पर पूरी पांबदी लगा दी है। क्योंकि इतिहास साफ दिखाता है कि किसी देश में मुस्लिम जनसंख्या का एक सीमा पार करना और अशांति पैदा होने में सीधा संबंध है।
तब क्या दुनिया में हिन्दुओं के एक मात्र देश, भारत, को इस की फिक्र नहीं करनी चाहिए कि यहाँ जनसांख्यिकी और न बिगड़े? यहाँ के मुसलमान पहले ही अपने लिए एक अलग देश तक ले चुके हैं! आगे भी उन के मंसूबे जाहिर हैं। इस हाल में भी हिन्दू नेताओं द्वारा आपसी छीन-छपट में व्यस्त रहना भी दिखाता है कि इस देश में कौन अरक्षित है!
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