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एक बड़े उद्देश्य का मज़ाक बनना

ByNI Editorial,
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एक बड़े उद्देश्य का मज़ाक बनना
सुशील कुमार सिंह : छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दावा करते हैं कि दुनिया में आज भारत का जितना भी बोलबाला है वह कांग्रेस की उन नीतियों का नतीजा है जो शिक्षा, स्वास्थ्य, अनाज की पैदावार और बुनियादी संरचना के क्षेत्र में उसने अपनाईं। वे आगे कहते हैं कि अगर हम इतना सब कर सकते हैं तो नगरनार स्टील प्लांट को भी चला कर दिखा देंगे। इस प्लांट के विवाद पर भूपेश बघेल का यह ताज़ातरीन बयान है जिसमें कहीं से वह गंभीरता नहीं दिखती जो किसी बड़े उद्देश्य के प्रति होनी चाहिए। असल में, हल्के राजनीतिक बयानों के जरिये इस महत्वपूर्ण मसले के सामान्यीकरण की शुरुआत भाजपा ने की थी जो छत्तीसगढ़ में विपक्ष में है। शायद बघेल भाजपा के बिछाये बयानों में फंस रहे हैं। पिछले दिनों नीति आयोग की बैठक में भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की थी कि नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण करने की बजाय उसे राज्य सरकार को सौंप दिया जाए, वह उसे चलाएगी। बघेल पिछले कई महीनों से इस बारे में अभियान छेड़े हुए हैं। पिछले साल अगस्त में उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और फिर दिसंबर में छत्तीसगढ़ विधानसभा से इसके लिए एकमत से प्रस्ताव भी पास कराया। लेकिन यह दावा करने भर से काम नहीं चलेगा कि कांग्रेस ने देश में इतने काम किए हैं तो हम इस प्लांट को भी चला कर दिखा देंगे। राज्य सरकार को बाकायदा इसके लिए एक पूरा आर्थिक प्रस्ताव तैयार करके केंद्र को भेजना चाहिए जिसमें स्पष्ट तौर पर यह बताया जाए कि केंद्र इसके विनिवेश से जो राशि चाहता है उसे छत्तीसगढ़ कैसे चुकाएगा। केंद्र को भेजने के साथ ही बघेल सरकार को यह प्रस्ताव सार्वजनिक भी कर देना चाहिए। अगर राज्य सरकार ऐसा प्रस्ताव विधानसभा में रख दे तो वह अपने आप सार्वजनिक हो जाएगा। देश को इसकी जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि यह शायद पहला मामला है जब सार्वजनिक क्षेत्र के किसी संस्थान को बिकता देख कोई राज्य कह रहा है कि इसे हमें दे दो, हम इसे चलाएंगे। बस्तर ज़िले के मुख्यालय जगदलपुर से लगभग बीस किमी दूर नगरनार नाम का एक गांव है। पिछले दशक के प्रारंभ में इस इलाके में एक स्टील प्लांट लगाने की योजना पर काम शुरू हुआ। तब छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार थी और केंद्र में यूपीए की। दोनों के सहयोग से बात आगे बढ़ी। दिलचस्प यह है कि यह स्टील प्लांट सेल यानी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड का नहीं है। यह इस्पात मंत्रालय के एक अन्य पीएसयू एनएमडीसी यानी नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन का इकलौता स्टील प्लांट है जिसे उसकी बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना बताया जाता रहा। करीब 1980 एकड़ में बन रहे इस प्लांट की उत्पादन क्षमता तीस लाख टन सालाना होगी। पिछले साल जुलाई में इसकी लागत को संशोधित किया गया तो वह 23140 करोड़ रुपए पर पहुंच गई और तब तक एनएमडीसी 16662 करोड़ खर्च भी कर चुका था। जहां यह प्लांट बन रहा है वह माओवादियों के प्रभाव वाला इलाका है। प्लांट के बनने में छह साल की देरी हो चुकी है, फिर भी इलाके के लोगों को इस प्लांट से हजारों प्रत्यक्ष और हजारों अप्रत्यक्ष रोजगार मिलने की उम्मीद है। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने इसके लिए अपनी जमीनें दीं। मगर जैसा कि कई दूसरी अच्छी चीजों के साथ होता रहा है, इसके भी विनिवेश का नंबर आ गया। इसके दीपम की सूची में आने के बाद मुख्यमंत्री बघेल ने पिछले अगस्त में प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा और इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की। उन्होंने लिखा कि इस प्लांट के लिए करीब 610 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण ’सार्वजनिक प्रयोजन’ बता कर किया गया था। फिर इस प्लांट में 211 हेक्टेयर जमीन राज्य सरकार की है जिसमें से केवल 27 हेक्टेयर एनएमडीसी को तीस साल की लीज पर सशर्त दी गई। बाकी जमीन छत्तीसगढ़ सरकार की ही है। राज्य सरकार ने जो जमीन उद्योग विभाग को दी थी उसके लिए भी यह शर्त है कि इस पर एनएमडीसी अपना स्टील प्लांट लगाएगा। मगर इस पत्र से केंद्र की तैयारी पर कोई असर नहीं पड़ा और पिछले अक्टूबर में सीसीईए यानी कैबिनेट की आर्थिक मामलों की कमेटी ने इस प्लांट का एनएमडीसी से डीमर्जर करने और फिर उसके रणनीतिक विनिवेश की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। सीसीईए की यह बैठक प्रधानमंत्री की अध्य़क्षता में हुई थी। राज्य सरकार ने इस पर भी हार नहीं मानी। पिछली 28 दिसंबर को विधानसभा में छत्तीसगढ़ के उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने इस प्लांट के विनिवेश के विरोध का एक प्रस्ताव पेश किया। इस पर भाजपा यानी विपक्षी सदस्यों ने सवाल किया कि अगर केंद्र सरकार इस प्लांट को बेचने का इरादा नहीं बदलती, तब क्या राज्य सरकार इसे खरीदना चाहेगी। यह सुन कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खड़े हो गए और उन्होंने विपक्ष से पूछा कि अगर हम ऐसा प्रस्ताव लाएं तो क्या आप समर्थन देंगे। विपक्ष के पास कोई रास्ता नहीं बचा और उसने हामी भर दी। फिर प्रस्ताव में संशोधन हुआ और सर्वसम्मति से पास हुआ। नेता विपक्ष धर्मलाल कौशिक ने सदन में यह आश्वासन भी दिया कि उनकी पार्टी के नेता दिल्ली जाकर अपने केंद्रीय नेताओं से इस बारे में बात करेंगे। किसी विधानसभा से किसी संवेदनशील क्षेत्र के किसी सरकारी प्रोजेक्ट को लेकर इस तरह का प्रस्ताव पास होना, वह भी सर्वसम्मति से पास होना, कोई खेल नहीं है। ऐसे उदाहरण मुश्किल से मिलेंगे और तभी मिलेंगे, जब उद्देश्य बहुत बड़ा हो। मगर इस प्रस्ताव के दो दिन बाद ही हैदराबाद स्थित एनएमडीसी मुख्यालय से नगरनार स्टील प्लांट के अफसरों को एक पत्र भेजा गया जिसमें प्लांट के लिए जारी हुई तमाम स्वीकृतियों, लाइसेंस, जमीन अधिग्रहण संबंधी ग्रामसभा के प्रस्ताव और संबंधित अदालती मामलों के दस्तावेज तलब किए गए थे। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार डीमर्जर इसी मार्च तक और विनिवेश की प्रक्रिया आगामी सितंबर तक पूरी करना चाहती है। एक अंतर-मंत्रालय ग्रुप ने तय किया था कि उत्पादन शुरू होने के बाद ही नगरनार प्लांट में रणनीतिक विनिवेश किया जाए। सरकार जुलाई तक प्लांट में उत्पादन शुरू करना चाहती है। दूसरी तरफ, विधानसभा में एकजुटता दिखाने के बाद राज्य की राजनीति अपने पुराने ढर्रे पर उतर आई है। नेता विपक्ष धर्मलाल कौशिक अब कहते हैं कि हमने और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने पहले भी अपने केंद्रीय नेताओं से बात की थी और अब फिर की है कि इस प्लांट को सरकार चलाए तो बेहतर होगा। लेकिन वे यह कहना नहीं भूलते कि भूपेश बघेल सरकार जो चौदह महीने बाद भी धान खरीदी का पैसा नहीं चुका पा रही, वो यह प्लांट कैसे चलाएगी। खुद रमन सिंह जो अब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, वे ट्विट करते हैं कि एक तरफ बघेल सरकार नगरनार प्लांट के निजीकरण का विरोध करती है और दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल को निजी हाथों में देने की तैयारी में है, यह कैसा दोहरा मापदंड है? आप कह सकते हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से कोई भाजपा नेता इस प्लांट के विनिवेश को रोकने की मांग कर सके, इसके लिए भारी हिम्मत चाहिए। लेकिन यह स्थिति तो भूपेश बघेल के लिए अवसर की तरह है। बघेल को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए। उन्हें वास्तव में नगरनार प्लांट का निजीकरण रोकना है तो उनकी सरकार को इसकी तकनीकी तैयारी करनी होगी। इस मुद्दे पर रोजमर्रा की बयानबाज़ी में उलझ कर तो वे अपने अभियान की अहमियत ही गंवा देंगे।
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