
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में एक परिवार के तीन सदस्यों की हत्या वाली खबर ने चौंकाया है। सोशल मीडिया पर 35 साल के बंधू प्रकाश , 32 साल की उन की पत्नी ब्यूटी मोंडल पाल आठ साल के उन के बेटे अंगन बंधू पाल की खून से लथपथ लाशों की तस्वीरें भी आ चुकी थी। मोंडल पाल गर्भवती थी। सोशल मीडिया पर इसे माब लिंचिंग की घटना बताया जा रहा था पर मेन लाईन मीडिया में खबर नहीं थी। सरकार चुप थी। वह तब और चुप हो गई , जब आरएसएस के एक अधिकारी ने दावा कर दिया कि मृतक बंधू प्रकाश संघ के स्वंयसेवक थे। सरकार चुप थी तो गवर्नर जगदीप धनकड़ का कडा बयान आ गया। हत्या राजनीतिक मुद्दा बन गई। पिछले एक साल में पश्चिम बंगाल इस तरह की 16 हत्याएं देख चुका है। हालांकि मीडिया ने खबर को माब लिंचिंग की तरह नहीं उछाला, पर संघ जिस तरह से माब लिंचिंग बता रहा है और गवर्नर के बयान से जिस तरह राजनीतिक गर्मी शुरू हुई है, बात सरकार निलम्बन तक पहुंच सकती है।
दो दिन पहले ही नसुरुद्दीन शाह और अपर्णा सेन की रहनुमाई में 180 बुद्धिजीवियों ने इस बात पर हंगामा खड़ा किया था कि मोदी सरकार माब लिंचिंग रोकने के लिए सख्त क़ानून नहीं बना रही और जिन 49 बुद्धिजीवियों ने सख्त क़ानून की मांग करते हुए प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखी थी उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकद्दमा दायर कर लिया गया। बुद्धिजीवियों की यह मांग राजनीति से प्रेरित थी क्योंकि मुकद्दमा दायर करने का आदेश मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट ने एक वकील की याचिका पर दिया था , लेकिन माब लिंचिंग की घटनाओं के लिए संघ परिवार पर हमला कर रहे ख़ास विचारधारा के 180 बुद्धिजीवियों ने ऍफ़आईआर दर्ज करने का आरोप प्रधानमंत्री मोदी पर मढ दिया था। दशहरे के मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संघ को बदनाम करने की साजिश बताते हुए माब लिंचिंग की घटनाओं की निंदा की थी।
खैर अवार्ड वापसी गैंग के राष्ट्रव्यापी हल्ले से डर कर मुजफ्फरपुर के एसएसपी ने जांच के बाद ऍफ़आईआर रद्द कर दी और बाकायदा वकील पर ऍफ़आईआर दायर कर दी ताकि मोदी को तो इस मामले में बेगुनाह बताया जा सके। अपना ध्यान इस घटना पर यह देखने के लिए गया था कि मुर्शिदाबाद की घटना पर उन 180 बुद्धिजीवियों के बयान या केंडल मार्च की खबर आई है या नहीं। पर कोई बयान नहीं आया था।
हत्याओं को सांप्रदायिक आधार पर देखने का यह जीता जागता प्रमाण है। अब तक जिन माब लिंचिंग की घटनाओं पर अवार्ड वापसी गैंग हल्ला कर रहा था , वे सभी घटनाए हिन्दुओं की ओर से मुस्लिमों की हत्याओं की थी , वे भी गौरक्षको की ओर से गौ तस्करों की माब लिंचिंग की, जिन की प्रधानमंत्री खुद निंदा कर चुके हैं। गुडगाँव की घटना पर भी कोई बयान नहीं आया ,जहां गौ तस्करी कर रहे एक ही समुदाय के पांच लोगों ने उन का पीछा कर रहे गौरक्षक को गोली मार दी थी।
जहां एक तरह मोदी सरकार बनने के बाद नक्सलियों, वामपंथियों और कट्टरवादी मुस्लिम संगठनों की ओर से भारत और भारत से बाहर हिन्दुओं को हिंसक बताने की कोशिश हो रही है वहीं गुरूवार की लखनऊ में हुई एक घटना एहसास करवाती है कि इन की कोशिश को नाकाम बनाने के भी सार्थक प्रयास भी हो रहे हैं। गुरूवार को ही लखनऊ में मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग की बैठक ने औरंगजेब और दारा शिकोह की याद दिला दी। बादशाह औरंगजेब हिन्दुओं के प्रति क्रूर था , लेकिन उस का भाई दारा शिकोह हिन्दू संस्कृति का सम्मान करने वाला था।
उस ने संस्कृत भाषा सीखी और कई हिन्दू ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया। जहां नसुरुद्दीन शाह हिन्दुओं के खिलाफ बयानबाजी करने वालों की रहनुमाई करते दिखते हैं , वहां लखनऊ में हुए मुस्लिम बुद्दीजीवियों की बैठक में नसुरुद्दीन के बड़े भाई लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन ने कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव के लिए मुसलमानों को रामजन्मभूमि हिन्दुओं को सौंप देनी चाहिए। बैठक में जमीरुद्दीन शाह के अलावा मशहूर कार्डियोलाजिस्ट पद्मश्री डॉ मंसूर हसन, ब्रिगेडियर अहमद अली, पूर्व आईएएस अनीस अंसारी, रिज़वी, पूर्व आईपीएस पूर्व जज बीडी नकवी, डॉ कौसर उस्मान की भी यही राय थी।