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दूसरी बीमारियों का क्या होगा?

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दूसरी बीमारियों का क्या होगा?
पूरे देश में लागू लॉकडाउन से कोरोना वायरस के संक्रमण पर कितना असर होगा है इसका आकलन अगले कुछ हफ्तों में होगा। भारत में लॉकडाउन 25 मार्च को शुरू हुआ है और पहले छह दिन के आधार पर नहीं कहा जा सकता है कि यह सफल हो रहा है या नहीं। लॉकडाउन तीन हफ्ते का है और अगले दो हफ्ते में ही तस्वीर साफ होगी कि संक्रमण को रोकने या इससे लड़ाई में यह उपाय कितना कारगर हुआ। पर यह जरूर तय लग रहा है कि अगर इसी तरह लॉकडाउन चलता रहा तो दूसरी और ज्यादा बड़ी समस्या पैदा हो सकती हैं। एक समस्या तो अर्थव्यवस्था की है। वह पूरी तरह से आईसीयू में चली जाएगी। भारत पहले से आर्थिक मंदी की चपेट में था और अब इस लॉकडाउन के बाद उसकी दशा और बुरी होने वाली है। देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा, इसे लेकर कई तरह के आकलन हो रहे हैं और आर्थिकी के जानकार अपनी राय दे रहे हैं। पर आर्थिकी से अलग लॉकडाउन का बड़ा असर होना तय है। सरकार और उसके साथ साथ आम लोग भी उम्मीद कर रही है कि पूरे देश को बंद कर देने, लोगों को उनके घरों में रख देने या सामाजिक दूरी बना देने से कोरोना वायरस का संक्रमण रूक जाएगा या इसके फैलने की स्पीड कम हो जाएगी और इस वजह से दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले भारत में जान का नुकसान कम होगा। कुछ हद तक यह मकसद लॉकडाउन से पूरा हो सकता है। हालांकि कुछ ही हद तक क्योंकि लॉकडाउन शुरू होने से पहले कितना संक्रमण फैल चुका है, उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। अगर पहले से संक्रमण फैला हुआ है तो इसका ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि भारत के पास न तो पर्याप्त संख्या में डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मी हैं और न जरूरी उपकरण हैं। फिर भी अगर मान लें कि इससे कोरोना वायरस से लड़ने में मदद मिल रही है तो बाकी दूसरी बीमारियों का क्या है? भारत में दूसरी बीमारियों से ग्रसित लोगों की तादाद भी करोड़ों में हैं। भारत को दुनिया की डायबिटीज कैपिटल कहा जाता है। यहां दुनिया के किसी भी दूसरे देश के मुकाबले ज्यादा मधुमेह के मरीज हैं। इसी तरह हाइपरटेंशन, कैंसर, किडनी रोग, अस्थमा जैसी अनेक बीमारियों से ग्रसित मरीजों की संख्या करोड़ों में है। कोरोना से लड़ाई में ऐसे मरीजों की अनदेखी हो रही है। ज्यादातर सरकारी अस्पतालों ने दूसरे मरीजों को भी देखना बंद कर दिया है। दिल्ली में एम्स जैसे अस्पताल ने ओपीडी बंद कर दी है। सोचें, यह क्या बिना सिर-पैर की बात है? कोरोना संक्रमण के अलावा दूसरी बीमारियों से प्रभावित लोग कहां जाएंगे? निजी अस्पतालों में क्या उन सबका इलाज संभव है? स्वास्थ्य से ही जुड़ा दूसरा संकट यह है कि भारत और दुनिया के दूसरे देशों में कंपलीट लॉकडाउन से दवा और स्वास्थ्य उपकरण बनाने के लिए जरूरी कंपोनेंट की कमी होने लगी है। अगले एक-दो महीने तो हो सकता है कि दिक्कत न हो पर अभी उत्पादन और आपूर्ति की चेन टूटी हुई है तो उसका असर तीन महीने बाद दिखेगा। भारत में अनेकों दवाएं बनाने के लिए कंपोनेंट चीन से आता है। वहां से इसका आयात बंद है। जीवन रक्षक स्वास्थ्य उपकरण बनाने वाली फैक्टरियां भी अभी वेंटिलेटर, मास्क, सैनिटाइजर, पीपीआई आदि बनाने में लगी हैं। इसका भी असर दूसरी बीमारियों के मरीजों के इलाज पर पड़ेगा। कोरोना वायरस के संक्रमण का इतना हल्ला मचा है कि डॉक्टर सामान्य मरीजों का भी इलाज करने से बच रहे हैं। चूंकि ज्यादातर सरकारी या निजी अस्पतालों में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स, पीपीई नहीं हैं। भारत में पीपीई की क्या स्थिति उसका पता इस तथ्य से लगता है कि कई राज्यों में डॉक्टरों व नर्सों को पीपीई के नाम पर रेनकोट दिया गया है। इसलिए डॉक्टर मरीजों का इलाज करने से कतरा रहे हैं। उनको खतरा दिख रहा है कि सामान्य सा दिख रहा मरीज कहीं कोरोना वायरस से संक्रमित न हो। दुनिया भर के देशों में डॉक्टरों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने या मरने की खबरें आ रही हैं उनसे भी डॉक्टर घबराए हुए हैं। लॉकडाउन से मानसिक अवसाद बढ़ने की खबरों पर अभी ज्यादा फोकस नहीं है। पर दो मामले ऐसे हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। पहला मामला दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल का है, जहां एक नौजवान व्यक्ति ने अस्पताल की छत से कूद कर खुदकुशी कर ली। उसको संदेह था कि उसे कोरोना वायरस का संक्रमण हो गया है। दूसरा मामला तमिलनाडु का है, जहां क्वरैंटाइन में रखा गया एक व्यक्ति निर्वस्त्र होकर सड़क पर निकल गया और एक उम्रदराज महिला को अपने दांतों से काट-काट कर मार डाला। इसी सिलसिले में जर्मनी के एक राज्य के वित्त मंत्री की खुदकुशी का भी जिक्र किया जा सकता है। ये सब अवसाद के मामले हैं। आने वाले दिनों में इनमें इजाफा हो सकता है। सरकार ने लॉकडाउन के नाम पर लोगों का बाहर निकलना बंद किया हुआ है। प्रधानमंत्री वे खुद कहा कि लोग 21 दिन तक भूल जाएं कि बाहर निकलना क्या होता है। यह भी अंदेशा है कि लॉकडाउन 21 दिन से आगे बढ़ेगा। इस बीच लोगों ने सचमुच घरों से निकलना बंद किया है। सरकार ने बड़े शहरों, महानगरों में पार्क वगैरह भी बंद किए हुए हैं। और ऊपर से कोरोना वायरस की महामारी से दुनिया भर में होने वाली मौतों की कहानियां हैं। सो, घर में बैठे लोगों का न सिर्फ मानसिक अवसाद बढ़ रहा है, बल्कि डायबिटीज, ब्लडप्रेशर आदि भी बढ़ रहे होंगे र इन सबका कुल जमा नतीजा यह होगा कि जो कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं होंगे उनमें से बहुतों को दूसरी बीमारी हो सकती है। इन सबके बारे में भी सोचने की जरूरत है।
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