यह लाख टके का सवाल है कि केंद्र की सरकार देश के सामने आसन्न संकटों को लेकर कब गंभीर होगी? कोरोना वायरस के झूठे-सच्चे आंकड़ों की बजाय वास्तविकता को समझते हुए इससे निपटने की कारगर रणनीति कब बनाएगी? आर्थिकी के पटरी पर लौटने का दावा करने के लिए इधर-उधर के छिटपुट आंकड़ों को छोड़ कर अर्थव्यवस्था की जमीनी स्थिति को कब समझेगी? राफेल विमान की वजह से चीन के दुम दबा कर भाग जाने के सरासर झूठे प्रचार को छोड़ कर कब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन को पीछे हटाने का प्रयास करेगी? हमने दुनिया के देशों की मदद की और वैक्सीन के मामले में हम दुनिया के देशों की मदद करेंगे, जैसे आत्ममुग्ध प्रचार से बाहर निकल कर कब सरकार वैक्सीन के बारे में अपनी रणनीति बनाएगी? इन सब सवालों के जवाब आसान नहीं हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कहा कि कोरोना काल में हमने डेढ़ सौ देशों की मदद की। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि कितने देशों ने भारत की मदद की। अकेले अमेरिका से कितनी बार वेंटिलेटर आए हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। पीएम केयर्स फंड का पैसा कैसे ऐसी कंपनी को वेंटिलेटर के लिए दिया गया, जिसके पास कोई तकनीक नहीं थी और ऑर्डर मिलने के बाद उसने इधर-उधर से सामान जुटाने का प्रयास शुरू किया। एक दूसरे भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि वैक्सीन तैयार करने की अपनी क्षमता के दम पर भारत दुनिया के देशों की मदद करेगा। सवाल है कि भारत ने अभी तक अपने लिए वैक्सीन का करार नहीं किया है तो दुनिया की मदद कैसे करेगा?
भारत के जिस सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया के पास सबसे ज्यादा वैक्सीन उत्पादन की क्षमता है उसने दुनिया की कई लैब्स के साथ करार कर रखा है। उसे उनके लिए वैक्सीन तैयार करनी है। वह वैक्सीन भी बनने से पहले बिक चुकी है। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ आदि ने वैक्सीन की करोड़ों करोड़ डोज का सौदा पहले से किया हुआ है और नकद पैसे अग्रिम भुगतान किए गए हैं। उसी सीरम इंस्टीच्यूट के सीईओ ने भारत सरकार से पूछा कि क्या अगले एक साल में वैक्सीन के लिए सरकार के पास 80 हजार करोड़ रुपए हैं? सोचें, भारत सरकार ने खुद अपने लोगों के लिए वैक्सीन का करार नहीं किया है और न पैसे का जुगाड़ दिख रहा है पर दावा यह है कि दुनिया के देशों की मदद करेंगे! ऐसी ही बातों से महामारी के दौरान भी लोगों को बरगलाया जा रहा है।
दुनिया के देशों में अगले एक से दो महीने में वैक्सीन आने वाली है। पर अभी तक भारत ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। सोमवार को भारत सरकार ने वैक्सीन के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल लांच किया है, जिस पर वैक्सीन के बारे में सारी जानकारी दी जाएगी। सवाल है कि लोगों को वैक्सीन के बारे में जानकारी चाहिए या वैक्सीन चाहिए? सरकार को बताना चाहिए कि उसने वैक्सीन के लिए क्या किया है? स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि अगले साल के शुरू में भारत की वैक्सीन आएगी। भारत की वैक्सीन आएगी का यह मतलब नहीं है कि भारत की वैक्सीन का व्यापक उत्पादन शुरू हो जाएगा। भारत की कंपनी बीबीआईएल जिस वैक्सीन पर काम कर रही है वह तैयार हो जाएगी। असली समस्या उसके बाद उत्पादन और वितरण की है, जिसमें महीनों या बरसों लगेंगे। उसकी कोई तैयारी अभी नहीं दिख रही है।
उधर चीन के साथ सीमा पर स्थिति गंभीर होती जा रही है। सर्दियां आ रही हैं और इस बार अरसे बाद ऐसा होगा कि सर्दियों में भी सेना डटी रहेगी। भारत टी-72 और टी-90 टैंक तैनात कर रहा है। चीन ने लद्दाख में कई स्थानों पर सीमा में घुसपैठ की है और भारत की एक हजार वर्ग किलोमीटर जमीन कब्जा की है। उधर डोकलाम में भी चीन ने भूटान के साथ लगते ट्राई जंक्शन पर अपना नियंत्रण बनाया है और समूचे अरुणाचल प्रदेश पर दावा कर रहा है। पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जब से पांच राफेल लड़ाकू विमान भारत की वायु सेना में शामिल किए गए हैं तब से चीन दुम दबा कर बिल में घुस गया है। ऐसा उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा है। चुनावी सभाओं में नेता ऐसी बातें कहते हैं तो संदर्भ समझ में आता है पर चुनावी सभा नहीं हो तब इस तरह की बातों से सवाल खड़े होते हैं। इससे ऐसा लग रहा है जैसे सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी अपने भाषणों से देश के लोगों को यकीन दिलाने का प्रयास कर रही है कि चीन दुम दबा कर छिप गया है। लोगों को झूठा यकीन दिलाते दिलाते ऐसा लग रहा है कि सरकार भी इसी नैरेटिव पर भरोसा करने लगी है।
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पिछली तिमाही में विकास दर के माइनस 24 फीसदी रहने और पूरे वित्त वर्ष में विकास दर निगेटिव रहने के आकलनों की बजाय सरकार इस तरह के आंकड़े बता रही है कि गाड़ियों की बिक्री बढ़ गई है और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। हकीकत यह है कि अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खराब है और निकट भविष्य में इसमें सुधार की भी गुंजाइश नहीं दिख रही है। सरकार के कथित राहत पैकेज से बावजूद लाखों कंपनियां बंद हो गईं और करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गईं। न बंद पड़ी कंपनियां चालू होने जा रही हैं और न लोगों को उनकी नौकरियां वापस मिलने जा रही हैं।
दुर्भाग्य से सरकार कोरोना वायरस, वैक्सीन की तैयारी, अर्थव्यवस्था की हालत, चीन से टकराव, किसानों के आंदोलन आदि के मसले पर गंभीरता से विचार करने की बजाय उन्हें रामभरोसे छोड़ा हुआ है। सरकार को हो सकता है कि चिंतित हो पर गंभीर नहीं है। गंभीर होती तो लोगों को सच बताती लेकिन सच बताने की बजाय सरकार केंद्रीय एजेंसियों के जरिए फिल्म उद्योग की अभिनेत्रियों के व्हाट्सएप चैट लीक करा रही है और चैनलों पर दिन भर उनके चैट्स दिखाए जा रहे हैं। देश सारी चीजें छोड़ कर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों के निजी चैट्स पढ़ने, देखने और सुनने में बिजी है।
सरकार कब गंभीर होगी?
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