जम्मू कश्मीर में एक साझा लड़ाई की तैयारी हो रही है। राज्य की छह राजनीतिक पार्टियां एक साथ आई हैं और उन्होंने एक संकल्प पारित किया है। इसमें जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की गई है और साथ ही यह भी मांग की गई है कि अनुच्छेद 370 बहाल किया जाए। यह मांग करने वाली पार्टियों में राज्य की दो मुख्य प्रादेशिक पार्टियां- नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी तो है ही साथ में कांग्रेस पार्टी और सीपीआई भी शामिल है। ये दोनों राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां हैं और अगर जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए की बहाली की मांग करती हैं तो उसका जवाब राष्ट्रीय स्तर पर देना होगा। सवाल है कि क्या कांग्रेस पार्टी बिहार के चुनाव में यह बात कह सकती है? अगर भाजपा ने बिहार के चुनाव प्रचार में कांग्रेस से पूछा कि वह कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली के बारे में क्या कहती है तो कांग्रेस का क्या जवाब होगा?
कांग्रेस कश्मीर से बाहर कहीं भी यह बात नहीं कह सकती है कि वह जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 या अनुच्छेद 35ए की बहाली चाहती है। जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस देना या चुनाव करा कर विधानसभा बहाल करना एक बात है और अनुच्छेद 370 बहाली की मांग करना दूसरी बात है। कांग्रेस को इस हिप्पोक्रेसी से बचना चाहिए। इसी किस्म की हिप्पोक्रेसी की वजह से कांग्रेस पार्टी की पूरे देश में ऐसी दुर्दशा है। पार्टी किसी भी मसले पर एक स्पष्ट लाइन नहीं तय कर पा रही है। मौजूदा समय की राजनीति के जितने भी मुद्दे हैं या विमर्श है उनमें से किसी भी मसले पर कांग्रेस की राय स्पष्ट नहीं है। ऐसी ही एक अस्पष्ट और आधी अधूरी राय के साथ वह जम्मू कश्मीर की पार्टियों के साथ जुड़ी है।
राज्य की छह पार्टियों ने एकजुट होकर जो एजेंडा तय किया है या जो संकल्प पारित किया है उसके दो लक्ष्य दिखाई दे रहे हैं। पहला तो राजनीतिक शक्ति हासिल करना है यानी चुनाव के जरिए सत्ता हासिल करना है और दूसरा राज्य के लोगों को यह भ्रम देना है कि वापस अनुच्छेद 370 की बहाली हो सकती है। यह भी कह सकते हैं कि अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली का भ्रम देकर सत्ता हासिल करना इसका लक्ष्य है। चाहे नेशनल कांफ्रेंस हो या पीडीपी या कांग्रेस उनको पता है कि अब इतिहास की धारा नहीं बदली जा सकती है। राज्य के विभाजन के फैसले को नहीं बदला जा सकता है। इसे देश ने और बहुत हद तक, चाहे जिस वजह से हुआ हो, कश्मीर ने भी इस फैसले को स्वीकार कर लिया है। पार्टियों को यह समझना चाहिए कि जिस कश्मीरियत को अनुच्छेद 370 के जरिए बचाने का दावा किया जाता था उसे पार्टियां इस अनुच्छेद के बगैर भी बचा सकती हैं। मौजूदा केंद्र सरकार भी कश्मीर की स्थिति में किसी बहुत बड़े बदलाव की शुरुआत नहीं कर रही है।
सो, इन पार्टियों के एकजुट होने का एकमात्र मकसद यह दिख रहा है कि राज्य में जब भी चुनाव हो तब सत्ता इनको मिले। सवाल है कि क्या चुनाव के समय तक ये पार्टियां अपना साथ बनाए रख पाएंगी? कह सकते हैं कि पिछले एक साल से जब साथ बना हुआ है तो आगे भी बना सकता है। आखिर एक साल पहले 2019 में चार अगस्त को ही फारूक अब्दुल्ला के गुपकर रोड स्थित आवास पर इन छह पार्टियों की बैठक हुई थी और एक गुपकर घोषणापत्र बना था। उसी में अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली और पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली का संकल्प पारित किया गया था। पर उस समय या अभी भी सबको पता है कि तुरंत कोई चुनाव नहीं होने वाला है। जब चुनाव की घोषणा होगी और भावनात्मक राजनीति से अलग वास्तविक राजनीति की शुरुआत होगी तब इनकी एकजुटता रहती है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि सीटों के बंटवारे और राजनीतिक मजबूरियों में यह एकता टूट भी सकती है।
इस संदेह का कारण यह भी है कि नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस अब मोटे तौर पर कश्मीर घाटी की पार्टी रह गए हैं। पहले कांग्रेस का जम्मू में मजबूत आधार था और नेशनल कांफ्रेंस का भी जम्मू इलाके में ठीक-ठाक आधार रहा है। पर अब भाजपा के मजबूत होने के बाद जम्मू के बड़े हिस्से में उसका आधार बन गया है। जब राज्य का बंटवारा नहीं हुआ था तब 87 विधानसभा सीटों में से 46 सीटें कश्मीर घाटी में थीं और जम्मू इलाके में 39 सीटें थीं। चार सीटें लद्दाख में आती थीं, जो अब अलग हो गई हैं। भाजपा ने जम्मू इलाके की 39 में से 25 सीटें जीती हैं। अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के बाद अब इसका कोई कारण नहीं दिख रहा है कि भाजपा के अपने इस आधार में कमजोरी आएगी। उलटे यह और मजबूत होगा।
दूसरी ओर राज्य में परिसीमन का काम शुरू हो गया है, जिसके तहत विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाई जानी है। लद्दाख की चार सीटें हटने के बाद भी कहा जा रहा है कि कम से कम सात सीटें बढ़ सकती हैं। यानी सीटों की संख्या बढ़ कर 94 हो सकती हैं। इसमें कुछ और इजाफा हो सकता है पर उससे ज्यादा अहम यह है कि राज्य में मतदाताओं की संख्या में दस फीसदी का इजाफा हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय राज्य में 78 लाख से कुछ ज्यादा मतदाता था। अनुच्छेद 35ए हटने के बाद एक बड़ी जमात को मतदान का अधिकार मिलेगा, जिससे करीब साढ़े सात लाख वोट बढ़ सकते हैं। इनमें ज्यादातर दलित, गोरखा, पाकिस्तान से आए हिंदू रिफ्यूजी और ऐसी महिलाएं शामिल हो सकती हैं, जिनकी शादी राज्य से बाहर हुई है। यह वोट बढ़ने का सबसे बड़ा फायदा भाजपा को होगा। परिसीमन किस तरह से होता है इससे भी अंदाजा लगेगा कि वोट बढ़ने का कितना फायदा भाजपा को होना है। कुल मिला कर जम्मू कश्मीर में चुनाव जब भी होगा, ऐतिहासिक होगा।
कश्मीर की साझा लड़ाई कहां पहुंचेगी?
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