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संविधान, लोकतंत्र भी रिटायर होंगे?

Byअजीत कुमार,
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संविधान, लोकतंत्र भी रिटायर होंगे?
केंद्र सरकार ने संसद भवन की इमारत को रिटायर करने की घोषणा कर दी है। उन्होंने नए संसद भवन का शिलान्यास करने के बाद कहा कि मौजूद संसद भवन ने इस देश को बहुत कुछ दिया लेकिन अब उसे आराम की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि नई संसद आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक बनेगी। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब उन्होंने अपनी पार्टी के अंदर एक मार्गदर्शक मंडल बनवाया तो ऐसी ही कुछ बात उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी और डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी से भी कही होगी। उनसे कहा गया होगा कि आप दोनों ने पार्टी के लिए बहुत कुछ किया है, पार्टी को बहुत कुछ दिया है, अब आपको आराम की जरूरत है। तब से दोनों स्थायी रूप से आराम कर रहे हैं। उनकी जगह पार्टी में नए नेता आ गए हैं, कैसे नेता आ गए हैं, यह अलग चर्चा का विषय है। इसी तरह भाजपा के अंदर एक अघोषित नियम बना कि 75 साल पूरे करने वाले नेताओं को सक्रिय राजनीति से रिटायर कर दिया जाएगा। अनेक लोग इस नियम के आधार पर रिटायर कर दिए गए। उन्हें विधानसभा, लोकसभा की टिकटें नहीं मिलीं। जो 75 साल पार कर गए उनको राज्यसभा में नहीं भेजा गया। उनकी जगह उनके बेटे-बेटियां आ गए। हालांकि इसमें भी अपवाद है। बीएस येदियुरप्पा जैसे नेता, जो मजबूत हैं और बांह मरोड़ने की तकनीक जानते हैं वे 75 साल का होने के बावजूद मुख्यमंत्री बने रहे। उनको न रिटायर किया जा सका और न मार्गदर्शक मंडल में भेजा जा सका। वैसे भी हर नियम के कुछ अपवाद होते हैं और उन्हीं अपवादों से नियम प्रमाणित होते हैं। तो येदियुरप्पा अपवाद हैं और मुख्य नियम यह है कि 75 साल पर रिटायर होना है। सो, भाजपा के नेताओं की तरह 75 साल पूरे करते ही भारत का संसद भवन भी रिटायर हो जाएगा। मौजूदा संसद भवन वैसे तो बना है 1927 में लेकिन भारतीय संसद के नाते इसका काम 1947 से शुरू हुआ। संविधान सभा की बैठकें इसमें हुईं, देश का नया संविधान बना, उसे स्वीकार किया गया और देश की अंतरिम सरकार चली। हालांकि पहला संसदीय चुनाव 1952 में हुआ और कायदे से संसदीय इतिहास उसी समय से शुरू होता है। पर 1947 के हिसाब से इस संसद भवन के 75 साल 2022 में पूरे हो रहे हैं, जब इसे रिटायर कर दिया जाएगा और इसके ठीक सामने बन रहे एक तिकोने से चार मंजिला संसद भवन में कार्यवाही शुरू हो जाएगी। वैसे अभी मौजूदा संसद भवन को रिटायर करने की कोई खास जरूरत नहीं थी। वह पुरानी हो गई है पर दुनिया के अनेक विकसित देशों में संसद भवन की इमारतें पुरानी हैं। वे अपनी विरासत बचाए रखने के लिए हर साल इन इमारतों पर करोड़ों, अरबों रुपए खर्च करते हैं और इसका संरक्षण करते हैं। जैसे ब्रिटेन के जिस वेस्टमिनस्टर मॉडल को भारत ने अपनाया है वहां की संसद भवन भारत की संसद भवन से 50 साल से ज्यादा पुरानी है। वह इमारत 1870 में बनी थी और अभी तक चल रही है। फ्रांस की संसद तो उससे दो सौ साल पुरानी है और हालैंड की संसद अभी जिस इमारत में चलती है वह 13वीं सदी की बनी इमारत है। ये विकसित और संपन्न देश हैं पर इनके यहां नई इमारत बनाने की जरूरत नहीं समझी गई। हालांकि इन देशों ने कोरोना संकट के समय अपने नागरिकों का नकद आर्थिक मदद की और तमाम किस्म की स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराईं। इसके उलट भारत में कोरोना काल में लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। प्रधानमंत्री के अपने गृह राज्य में 22 फीसदी लोगों को एक समय का खाना नहीं मिला पर संसद की नई इमारत बन रही है। बहरहाल, भारत का लोकतंत्र भी 2022 में 75 साल का हो रहा है। क्या इसे भी रिटायर किया जा सकता है? नए संसद भवन की बुनियाद रखते हुए प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र का बहुत गुणगान किया। तभी संदेह गहरा हो रहा है। आखिर वे जब पहली बार सांसद और प्रधानमंत्री बन कर मौजूदा संसद भवन पहुंचे थे तो उसकी सीढ़ियों पर माथा टेका था। उस घटना के ठीक आठ साल बाद वह इमारत रिटायर हो रही है। प्रधानमंत्री अपने मेंटर लालकृष्ण आडवाणी के भी गुणगान करते रहे हैं और पैर भी छूते रहे हैं! सो, लोकतंत्र का गुणगान करना इस बात की गारंटी नहीं है कि वह बचा रहेगा। आखिर उनके चहेते अधिकारी और नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने जब कहा कि भारत में बहुत ज्यादा लोकतंत्र है और इसकी वजह से कड़े सुधार नहीं हो पा रहे हैं तो प्रधानमंत्री ने कहां उनको फटकार लगाई या पद से हटा दिया? भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं में से एक कृष्ण गोपाल अग्रवाल ने भी कहा है कि भारत में लोकतंत्र के कारण सुधार नहीं हो पा रहे हैं तो कहां उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है? सो, संभव है कि ये लोग लोकतंत्र कम करने या इसे रिटायर करने की भावना के प्रतिनिधि हों! भारत का संविधान भी 2025 में 75 साल का हो रहा है। क्या उसे भी रिटायर किया जा सकता है? जिस तरह से ‘पीपुल्स पार्लियामेंट’ बन रही है उसी तरह से ‘पीपुल्स कांस्टीच्यूशन’ भी तो बनाया जा सकता है? आखिर भारत का संविधान भी तो दुनिया भर के देशों के संविधान का अध्ययन करके उसके आधार पर बनाया गया है! इसमें अपना क्या है! वैसे भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय भी संविधान की समीक्षा के लिए एक आयोग बनाने की बात हुई थी। तब विपक्ष ने इसका भारी विरोध किया था। एक बार जब संविधान की समीक्षा का ख्याल बन गया है तो कभी भी उस पर अमल किया जा सकता है और उसके लिए संविधान के 75 साल पूरे होने से अच्छा अवसर क्या हो सकता है? वैसे जिस साल भारत का संविधान 75 साल का होगा उसी साल नरेंद्र मोदी भी 75 साल के होंगे।
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