भाजपा में दो तरह के अध्यक्ष होते रहे हैं। एक रबर स्टैंप की तरह के अध्यक्ष और दूसरे अपने हिसाब से काम करने वाले अध्यक्ष। 1980 में भाजपा के गठन के बाद दोनों तरह के अध्यक्ष रहे हैं। पहले, दूसरे और तीसरे अध्यक्ष यानी अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी तीनों अपने हिसाब से काम करने वाले अध्यक्ष रहे। पार्टी में तीनों की स्थिति लगभग समान रही। पर जब पार्टी केंद्र की सत्ता में आई और ये तीनों नेता क्रमशः प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री बने तो नए अध्यक्ष की जरूरत महसूस हुई। सत्ता के उन छह बरसों में तीन अध्यक्ष बने। वेंकैया नायडू, जना कृष्णमूर्ति और बंगारू लक्ष्मण को अध्यक्ष बनाया गया। पर इन तीनों ने मोटे तौर पर वाजपेयी और आडवाणी की छाया में ही काम किया।
इनके बाद के तीन अध्यक्षों- राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और अमित शाह ने फिर अपने हिसाब से काम किया। तीनों ने अपनी अपनी सोच में पार्टी को ढाला और अपनी टीम बना कर राजनीति की। तभी अब सवाल है कि जेपी नड्डा किस धारा के अध्यक्ष होंगे? वे अमित शाह की तरह स्वतंत्र रूप से काम करेंगे या उनकी छाया में सीमित स्वतंत्रता के साथ काम करेंगे? संघ और भाजपा के पुराने कई जानकार नेताओं का कहना है कि वे स्वतंत्र रूप से काम करेंगे और ऐसा इसलिए है क्योंकि अमित शाह को जिस तरह का वरदहस्त नरेंद्र मोदी का हासिल है उसी तरह का सद्भाव नड्डा के प्रति भी मोदी का है। मोदी के साथ उनके तब के संबंध हैं, जब मोदी पार्टी के महामंत्री के नाते हिमाचल प्रदेश के प्रभारी होते थे।
दूसरी ओर कुछ जानकार ऐसे भी हैं, जिनका कहना है कि मोदी और शाह ने संगठन चलाने का एक फार्मूल बनाया है और पार्टी को चुनाव जीतने वाली मशीनरी में तब्दील किया है। सो, नड्डा को उसी फार्मूले के हिसाब से काम करना होगा। बहरहाल, उनकी स्थिति का पता इस बात से चलेगा कि अध्यक्ष बनने के बाद संगठन में क्या और किस किस्म का बदलाव होता है। यह भी कहा जा रहा है कि जैसे खेल में विनिंग इलेवेन नहीं बदला जाता है वैसे ही नड्डा भी चुनाव जिताने वाली टीम को नहीं बदलेंगे।
कैसे अध्यक्ष होंगे जेपी नड्डा?
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