भारतीय जनता पार्टी झारखंड में इस बुरी तरह से कैसे हारी इसका कई पहलुओं से विश्लेषण होगा पर उसमें एक पहलू राज्यसभा सांसद परिमल नाथवाणी का भी है। रिलांयस समूह से जुड़े नाथवाणी दो बार से झारखंड से राज्यसभा सांसद हो रहे हैं। उनका कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है और उनको इस बात की चिंता है कि कैसे फिर से राज्यसभा में पहुंचा जाएगा। अपनी इस चिंता में उन्होंने भाजपा का भट्ठा बैठा दिया। असल में उनको इस बात का अंदाजा था कि भाजपा जीते या हारे उनको राज्यसभा चुनाव में भाजपा से मदद नहीं मिलने वाली है। इसलिए उन्होंने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम और सुदेश महतो की पार्टी आजसू की मदद करके उनको चुनाव में आगे बढ़ाया।
जानकार सूत्रों का कहना है कि मरांडी के लिए नाथवाणी ने बड़ी आर्थिक मदद पहुंचाई, जिससे सबसे पहले जेवीएम का प्रचार शुरू हुआ। चुनाव से पहले तक संसाधन का रोना रोते रहे बाबूलाल मरांडी का अचानक टेलीविजन, अखबारों में विज्ञापन चलने लगा और हेलीकॉप्टर उड़ने लगे। इसी तरह नाथवाणी ने सुदेश महतो की पार्टी को भी मदद पहुंचाई। उनका मकसद यह था कि ये दोनों पार्टियां पांच-पांच सीट भी जीतती हैं तो उनको राज्यसभा के लिए नामांकन भरने के लायक विधायक मिल जाएंगे। एक बार नामांकन हो जाने पर विधायकों की तोड़-फोड़ और खरीद-फरोख्त का काम आसान हो जाता है। पहले भी सुदेश महतो उनकी मदद करते रहे हैं।
उनके संसाधन से चुनाव लड़ कर मरांडी और सुदेश महतो की पार्टी ने कम से कम दर्जन सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचाया। अंतिम आंकड़े आने के बाद पता चलेगा कि इन दोनों पार्टियों की वजह से भाजपा असल में कितनी सीट हारी है पर यह तय है कि इन दोनों पार्टियों के आक्रामक होकर चुनाव लड़ने और चुनाव में संसाधन झोंकने से भाजपा का माहौल बिगड़ा। उसके बारे में यह धारणा बनी कि वह पिछड़ रही है और महागठबंधन जीत रहा है। इस प्रचार का बड़ा नुकसान भाजपा को हुआ। एक तरफ तो नाथवाणी की मदद से चुनाव लड़ रही दोनों पार्टियों ने भाजपा के वोट काटे और दूसरी ओर उसका माहौल भी खराब किया।
नाथवाणी के स्वार्थ से भाजपा का भट्ठा बैठा
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