यह एक तथ्य है कि 17वीं लोकसभा में चुनाव जीत कर आए 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इन सांसदों की ओर से चुनाव के दौरान दायर किए गए हलफनामों में जो जानकारी दी गई है उसके आधार पर यह आंकड़ा निकला है। हालांकि ऐसा नहीं है कि सब के खिलाफ गंभीर अपराध हैं पर यह भी हकीकत है कि बहुत से सांसद ऐसे हैं, जिनके ऊपर गंभीर अपराध के आरोप हैं और खास कर गंभीर आर्थिक अपराध के आरोप। तभी इससे जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत और चुनाव आयोग दोनों ने कहा है कि पार्टियों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वे आपराधिक छवि वाले नेताओं को टिकट न दें।
अदालत ने पहले चुनाव आयोग से इसका रास्ता निकालने को भी कहा था। पर मुश्किल यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को चुनाव लड़ने से रोक देना बहुत मुश्किल है। सजा पाए लोगों को लड़ने से रोकने की तो व्यवस्था है पर सिर्फ आरोप के आधार पर किसी को नहीं रोका जा सकता है। तभी यह राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे अपराधिक छवि वालों को टिकट न दें। लेकिन अपराध रोकने और साफ सुथरी राजनीति करने वाली तमाम पार्टियां भी टिकट देते समय सिर्फ उम्मीदवार के जीत सकने की क्षमता देखती हैं तभी वे अपराधिक छवि के नेताओं को भी टिकट देती हैं। जब तक पार्टियों का रवैया नहीं बदलेगा तब तक इसे रोक पाना संभव नहीं है।
पार्टियां क्या अदालत की सुनेंगी
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