Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

ग्लोरिया ग्रैहम: हॉलीवुड के सुनहरे दौर की एक रहस्यमयी स्टार

हॉलीवुड के गोल्डन एज में कई चेहरे चमके, कई फीके पड़े, और कुछ ऐसे भी थे जो पर्दे से उतरने के बाद और भी गहरे रंग छोड़ गए। 28 नवंबर 1923 को लॉस एंजिल्स में जन्मी ग्लोरिया ग्रैहम इन्हीं में से एक थीं। वे सिर्फ एक अदाकारा नहीं थीं, बल्कि अमेरिकी सिनेमा की उस परंपरा का हिस्सा थीं जिसमें भावनाएं चेहरे पर नहीं, आंखों के जरिए बयां की जाती थीं। 

40 और 50 के दशक में उभरी फिल्म-नोयर (निराशावाद, अस्तित्ववाद और कालेपन को दर्शाती 1940 और 1950 के दशक की हॉलीवुड फिल्मों की एक शैली) की दुनिया में, ग्लोरिया का नाम रहस्य, मासूमियत और उलझन का प्रतीक बन गया।

उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जो मंच की रोशनी से दूर नहीं था। मां एक थिएटर अभिनेत्री थीं, और वही थिएटर की हवा ग्लोरिया की पहली ‘स्कूलिंग’ थी। यही तथ्य रॉबर्ट जे लेंट्ज की जीवनी ‘ग्लोरिया ग्रैहम: बैड गर्ल ऑफ फिल्म नोयर’ में भी विस्तार से मिलता है, जहां बताया गया कि बचपन में ही ग्लोरिया ने मंच की भाषा, गहराई और अभिनय की बारीकियां सीख ली थीं। उनकी आवाज को नियंत्रित करने का तरीका, रुक-रुक कर संवाद अदायगी और चेहरे की हल्की-सी कंपन से भाव जगाने की क्षमता—सब थिएटर से ही आई थी।

Also Read : दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई गहरी चिंता

यही कौशल लेकर वे हॉलीवुड पहुंचीं, जहां एक ओर अवसर था, वहीं दूसरी ओर स्टूडियो सिस्टम की कठोर सीमाएं। कई किताबों, खासकर लेंट्ज की जीवनी और पीटर टर्नर की पुस्तक ‘फिल्म स्टार्स डोंट डाइ इन लिवरपूल’ में यह उल्लेख है कि ग्लोरिया शुरू से ही चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं चाहती थीं। वे सिर्फ सजावटी या सतही पात्र नहीं, बल्कि गहरे और संवेदनाओं से भरे किरदार तलाशती थीं। लेकिन स्टूडियो अक्सर उन्हें “रहस्यमयी महिला” जैसे सांचे में ढालने की कोशिश करता। ग्लोरिया अंदर ही अंदर इस सीमित छवि से टूटती रहीं, लेकिन पर्दे पर वही दर्द एक अनोखी चमक बनकर दिखाई देता था।

उनकी शुरुआती फिल्मों—’इट्स अ वंडरफुल लाइफ’ (1946), ‘क्रॉसफायर’ (1947) और ‘इन अ लवली प्लेस’ (1950)—ने उनके अभिनय की कई परतों को खोला। पर असली पहचान बनी 1952 की ‘द बैड एंड द ब्युटिफुल’ से, जिसके लिए उन्हें एकेडमी अवॉर्ड (ऑस्कर) मिला। यह उनकी प्रतिभा की वैश्विक स्वीकृति थी। लेकिन ऑस्कर के बाद भी करियर वैसा स्थिर नहीं रहा जैसा अक्सर होता है। इसके पीछे कारण थे उनकी निजी जिंदगी के विवाद, रिश्तों की उलझनें, और हॉलीवुड में बन चुकी छवि।

उनके अभिनय की एक खूबी यह थी कि वे अपने चरित्रों को सिर्फ निभाती नहीं थीं, बल्कि उनमें छोटी-छोटी भावनाओं को बुन देती थीं। जैसे होंठों का हल्का कांपना, नजर का एक पल को ठहर जाना, या संवाद के बीच गहरी लेकिन अनिश्चित चुप्पी। इन्हीं बारीकियों को कई जीवनी-लेखक उनके “अंदरूनी संघर्षों का सिनेमाई रूप” कहते हैं।

5 अक्टूबर 1981, ग्लोरिया का निधन हो गया, लेकिन हॉलीवुड अब भी उन्हें फिल्म-नोयर जैसी कई शैलियों को नया आयाम देने के लिए याद करता है।

Pic Credit : ANI

Exit mobile version