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निरर्थक हो चुके सवाल

ऐसा कम ही होता है कि कोई फ़िल्म अपने सभी कलाकारों का भविष्य बना दे। मगर अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ इसका उदाहरण है। उसमें जिन लोगों ने भी काम किया वे सब आज अपनी जगह बना चुके हैं। इनमें हुमा कुरैशी भी हैं। ‘महारानी’ वेब सीरीज़ और ‘मोनिका ओ माई डार्लिंग’ जैसी फिल्मों में भी हुमा को सराहना मिली। अपनी ताज़ा फिल्म ‘तरला’ में हुमा ने किचन क्वीन तरला दलाल की भूमिका की है। वही तरला दलाल जो एक सामान्य गृहिणी होते हुए भी देश की पहली महिला शेफ के तौर पर घर-घर में जानी गईं। हुमा ने उन्हें परदे पर उतारने की पूरी कोशिश की है। नीतेश तिवारी और अश्विनी अय्यर तिवारी के निर्माण और पीयूष गुप्ता के निर्देशन की इस फिल्म में तरला के पति की भूमिका में शारिब हाशमी हैं जो पिछले कुछ समय में तेजी से आगे आते लग रहे हैं।

फिल्म के प्रमोशन के दौरान एक चैनल पर हुमा कुरैशी से पूछा गया कि भारत में मुसलमानों की स्थिति कैसी है और क्या यहां मुसलमानों को किसी प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इस पर हुमा ने कहा कि उनके या उनके परिवार के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मेरे पिता दिल्ली की कैलाश कॉलोनी में पचास साल से एक रेस्टोरेंट चला रहे हैं और कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। निजी तौर पर मुझे मुस्लिम परिवार से होने के नाते कुछ अलग या कोई भेदभाव भी महसूस नहीं हुआ। हो सकता है कि कुछ और लोगों को ऐसा लगा हो।

कुछ साल पहले दीपा मेहता की वेब सीरीज़ ‘लैला’ में मुख्य भूमिका हुमा कुरैशी ने ही की थी। इस इंटरव्यू में उनसे जिस मुद्दे पर बात की गई, यह वेब सीरीज़ परदे पर उसकी पहली दस्तक थी। उसके बाद से तो बहुत कुछ हो चुका है और बात बहुत आगे चली गई है। यहां तक कि अनेक सवाल बेमानी हो गए हैं। या तो जवाब इस कदर उजागर है कि सवाल बनता ही नहीं, या फिर आप जानते हैं कि जवाब क्या दिया जाएगा। बड़े-बड़े स्टार खामोशी अख़्तियार कर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठने चाहिए और सरकारों को उनके जवाब भी देने चाहिए, इतना भर कहना भी हुमा कुरैशी के लिए हिम्मत की बात रही होगी।

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