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हीरोइन केंद्रित फ़िल्मों का हश्र

‘तरला’ के साथ ही सोनम कपूर की ‘ब्लाइंड’ और विद्या बालन की ‘नीयत’ का भी आगमन हुआ है। इन तीनों फिल्मों की खूबी यह है कि इनकी केंद्रीय भूमिका में महिलाएं हैं। ‘तरला’ के अलावा बाकी दोनों फिल्मों में सोनम कपूर और विद्या बालन अपराध की जांच करने वाली अधिकारी बनी हैं। पता नहीं क्यों, अभिनेत्रियों के लिए जब पुरुषों की बराबरी वाली भूमिकाओं की बात आती है तो वह अक्सर पुलिस, सीबीआई या रॉ के किसी अफ़सर या एजेंट की भूमिका पर आकर टिक जाती है। इसकी वजह शायद यह है कि अपने पुरुष स्टार भी आजकल ऐसी भूमिकाएं ज्यादा कर रहे हैं। लेकिन वैसी ही भूमिकाएं करने से क्या पुरुषों से समानता का सपना पूरा हो सकता है? किसी भी फिल्म के लिए कहानी, निर्देशन और अभिनय तीनों का स्तरीय होना जरूरी है। नहीं तो बड़े से बड़े हीरो की फिल्में भी नहीं चल पातीं। विद्या बालन और सोनम कपूर दोनों लगभग चार साल बाद परदे पर लौटी हैं। निजी तौर पर ये दोनों इस स्थिति में हैं कि अपने लिए बेहतर फिल्मों का चयन कर सकें। मगर कर नहीं पा रहीं।

‘नीयत’ के निर्माता विक्रम मल्होत्रा और और निर्देशक अनु मेनन हैं। विद्या बालन की पिछली फिल्म ‘शकुंतला देवी’ भी इस टीम ने बनाई थी। मगर विद्या के लिए यह टीम बेहतर प्रोजेक्ट नहीं सोच पा रही। ‘नीयत’ एक मर्डर मिस्ट्री है जिसमें राम कपूर, राहुल बोस और नीरज काबी भी हैं। ये लोग अच्छे कलाकार हैं, पर उनके अभिनय का तभी कोई मतलब है जब कहानी और पात्र मज़बूत हों। भारत से घोटाला करके भागे और स्कॉटलैंड जाकर बस गए एक अरबपति यानी राम कपूर की हत्या के मामले की जांच एक सीबीआई अफसर बनीं विद्या बालन करती हैं। लोग दर्जनों बार यह सब देख चुके हैं।

‘तरला’ अगर ज़ी5 पर आई है तो सोनम कपूर की ‘ब्लाइंड’ जियो सिनेमा पर रिलीज़ हुई है। सुनते हैं कि इसे थिएटर पर रिलीज़ करने की कोशिश हुई, पर सफलता नहीं मिली। ‘ब्लाइंड’ इसी नाम की एक कोरियाई क्राइम थ्रिलर की रीमेक है जो कि एक नेत्रहीन पुलिस अफसर यानी सोनम और एक सीरियल किलर पूरब कोहली के टकराव की कहानी है। निर्माता सुजॉय घोष और निर्देशक शोम मखीजा इसमें कुछ नया नहीं दे पाए। निश्चित ही विनय पाठक और लिलेट दुबे के लिए भी यह कोई अच्छा अनुभव नहीं रहा होगा।

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