जिन यश चोपड़ा से हमने बात शुरू की थी, उनकी और संभवतया हिंदी सिनेमा की पहली मल्टीस्टार फिल्म 1965 में आई ‘वक़्त’ थी। यह तीन भाइयों की कहानी थी जो बचपन में बिछड़ जाते हैं और बाद में बड़े होकर पता चलता है कि वे तो आपस में भाई हैं। अख़्तर मिर्ज़ा की इस कहानी पर यश चोपड़ा को तीन भाइयों के लिए तीन अभिनेताओं की तलाश थी। उन्हीं दिनों एक जगह उन्हें बिमल राय मिल गए। उन्होंने बिमल राय को संक्षेप में कहानी बताते हुए कहा कि वे तीन भाइयों की भूमिका में तीनों कपूर भाइयों यानी राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर को लेना चाहते हैं। बिमल राय तुरंत बोले, अरे ऐसी बेवकूफ़ी बिलकुल मत करना, इन्हें तो अंधेरे में देख कर भी लोग बता देंगे कि ये एक-दूसरे के भाई हैं। इसके बाद ही यश चोपड़ा ने अपना इरादा बदला और दूसरे स्टार लिए गए। फिर भी, फिल्म में सबसे छोटे भाई की भूमिका में शशि कपूर ही थे।
‘फ़राज़’ में जो ज़हान कपूर हैं, वे उन्हीं दिवंगत शशि कपूर के बेटे कुणाल कपूर के बेटे हैं। कुणाल कपूर खुद भी तेरह साल की उम्र में शशि कपूर के साथ ‘सिद्धार्थ’ में दिखाई दिए, फिर श्याम बेनेगल की ‘जुनून’ में दिखे, और फिर बड़े होने पर ‘आहिस्ता आहिस्ता’, ‘विजेता’, ‘उत्सव’ और ‘त्रिकाल’ में आए। नहीं चल पाए तो अपनी विज्ञापन कंपनी बना ली। बरसों बाद 2015 में हमने उन्हें अक्षय कुमार की ‘सिंह इज़ ब्लिंग’ में देखा। अपने बेटे ज़हान को उन्होंने कैमरे के पीछे का काम सिखाया और नाटकों में ट्रेनिंग दिलवाई।
बहरहाल, ज़हान पृथ्वीराज कपूर बॉलीवुड के कपूर खानदान नंबर वन की चौथी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। वे पृथ्वी थिएटर में सक्रिय रहे हैं और ‘फ़राज़’ के लिए उन्हें इस्लाम से संबंधित किताबें भी पढ़नी पड़ीं। उनके परदे पर आने से कपूर खानदान के सभी फिल्मी सदस्यों के नाम याद रख पाना थोड़ा और मुश्किल हो गया है। लेकिन इंतज़ार कीजिए, कुछ महीनों में यह और मुश्किल होने वाला है।