nayaindia kisi ka bhai kisi ki jaan review अधोगति की ओर भाईजान
बॉलीवुड

अधोगति की ओर भाईजान

Share

बॉक्सिंग और राजनीति दोनों में सक्रिय विजेंदर सिंह कहते हैं कि जब सलमान खान ने फोन करके मुझे इस फिल्म में रोल देने की पेशकश की थी उस समय मैं मानचेस्टर में प्रेक्टिस कर रहा था। सलमान भाई की आवाज़ सुन कर ही मैं तो हकबका गया। मैंने यह भी नहीं पूछा कि रोल क्या है, और तुरंत हां कर दी। फिर आठ महीने बाद मैं उनसे मिला तो पूरी यूनिट के साथ उन्होंने मेरा जन्मदिन मनाया और काम शुरू हुआ। वह फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ रिलीज़ हो चुकी है और अब विजेंदर सोचते होंगे कि अच्छा ही हुआ कि उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं पूछा, क्योंकि सलमान उन्हें कुछ भी बताते, रिजल्ट तो यही निकलना था।

एक अनाथ व्यक्ति है, जिसका कोई देश और कोई धर्म नहीं है। देश और सोशल मीडिया के हालात को देखते हुए हीरो को केवल इन्सान दिखाने की यह ट्रिक असल में हमारे फिल्मकारों के डर की खोज है। बहरहाल, वह व्यक्ति भाईजान कहलाता है। उसके तीन भाई हैं और वे भी अनाथ हैं। भाईजान यह सोच कर अपना घर नहीं बसाते कि इससे घर में कलह पैदा होगी। लेकिन उनके तीनों भाइयों ने अपनी प्रेमिकाएं तलाश ली हैं और वे शादी करना चाहते हैं। अब उनकी समस्या यह है कि पहले बड़े भाई की शादी तो हो। सो वे भाईजान की शादी कराने के अभियान में जुट जाते हैं। यह फिल्म नौ साल पुरानी तमिल की ‘वीरम’ का रीमेक है। मगर एक बेहद मामूली कहानी की एक वाहियात स्क्रिप्ट लिखी गई जिसे फरहाद सामजी का निहायत दिशाहीन निर्देशन मिला। यह भी संभव है कि निर्माता सलमान खान ने निर्देशक के मामलों में इतनी दखलंदाजी की हो कि जिसका यही नतीजा निकलना था। एक ऐसी फिल्म कि दर्शकों को संकोच होने लगे कि वे कैसी निरर्थक चीज देख रहे हैं।

विजेंदर की ही तरह, पलक तिवारी और शहनाज गिल भी नई और बेहद जूनियर होने के कारण कुछ पूछना तो दूर उलटे उपकृत महसूस कर रही होंगी। इसी तरह पूजा हेगड़े, वेंकटेश, रामचरण, जगपति बाबू, भूमिका चावला, यहां तक कि भाग्यश्री और उनके पति हिमालय भी सिर्फ इस गुमान में रहे होंगे कि वे इतने बड़े स्टार के साथ काम कर रहे हैं। डेढ़ सौ करोड़ की लागत वाली इस फिल्म ने एक बार फिर साबित किया है कि पैसे से लोग तो जुटाए जा सकते हैं, कलात्मकता और कल्पनाशीलता पैदा नहीं की जा सकती। फिल्म में छह संगीतकार हैं और वे सब मिल कर भी कुछ अनोखा नहीं कर पाए। सलमान की छवि के अनुरूप फिल्म में एक्शन ठूंसा गया, मगर किसी विश्वसनीय कहानी के अभाव में एक्शन भी झूठा, बेअसर और दयनीय बन जाता है। हिंदी सिनेमा में इन दिनों एक्शन की जो नई लहर पैदा हुई है उसमें सबसे बड़ी दिक्कत कहानी ही खड़ी करेगी।

‘किसी का भाई किसी की जान’ की रिलीज़ के साथ ही अपने तीनों खानों का नवीनतम राउंड भी पूरा हो गया है। इस फिल्म के भी आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसे आसार दिख रहे हैं। मतलब यह कि इस राउंड में ’पठान’ के जरिये शाहरुख खान ने बाजी मारी है। अब ये तीनों अगले राउंड की तैयारी में लगेंगे, बल्कि लगे हुए हैं। समस्या यह है कि ये तीनों अपनी ढलती उम्र में भी एक्शन पर ऊर्जा खपा रहे हैं जबकि इनका स्टारडम हमारी फिल्मों की धारा को मोड़ने और उसे नई दिशा देने की ताकत रखता है। अपनी कुछ महत्वाकांक्षी फिल्मों की असफलता के कारण ये लोग एक्शन की शरण में पहुंचे हैं। लेकिन वे फिल्में तो इसलिए पिटी थीं कि उनकी कहानी लोगों को नहीं सुहाई। और अगर कहानी पायेदार नहीं होगी तो एक्शन का तामझाम भी कुछ नहीं कर पाएगा। वह भी एक ही वार में चरमरा जाएगा।

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें

Naya India स्क्रॉल करें