राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके की एक आदिवासी लड़की अपनी दादी से अपनी पारंपरिक बिच्छू गायन की कला सीख रही है। किसी को यदि बिच्छू ने काट लिया है तो यह बिच्छू गायन उसका इलाज है। छह साल पुरानी फिल्म ‘द सॉन्ग ऑफ स्कॉर्पियन्स’ जो अब रिलीज हो रही है, वह इसी बिच्छू गायन पर आधारित है। अगस्त 2017 में स्विट्जरलैंड के लोकार्नो फिल्म फेस्टिवल में इसका प्रीमियर हुआ और इसे बहुत पसंद किया गया। लेकिन किन्हीं वजहों से इसका रिलीज़ होना टलता रहा।
इसकी खूबी यह है कि दिवंगत इरफ़ान खान आखिरी बार इसमें परदे पर दिखेंगे। ईरानी मूल की फ्रेंच अभिनेत्री गोलशिफ़्ते फ़राहानी वह नूरां नाम की लड़की बनी हैं जो बिच्छू गाय़न सीख रही है और उसकी दादी हैं वहीदा रहमान। इरफ़ान ऊंटों के एक व्यापारी हैं जो इस लड़की का गाना सुन कर उसे प्यार कर बैठते हैं। गांववाले जब नूरां को अपमानित करते हैं तब वह भी इरफ़ान की ओर खिंचती है। मगर एक प्रेम कहानी से ज़्यादा यह दीवानगी, जुनून और भयावह विश्वासघात की कहानी है।
अनूप सिंह ने इसमें निर्देशन दिया है। तंजानिया में एक सिख परिवार में जन्मे और जेनेवा में रहने वाले अनूप सिंह ने करीब बीस साल पहले बांग्ला में ‘एकटी नादीर नाम’ बनाई थी। यह फिल्म भारत के सबसे बड़े फिल्मकारों में गिने जाने वाले रित्विक घटक पर केंद्रित थी जिन्हें अनूप अपना गुरू मानते हैं। फिर उन्होंने 2013 में पंजाबी में ‘क़िस्सा’ बनाई जो बेटे की चाहत में तमाम सीमाएं लांघ जाने वाले एक व्यक्ति की कहानी थी। ‘क़िस्सा’ में भी इरफ़ान खान थे और उनके साथ तिलोत्तम शोम थीं। तिलोत्तमा ‘द सॉन्ग ऑफ स्कॉर्पियन्स’ में भी दिखेंगी। इस तरह अनूप सिंह के निर्देशन की यह महज तीसरी फिल्म है, मगर तीनों अलग किस्म की, तीनों ऑफ़बीट फिल्में।