Revenge with suspence..ये combination कैसा लगा आपको। बदले के मिशन उसके बैकग्रैउंड में ढेर सारे twist and turns। सुनकर ही दिल में धक-धक सी हो जाती है ना।सिनेमा के दीवानों की लॉटरी समझ लो। कुछ समय पहले आई थी 'MOM' एक खतरनाक रिवेंज ड्रामा जिसमें भरपूर एक्शन और खून-खराबा। पूरा खेल दिमाग का था जब एक मां के सामने बड़-बड़े गुंडे मवाली घुटनों पर आ गये थे। बस फिर से इसी दिमाग को सेंटर में रख कर बदले का खेल खेला गया है। मैदान ZEE5 का है। और मिशन के बीचों-बीच फंस गये है अपनी फैमिली में। स्वागत है आपका Dial ( dial 100 movie review ) 100 के रिव्यु में..
बारिश की काली रात है। पूरा शहर चुप-चाप अगली सुबह का इंतजार कर रहे है। तभी अचानक पुलिस कंट्रोल रूम की घंटी बजती है। फोन की दूसरी तरफ आवाज है एक पागल सनकी औरत की। जिद्द है अपनी खुद की जान लेने की। आवाज में गुस्सा है और दर्द भी है। एक हाथ में शराब की बोटल तो दूसरे में कार का स्टेयरिंग। कुछ बुरा जरूर होगा। फोन के इस तरफ है पुलिस इंसपेक्टर सूद जिनकी जिम्मेदारी है उस औरत को रोकने की। लेकिन वो कहावत तो सुनी होगी..उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। बस वैसे ही फोन पर वो औरत पुलिस को अपनी बातों में उलझा रही है। शब्दों का ऐसा भूल-भूलैया तैयार होता है जिसका एंड रिजल्ट ये है कि उस औरत को खुद की नहीं बल्कि उनकी जान लेनी चाहिए जिसकी वजह से वो सुसाइड करना चाहती है। तभी अचानक सूद सर के फोन की घंटी बजती है। वीडियो कॉल पर कैमरा चालू और सामने पड़ा है खून में लिपटा हुआ उनका डॉग रॉकी। पत्नी प्रेरणा घर से हो गई है गायब या फिर किडनैप। देखो यहां से फिल्म को कई शक्ल में ढ़ाल सकते हो आप। कई रास्ते है। बहुत सारे आप्शन है। खासकर जो ( dial 100 movie review ) हीरो-विलेन के बीच में डायरेक्ट मुलाकात ना करवा कर फोन को तार बनाकर जोड़ा गया है इसमें ऑडियंस का दिमाग घूम जाता है।
मनोज वाजपेयी एक हीरो के तैर पर क्या कारनामे कर सकते है यह हम सब जानते है। द फैमिली मैन..के रग-रग से वाकिफ है। हीरोपंती इनके खून में है। लेकिन इस बार सामने है नीना गुप्ता। जिनसे क्या एसपेक्ट करना है इसके बार में हम कंफर्म नहीं है। ये जो सरप्राइज वाली फीलिंग है यही फिल्म का एक्सफेक्टर बन जाती है। नीना गुप्ता नेगेटिव रोल में आपको काफी चौंका देंगी। कुछ समय बाद कहानी में एक ऐसा विलेन मौजूद है। जिसी केवल आवाज सुनकर डर लगने लगेगा। और जब शक्ल सामने आती है तो डर का लेवल दोगुना हो जाता है। ( dial 100 movie review ) फिल्म का पहला भाग भागता है एकदम तेज स्पीड से। बातों की जाल में उधर पुलिस उलझती है औक इधर हम लोग। फिर धीरे-धीरे समझ आता है कि यह खेल जिंदगी और मौत का नहीं बदले का है।
दूसरे भाग में फोकस फोन से हटकर कहानी पर आ जाता है। बस यही पर शुरुआत होती है गड़बड़ की। इतनी ज्यादा उम्मीद लगा दी थी कि क्लाइमेक्स में 100 में से 99 रह जाए तो बुरा लगेगा। सोचा तो यही था कि जब फोन पर इतनी आग लग रही है तो आमन-सामने मुलाकात होगी तो फिल्म एकदम टॉप लेवल पर पहुंच जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ खास देखने को मिलता नहीं है। हां दिमाग को साइड में रखकर इमोशन्स के एंगल से देखो तो क्लाइमेक्स आपको जरूर टच करेगा। असली विक्टम आखिर है कौन। इस सवाल का जवाब बहुत सारे नजरिये से देख सकते हो। सोचो जिस इंसान पर आपको दया आती हो किसी चीज के लिए कल आप खुद उसका शिकार बन जाओ और वो इंसान उस से मुक्त हो जाए। फिल्म का क्लाइमेक्स पब्लिक के दिल से खेल जाता है। तारीफ इसलिए भी है क्योकि डायल 100 कोई मेगा बजट फिल्म नहीं बल्कि एक मामूली सी कहनी है जो सिर्फ एक छोटे से कमरे में बैठकर ऑडियंस तक पहुंचाया गया ( dial 100 movie review ) है। बॉलीवुड की एक नयी सोच है जिसमें फोकस मंहगे चमकीले सेट्स पर नहीं बल्कि कॉन्टेंट और स्टॉरी पर डाला गया है।
अच्छी फिल्म बनाने को पॉकेट में वजन नहीं दिमाग में चालाकी चाहिए। ( dial 100 movie review ) इस सोच के लिए फिल्म जरूर देखना। ममोज वाजपेयी और नीना गुप्ता की पावरफुल, नैचुरल एक्टिंग के लिए। 100% रियल टेलेंट नो पालतु ड्रामा। बिना किसी डिस्ट्रेक्शन के पूरा फोकस कहानी पर डाला है। बॉलीवुड के ट्रेडिशनल फिल्म मेकिंग स्टाइल पैसा है तो सुपरहिट वाली सोच है। फिल्म के क्लाइमेक्स को उम्मीद से छोटा मामूली बनाकर दिखाया गया है। नया इंडिया इस फिल्म को 2.5 स्टार दता है। मनोज सर के एक्टिंग के लिे यह फिल्म जरूर देखें। फिल्म में कुछ भी ओवर नहीं दिखाया गया है।
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