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ओटीटी से महिला भूमिकाओं में सुधार

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‘द एलीफ़ेंट व्हिस्परर्स’ की जीत से पहले भी गुनीत मोंगा की कम से कम एक डॉक्यूमेंट्री ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो चुकी थी। इसका मतलब यह नहीं है कि वे लोकप्रिय सिनेमा में दखल नहीं रखतीं। पहले भी वे कई फिल्में बना चुकी हैं और अब बालाजी फिल्म्स के साथ उनकी बनाई ‘कटहल’ नेटफ़्लिक्स पर आई है। यशोवर्धन मिश्रा के निर्देशन की इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा एक पुलिस अधिकारी बनी हैं जो अपने इलाके के विधायक के यहां से कटहल की चोरी जैसी वारदात की छानबीन करती हैं। जांच के दौरान उन्हें ऐसा कुछ मिल जाता है कि इस केस में उनकी दिलचस्पी बढ़ जाती है। इस व्यंगात्मक फिल्म में अनंत विजय, विजयराज और राजपाल यादव आदि कलाकार भी हैं, मगर सान्या मल्होत्रा पर गौर करना ज़रूरी है। वे पहली बार आमिर खान की ‘दंगल’ से परदे पर आई थीं। उसके बाद ‘पटाखा’, ‘बधाई हो’, ‘फोटोग्राफ’, ‘पगलैट’ से होता हुआ उनका फिल्मी सफ़र ‘कटहल’ तक पहुंचा है। जल्दी ही वे विकी कौशल के साथ पूर्व फील्ड मार्शल सैम मानेकश़ा पर बन रही ‘सैम बहादुर’ में दिखेंगी और फिर शाहरुख खान, नयनतारा, विजय सेतुपति वगैरह के साथ ‘जवान’ में नजर आएंगी। इस शानदार फिल्मी सफ़र के लिए बहुत सी अभिनेत्रियां सानिया से रश्क कर सकती हैं। मगर यह केवल इसलिए संभव हुआ कि फिल्म की कहानी और अपनी भूमिका में उन्हें हमेशा नयेपन की तलाश रहती है।

इससे कुछ ही दिन पहले प्राइम वीडियो पर वेब सीरीज़ ‘दहाड़’ रिलीज हुई जिसमें सोनाक्षी सिन्हा पुलिस अफसर बनी हैं। ज़ोया अख़्तर और रीमा कागती की बनाई और रुचिका ओबेरॉय के निर्देशन वाली इस सीरीज़ में कई लड़कियों के गायब होने और फिर मारे जाने की कहानी है। सीरियल किलर बने विजय वर्मा के लिए भी यह महत्वपूर्ण सीरीज़ है और हत्यारे की तलाश करने वाली सोनाली के लिए भी। ज़ोया अख़्तर और रीमा कागती शुरू से ही महिलाओं की अलग पहचान वाली भूमिकाएं पेश करती रही हैं। कितनी अजीब बात है कि सोनाक्षी के कई साल बाद फिल्मों में आईं सान्या मल्होत्रा के पास अच्छी फिल्मों और स्तरीय भूमिकाओं की ज्यादा लंबी सूची है। शायद इसलिए कि सोनाक्षी ने ‘दबंग’ की सफलता के बाद फिल्में स्वीकारते वक़्त यह नहीं देखा कि कहानी क्या है और उनके लिए उसमें क्या है। ऐसा इसके बावजूद हुआ कि उनके पिता शत्रुघ्न सिन्हा की तरह उनकी मां पूनम सिन्हा भी फिल्मों में ही थीं। बहरहाल, ओटीटी के आने के बाद से कहानियों और उनकी प्रस्तुति का बेहतर होना ज़रूरी हो गया है। इससे कलाकारों के लिए भूमिकाएं भी बदल और सुधर रही हैं। खास कर महिला भूमिकाएं।

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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